17 सितंबर सृजन दिवस होता है. इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा-अर्चना की जाती है. उन्हें सृष्टि में सृजन का देवता माना गया है. सोने की लंका के शिल्पकार भी विश्वकर्माजी ही थे. इसी दिवस पर 20वीं शताब्दी के मध्य वर्ष 1950 में नरेंद्र दामोदर दास मोदी का जन्म हुआ. एक बालक, जिनके नसीब में निर्धन बचपन था, संघर्षपूर्ण जवानी थी, मगर जिनके हाथों में लिखा था गुजरात से लेकर हिन्दुस्तान तक की बादशाहत.
मां की कोख से निकलना ही जन्म नहीं होता
जिस नरेंद्र मोदी को दुनिया जानती है, जो सवा सौ करोड़ लोगों के समर्थन का दावा करते हैं, जिनके हाथों में दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी की सरकार चलाने की जिम्मेदारी है, उसनरेंद्र मोदी का जन्म महज एक मां की कोख से नहीं होता. वह तो माध्यम होती हैं, पालनहार होती हैं, लाड़-प्यार का स्रोत होती हैं. ऐसीशख्सीयत की परवरिश या तो नियति खुद करती है या फिर महत्वपूर्ण घटनाएं उन्हें जन्म देती हैं.
यादगार तारीखों की जननी है 17 सितंबर 1950
हिन्दुस्तान की सियासत में नरेंद्र मोदी का जन्म कब हुआ? 17 सितंबर 1950 तो उन तारीखों की जननी भर है. ऐसी कई तारीखें रहीं, जिन्होंनेनरेंद्र मोदी को गढ़ा, उनके लिए अवसर बने और उनके लिए जिन तारीखों ने इतिहास रच दिया.
दांपत्य जीवन की कुर्बानी देकर मोदी बढ़े ‘आगे’
महज 13 वर्ष की आयु में जब नरेंद्र मोदी ने जसोदा बेन चमनलाल से सगाई की और जब 17 वर्ष की उम्र में उनसे शादी की, तो वह घटना भी आज के नरेंद्र मोदी के निर्माणकाकारण थी. गृहस्थ जीवन नरेंद्र को रास नहीं आया. शादी के कुछ वर्षों के बाद ही उन्होंने घर त्याग दिया. न उनकी पत्नी ने कोई दूसरी शादी की, न हीनरेंद्र मोदी ने. गुजरात में चुनाव जीतते हुएनरेंद्र ने चुनाव आयोग को दिए हलफनामे में जहां पत्नी का नाम नहीं लिखा था, वहीं प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पहली बार लोकसभा चुनावलड़नेके दौरान नरेंद्र मोदी ने पत्नी के कॉलम में जसोदा बेन चमनलाल का नाम लिख कर यह जता दिया कि वे अब भी खुद को शादीशुदा मानते हैं. सार्वजनिक तौर पर खुद नरेंद्र मोदी ने कहा है कि गृहस्थ जीवन से मुक्त व्यक्ति देश और समाज के लिए अधिक समर्पित होकर काम कर सकता है. माना जाता है कि इसी सोच ने उनके दांपत्य जीवन को नुकसान पहुंचाया है. वहीं अगर नरेंद्र मोदी की सोच सही है, तो यह देश के करोड़ों लोगों के लिए लाभकारी साबित हुआ है. बहरहाल इस विषय पर पत्नी जसोदा ने खुलकर कुछ बोलने से परहेज किया है.
जब पीएम उम्मीदवार बने नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी केजीवन में एक औरतारीख अहम है. यह तारीख है 13 सितंबर 2013.इसदिन उन्हें बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया. तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने इसकी घोषणा की. अब तक ‘पीएम इन वेटिंग’ कहे जाते रहे पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की इस बात से नाराज़गी दुनिया जानती है जो उस बैठक में अनुपस्थित रहे.
वैष्णो देवी से आशीर्वाद लेकर चुनाव प्रचार का श्रीगणेश
पीएम उम्मीवार घोषित होने के बाद 26 मार्च 2014 का दिन भी उनके लिएकाफीअहम है, जब नरेंद्र मोदी ने मां वैष्णो देवी के आशीर्वाद के साथ जम्मू से चुनाव प्रचार का श्रीगणेश किया.नरेंद्र मोदी ने पूरे भारत में आक्रामक चुनाव प्रचार किया और इस दौरानतीन लाख किलोमीटर की यात्रा करते हुए 437 बड़ी चुनावी रैलियां कीं, थ्री डी सभाएं और चाय पर चर्चा जैसे कार्यक्रमों समेत देशभर में 5827 कार्यक्रम किए. हिन्दुस्तान ने अनोखे किस्म का चुनाव प्रचार देखा और नरेंद्र मोदी देश की जनता को यह भरोसा दिलाने में सफल रहे कि एक चाय वाले का बेटा ही उनके दुखदर्द को समझ सकता है, उनके लिए अच्छे दिन ला सकता है.
जब एनडीए का नेता चुने गयेनरेंद्र मोदी
20 मई 2014 को एनडीए की संयुक्त बैठक के लिए पहुंचते वक्त संसद भवन की ज़मीन को जब झुककरनरेंद्र मोदी ने प्रणाम किया, तो वह एक तरह से राष्ट्रीय राजनीति में अपने प्रभावी उदय या कहें नये जन्म का ही स्वागत कर रहे थे. इस बैठक में एनडीए ने उन्हें अपना नेता चुना और देश के प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी के नाम पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगायी.
15वें प्रधानमंत्री के रूप में जन्म
26 मई 2014 वास्तव में प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी का जन्मदिन है जब दुनिया के नामचीन देशों के राष्ट्राध्यक्षों की मौजूदगी में दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की जिम्मेदारी उन्होंने स्वीकार की. राष्ट्रपति ने नरेंद्र मोदी को 15वें प्रधानमंत्री के तौर पर नियुक्त किया और उन्होंने पद व गोपनीयता की शपथ दिलायी.
13 साल रहे गुजरात के सीएम बनकर
13 साल गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर शासन कर चुके नरेंद्र मोदी का जन्मतीन अक्तूबर 2001 को उन्हाेंने यह पदभार ग्रहण किया था. उन्होंने आलाकमान के निर्देशपर तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल की जगह ली थी. यहां से उन्होंने सीधे प्रधानमंत्री पद की सफर तय की.
गोधरा कांड ने बदल दिया सियासी जीवन
3 अक्तूबर 2001 के बाद 27 फरवरी 2002 का दिननरेंद्र मोदी के लिए और भी महत्वपूर्ण है जब गोधरा कांड हुआ. साबरमती एक्सप्रेस में लौटतेकार सेवकों को जिंदा जला दिया गया. इस कांड से देश दहल गया. जब ट्रेन से लाशें गुजरात पहुंचीं, तो सांप्रदायिकता के आग की ऐसी चिनगारी फूटी कि समूचा गुजरात धधक उठा. गुजरात के दंगे ने नरेंद्र मोदी को घेरने का विपक्ष को बड़ा मौका उपलब्ध करा दिया,लेकिनबाद के सालों में विकास पुरुष बन कर उभरे. गुजरात दंगों के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को राजधर्म का पालन करने की बात कही थी और मोदी ने मंच से उनकी ओर देखते हुए कहा था – मैं भी तो वही कर रहा हूं.
राजनीतिक आसमान पर चढ़ने लगे नरेंद्र, उतरने लगे वाजपेयी
2002 का ही वह वर्ष था जब अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ में पहली बार तबीयत ठीक नहीं होने की वजह से पत्रकारों के जवाब नहीं दिए. उसके बाद से उनकी तबीयत बिगड़ती ही चली गयी. 2004 में लोकसभा चुनाव के दौरान फील गुडनाराके बावजूद वाजपेयी सरकार चुनाव में हार गयी, तो वाजपेयी ने इसकी वजह गुजरात में हुई ‘गलती’ बतायी. ‘कश्मीर : द वाजपेयी इयर्स’ के लेखक और वाजपेयी के करीब रहे देश के शीर्ष व सक्षम अधिकारियों में एक एएस दुलत ने वाजपेयी की इस भावना का जिक्र किया था. माना जाता रहा है कि वाजपेयी तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके पद से हटाना चाहते थे, लेकिन आडवाणीजी ने उन्हें ऐसा करने से रोक लिया. वाजपेयी-आडवाणी ने भले ही मोदी को बतौर मुख्यमंत्री जीवनदान दे दिया था, लेकिन केंद्र में एनडीए सरकार चुनाव हार गयी. खुद वाजपेयी भी उस चुनाव नतीजे के बाद से सार्वजनिक राजनीतिक जीवन में लौट नहीं सके.
एसआईटी से मिली क्लीन चिट भी है यादगार दिवस
10 अप्रैल 2012भी मोदी के जीवन में अहम है, जब सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनायी गयी एसआईटी ने नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगा मामले में क्लीन चिट दे दी और क्लोजर रिपोर्ट फाइल की. अहमदाबाद के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने 26 दिसंबर 2013 को इस रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया. इस फैसले के विरोध में जाकिया जाफरी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां सुनवाई पूरी हो चुकी है.
मीडिया ने हमेशा कसौटी पर कसा
मीडिया ने कभी एसआईटी की ओर से नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने को चरित्र प्रमाण पत्र के रूप में स्वीकार नहीं किया. लगातार यह बात सामने लायी गयी कि तथ्य एसआटी से छिपाए गये और नरेंद्र मोदी को अारोप मुक्त नहीं किया जा सकता. अप्रैल 2012 में दोबारा विशेष जांच दल बना, लेकिन फिर ये बात दोहरायी गयी कि नरेंद्र मोदी का इन दंगों में कोई प्रत्यक्ष हाथ नहीं था.
सुप्रीम कोर्ट से राहत
11 अप्रैल 2014 की तारीख भी नरेंद्र मोदी के लिए अहम है जब सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगा मामले में दूसरी एसआईटी बनाने से इनकार कर दिया. यह फैसला मोदी के लिए चरित्र का प्रमाणपत्र बन गया, जो लोकसभा चुनाव के दौरान बहुत कारगर साबित हुआ.
जो नहीं दे रहे थे वीज़ा अब करने लगे मोदी का स्वागत
राजनीतिक रूप से आरोपों की आंच से तपकर निकल आए थे नरेंद्र मोदी. जिस अमेरिका ने उन्हें अपने देश में प्रवेश का वीज़ा देने से मना कर दिया था, जिस पश्चिमी जगत ने अपराधी की तरह उनके साथ व्यवहार किया था, अब वही नरेंद्र मोदी को न्योता दे रहे थे. उनके न्योते को स्वीकार कर रहे थे.
विपरीत टिप्पणी से घायल हुए मोदी
हालांकिसात मई 2012 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त विशेष जज राजू रामचंद्रन ने यह टिप्पणी की किनरेंद्र मोदी पर विभिन्न समुदायों के बीच वैमनस्य की भावना फैलाने के अपराध में उन्हें दंडित किया जा सकता है, उस आंच को सुलगता छोड़ दिया जिसे मोदी विरोधी सुलगाए रखना चाहते थे.
मोदी की दो टूक- “अपराध किया है तो फांसी दो”
26 जुलाई 2012 को नरेंद्र मोदी ने एक इंटरव्यू में गुजरात दंगे को लेकर ऐतिहासिक स्पष्टीकरण दिया. यह स्पष्टीकरण आक्रामक था और राजनीतिक रूप से लोगों को झकझोरने वाला था. नरेंद्र मोदी ने कहा, “2004 में मैं पहले भी कह चुका हूं. 2002 के सांप्रदायिक दंगों के लिए मैं क्यों माफी मांगूं? यदि मेरी सरकार ने ऐसा किया है तो उसके लिए मुझे सरे आम फांसी दे दी जानी चाहिए. मुख्यमंत्री ने आगे भी दोहराया, “अगर मोदी ने अपराध किया है तो उसे फांसी पर लटका दो, लेकिन यदि मुझे राजनीतिक मजबूरी के चलते अपराधी कहा जाता है तो इसका मेरे पास कोई जवाब नहीं है.” मोदी के इस बयान के सामने उनके विरोधी निरुत्तर हो गये.
ऑस्ट्रेलिया ने किया मोदी का बचाव
जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के तौर पर जिम्मेदारी संभाली तो दुनिया की ज़ुबान बदल चुकी थी. ऑस्ट्रेलिया के पीएम टोनी एबॉट का वह बयान स्मरणीय है कि नरेंद्र मोदी को 2002 के दंगों के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए…वे अनगिनत जांचों में पाक साफ साबित हो चुके हैं.
सर्जिकल स्ट्राइक में दिखा मोदी का नया अवतार
29 सितंबर 2016 की तारीख देश और दुनिया के लिए यादगार तारीख है जब पीएम नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया. यह एक ऐसी घटना है जिसने भारत को एक मजबूत एशियाई ताकत के रूप में स्थापित किया. इससे पहले 10 जून 2015 को भी भारत ने म्यांमार में आतंकियों के विरुद्ध ऐसी ही कार्रवाई की थी. मगर, पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक ने मोदी को 56 इंच वाले नेता के रूप में स्थापित किया.
डोकलाम विवाद का रक्तहीन समाधान
18 जून 2017 को पैदा हुआ डोकलाम विवाद अगर बिना रक्तपात के टल सका, तो इसके पीछे सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का नया दौर ही है जोनरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हुआ. अब भारत अमेरिका-जापान-इंग्लैंड के खेमे में खुलकर है. चीन से स्पर्धा कर रहा है. दक्षिण एशियाई देशों में अपनी मजबूत पकड़ बना चुका है. यह सब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हुआ है.
जब नोटबंदी के फैसले से हिल गया देश
8 नवंबर 2016 की तारीख नरेंद्र मोदी के जीवन की यादगार तारीखों में एक है. इस दिन नोटबंदी का फैसला कर नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार और कालाधन पर चोट करने का दावा किया. इस मामले में उल्टा उन पर राजनीतिक हमला शुरू हो चुका है. फिर भी, अबतक हुए सभी सर्वेक्षणों और चुनाव नतीजों में जनता ने नोटबंदी पर नरेंद्र मोदी का साथ दिया है.
मोदी के हर फैसले से मजबूत हुआ उनका व्यक्तित्व
तीन तलाक के विरोध में नरेंद्र मोदी की सोच और उनकी सरकार के रुख ने मुस्लिम समाज में बड़ा बदलाव लाया है. वहीं, मैरिटल रेप जैसे मामलों पर मोदी सरकार समान तरीके से महिलाओं के हक में व्यापक दृष्टिकोण नहीं अपना सकी है. फिर भी एक से बढ़ कर एक पहल और उपलब्धियां हैं जो नरेंद्र मोदी अपने जन्मदिन पर देश को बतौर तोहफा गिना सकते हैं. मोदी का जन्मदिन 17 सितंबर है लेकिन एक नेता के रूप में, एक मुख्यमंत्री के रूप में, प्रधानमंत्री के रूप में जिन तारीखों ने उन्हें स्थापित किया है उनकी संख्या बहुत ज्यादा है. इन घटनाओं ने नरेंद्र मोदी को लगातार नये रूपों में जन्म दिया है.
(21 साल से प्रिंट व टीवी पत्रकारिता में सक्रिय, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखन. संप्रति IMS, नोएडा में एसोसिएट प्रोफेसर MAIL : prempu.kumar@gmail.com TWITER HANDLE : @KumarPrempu <https://twitter.com/KumarPrempu> )