रेल पटरियों का रखरखाव जरूरी

बुलेट युग की जोर-शोर से तैयारियों और बधाइयों में जुटी भारतीय रेल को कल भोर में जम्मू राजधानी एक्सप्रेस के पटरी से उतरने की घटना ने आईना दिखा दिया है. एक हफ्ते में यह दूसरी घटना है. हालांकि, इनमें जनहानि नहीं हुई है. फिर भी देश के कई हिस्सों में ऐसी कई घटनाएं हाल के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 15, 2017 9:30 AM
बुलेट युग की जोर-शोर से तैयारियों और बधाइयों में जुटी भारतीय रेल को कल भोर में जम्मू राजधानी एक्सप्रेस के पटरी से उतरने की घटना ने आईना दिखा दिया है. एक हफ्ते में यह दूसरी घटना है. हालांकि, इनमें जनहानि नहीं हुई है. फिर भी देश के कई हिस्सों में ऐसी कई घटनाएं हाल के दिनों में आयी हैं, जो बहुत चिंताजनक हैं.

एक के बाद एक दुर्घटनाओं के नाते ही रेल मंत्री सुरेश प्रभु और अध्यक्ष रेलवे बोर्ड को विदा होना पड़ा. हाल की सबसे बड़ी खतौली रेल दुर्घटना में पहली बार रेलवे बोर्ड के सदस्य, महा प्रबंधक उत्तर रेलवे और मंडल रेल प्रबंधक समेत आठ बड़े अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हुई और तमाम सख्त कदम उठे हैं. फिर भी जो घटनाएं सामने आ रही हैं, वे बताती हैं कि रेलवे बेहद चिंताजनक मोड़ पर खड़ी है.

रेलगाड़ी का पटरी से उतर जाना या डिब्बे में करंट आ जाने से लेकर तमाम ऐसी घटनाएं भारतीय रेल प्रणाली को सवालों के घेरे में ला खड़ा करती हैं. देश की जीवनरेखा भारतीय रेल अपने 8,000 से अधिक रेलवे स्टेशनों से रोज 2.30 करोड़ से अधिक मुसाफिरों को गंतव्य तक पहुंचाती है और रोज तीस लाख टन माल ढोती है. कहा गया कि यह सब घटनाएं अल्पनिवेश के नाते हो रही हैं. इस नाते 2015-16 में पांच सालों के लिए 8.56 लाख करोड़ की भारी भरकम निवेश की योजना बनायी गयी है. 2017-18 के रेल बजट में एक लाख करोड़ रुपये का संरक्षा कोष भी बना. लेकिन, इसका जमीन पर खास असर दिख नहीं रहा है.
इस समय रेलवे के लिए सबसे बड़ी चुनौती बार-बार रेलगाड़ियों का पटरी से उतरना है. इस मसले को लेकर नये रेल मंत्री पीयूष गोयल कई बैठकें ले चुके हैं और क्षेत्रीय रेलों के महाप्रबंधकों को भी आगाह किया गया है. सरकार ने चार प्रमुख क्षेत्रों पर खास फोकस किया हुआ है, जिसमें यात्री सुरक्षा पहले नंबर पर है. फिर भी जिस तरह से गाड़ियां दुर्घटना का शिकार बनती जा रही हैं, वह बहुत चिंताजनक है.
भारतीय रेल 13,313 यात्री गाड़ियां चला रही है. तमाम क्षेत्रों में वह बढ़-चढ़ कर दावे कर रही है. लेकिन, वह भारी दबाव, तनाव और चुनौतियों से जूझ रही है. 1950-51 से अब तक यात्री यातायात में 1344 फीसदी और माल यातायात में 1642 फीसदी की वृद्धि हुई है, लेकिन रेलमार्ग महज 23 फीसदी बढ़ा है. आज भारतीय रेल के 66,787 किमी रेलमार्ग के 1219 खंडों में से 492 खंड पर क्षमता से अधिक यातायात चल रहा है. इसमें भी सबसे व्यस्त 161 खंड इतने संतृप्त हो गये हैं कि पटरियों की मरम्मत के लिए समय निकालना कठिन है.
हाल में रेल संबंधी स्थायी समिति ने ट्रेन दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए रेलवे बोर्ड में सदस्य संरक्षा का पद सृजित करने की सिफारिश के साथ पुरानी पटरियों को तेजी से बदलने और संरक्षा श्रेणी के रिक्त पदों की सिफारिश की. समिति ने माना कि 2003-04 से रेल दुर्घटनाओं में पटरी से उतरना प्रमुख कारण रहा है और स्थिति में सुधार नहीं हुआ. भारतीय रेल को इस समय आधुनिकीकरण के लिए भारी भरकम राशि की दरकार है. 2011 में तत्कालीन रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी ने रेल संरक्षा के लिए डाॅ अनिल काकोदकर और आधुनिकीकरण के लिए सैम पित्रोदा की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय कमेटी बनायी थी. सैम पित्रोदा कमेटी ने पांच सालों में 19000 किमी रेल पथ नवीनीकरण और 11,250 पुलों को आधुनिक बनाने को कहा. सिगनलिंग प्रणाली को अत्याधुनिक बनाने और नयी पीढ़ी के ताकतवर रेल इंजनों को सेवा में लाने जैसी सिफारिश हुई. लेकिन, ये सिफारिशें कागजों से बाहर निकल कर जमीन तक नहीं आयीं.
रेलवे में बीते तीन सालों में कुल 361 दुघटनाओं में 185 में रेल कर्मचारियों की गलती उजागर हुई है. फिर भी भारतीय रेल की रीढ़ ग्रुप सी और डी में कर्मचारियों के 2.25 लाख पद खाली हैं, जिसमें से 1.22 लाख से अधिक पद संरक्षा कोटि के हैं. इनको तत्काल भरना चाहिए था. इस क्रम में यह ध्यान रखने की बात है कि हाल के महीनों में पटरी से उतरने के सबसे अधिक गंभीर मामले उत्तर प्रदेश में सामने आये हैं. रेल पथ के रख-रखाव में कमजोरियां तो हैं ही.
वास्तव में रफ्तार, धुरा भार और यातायात की मात्रा के लिहाज से पटरियों का अनुरक्षण जरूरत होता है. कायदे से हर साल करीब पांच हजार किमी रेल पथ नवीकरण होना चाहिए, लेकिन यह तीन हजार किमी के औसत से अधिक नहीं जा रहा है. भारतीय रेलमार्गों का वर्गीकरण छह समूहों में है. समूह-ए में गति सीमा 160 किमी प्रति घंटा है, जबकि समूह-बी पर 130 किमी प्रतिघंटा, समूह-सी में मुंबई, चेन्नई, दिल्ली और कोलकाता के उपनगरीय खंड आते हैं, जबकि समूह-डी पर स्पेशल और 110 किमी प्रतिघंटा तक गति रखी गयी है. वहीं समूह-इ पर गति सीमा 100 किमी प्रतिघंटा है. इसी लिहाज से अनुरक्षण में प्राथमिकता तय होती है. इस ऐतबार से आज भारतीय रेल के ओवरहालिंग की जरूरत है.
अरविंद कुमार सिंह
वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व सलाहकार, भारतीय रेलवे
arvindksingh.rstv@gmail.com

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