कोई हमारे सपनों को हैक न कर ले
भारत में सियासत जोड़-घटाव, गुणा-भाग जैसी संक्रियाओं और समीकरणों के बूते ही अब तक सरकारें बनायी और गिरायी जाती रही हैं. आज भी इसी अंकगणित का इस्तेमाल करते हुए लगभग सभी पार्टियों ने लोकसभा के टिकट बांटे और राजनीति की तमाम नैतिकताओं व मर्यादाओं को ताक पर रख कर दलबदलुओं की अगवानी में पलकें बिछा […]
भारत में सियासत जोड़-घटाव, गुणा-भाग जैसी संक्रियाओं और समीकरणों के बूते ही अब तक सरकारें बनायी और गिरायी जाती रही हैं. आज भी इसी अंकगणित का इस्तेमाल करते हुए लगभग सभी पार्टियों ने लोकसभा के टिकट बांटे और राजनीति की तमाम नैतिकताओं व मर्यादाओं को ताक पर रख कर दलबदलुओं की अगवानी में पलकें बिछा दीं. मतदाता तो दूर, इन्होंने पार्टी के कार्यकर्ताओं की भावनाओं की भी परवाह नहीं की. बस चुनाव जीतना है, चाहे जिस सूत्र या समीकरण का सहारा लेना पड़े. इन दलों की मनमर्जी के लिए कौन जिम्मेवार है?
दरअसल, देश की लगभग आधी आबादी प्रबुद्ध है, जिसे राजनीतिक शब्दावली और इससे जुड़े तथ्यों को परखने का समुचित ज्ञान होते हुए भी मतदान केंद्रों पर कतार लगाना रास नहीं आता. इन प्रबुद्धों में बड़ी संख्या उन मतदाताओं की भी है जो सम्माननीय हैं, जानकार हैं. मगर इनकी उंगलियां इवीएम मशीनों पर शायद ही थिरकती हैं. ये आलेखों में अपना उद्गार व्यक्त करते हैं, चुनाव भी सहजता से संपादित कराते हैं, लेकिन मशीनों में इनका मत कभी दर्ज नहीं होता.
युवाओं को देखें तो इसमें करोड़ों ऐसे हैं जो मतदाता के रूप में नये हैं, जिनके अपने तौर-तरीके तथा बड़े-बड़े सपने हैं, लेकिन यह वर्ग भी जाति-धर्म और संप्रदाय से अछूता नहीं है. ये आज भी राजनेताओं द्वारा हल किये जानेवाले सवाल बने हुए हैं. वैसे चुनाव आयोग ने भी नोटा के विकल्प के साथ हमें स्पष्ट संदेश दिया है कि दागियों-दलबदलुओं की सफाई अब हमारे हाथों में है. लिहाजा आइए, इस बार के चुनावों में सोच-विचार कर ही फैसला करें और हर हाल में वोट करें! इससे पहले कि कोई हमारी उम्मीदें तोड़ दे, कोई हमारे सपनों को हैक कर ले!
रवींद्र पाठक, जमशेदपुर