कहने में कुछ खर्च नहीं होता

राजीव चौबे प्रभात खबर, रांची अंगरेजी में एक कहावत है, ‘इट इज ईजिअर सेड दैन बीन डन’. यानी, कहना आसान और करना मुश्किल है. दूसरे शब्दों में कहें तो आलोचना करना सबसे आसान काम है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि टी-20 वर्ल्ड कप के फाइनल वाले दिन युवराज सिंह ने धीमा खेल खेला […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 11, 2014 3:58 AM

राजीव चौबे

प्रभात खबर, रांची

अंगरेजी में एक कहावत है, ‘इट इज ईजिअर सेड दैन बीन डन’. यानी, कहना आसान और करना मुश्किल है. दूसरे शब्दों में कहें तो आलोचना करना सबसे आसान काम है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि टी-20 वर्ल्ड कप के फाइनल वाले दिन युवराज सिंह ने धीमा खेल खेला और भारतीय टीम को छह विकेटों से मिली हार में उनका बड़ा हाथ रहा. अनिश्चितताओं से भरे इस खेल के सबसे तेज माने जानेवाले उस संस्करण में उन्होंने 21 गेंदों पर 11 रन बनाये, जिसमें यह माना जाता है कि एक गेंद से जीत और हार का फर्क हो जाता है.

कैंसर की लड़ाई जीत कर भारतीय टीम में दोबारा जगह बनानेवाले ‘मिरैकल बॉय’ युवी के इस कमजोर परफॉर्मेस के लिए रेग्युलर मीडिया से लेकर सोशल मीडिया ने उन्हें निशाने पर लिया, जिसे जैसा मन आया वैसा कमेंट किया. लेकिन सवाल यह उठता है कि हार के लिए अकेले युवराज सिंह को कोसा जाना क्या सही है? भारत को पहला टी20 वर्ल्ड कप, दूसरा ओडीआइ वर्ल्ड कप और एक अंडर-19 वर्ल्ड कप दिलानेवाले खिलाड़ी को इस कदर लताड़ना क्या सही है?

वैसे तो साल के बारहों महीने किसी न किसी रूप में क्रिकेट चलता ही रहता है. जिस दिन जो टीम अच्छा खेली, उसने मैच जीता. किसी दिन कोई खिलाड़ी चमका, तो कोई फुस्स हो गया. और हम ऐसे निकम्मे हैं कि खराब खेलनेवाले खिलाड़ी के घर पर तोड़-फोड़ करने पहुंच जाते हैं. और कुछ इनमें से भी बड़े वाले कमीने टाइप के निकम्मे हैं, जो बिना उसके घर-परिवार को जाने-पहचाने उसके पीठ पीछे मां-बहन से जुड़े भद्दे विशेषणों से उसे अलंकृत करते हैं. कोई कहता है कि उसे टीम से बाहर कर देना चाहिए तो कोई कहता है कि उसे खेलना नहीं आता. अरे! अगर खेलना नहीं आता तो वह वहां तक पहुंचा कैसे? अगर उसे खेलना नहीं आता तो तुम ही भारतीय टीम में भरती होकर टीम के तारणहार क्यों नहीं बन जाते? तुम्हारा हाथ किसने रोका है?

हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जिन्हें विषय की जानकारी हो या न हो, लेकिन विशेषज्ञ बनने की खुजली जरूर रहती है. यह ठीक वैसा ही है कि देश के प्रधानमंत्री पद के दावेदार और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के सुशासन या कुशासन का बखान वह व्यक्ति करे, जो कभी गुजरात गया ही नहीं हो या उसके बारे में उसे गहराई से कुछ पता ही न हो.

वैसे खुशी की बात यह है कि सारे लोग ऐसे नाफरमान नहीं हैं. खिलाड़ियों में सचिन तेंडुलकर सहित महेंद्र सिंह धौनी, हरभजन सिंह, गौतम गंभीर, केविन पीटरसन और फिल्मी हस्तियों में अमिताभ बच्चन सहित मधुर भंडारकर, अरबाज खान, वरुण धवन, डीनो मोरिया, शोभा डे जैसी शख्सीयतों ने एक सुर में युवराज को सबसे बड़ा मैच विनर बताया है. अब आपका क्या कहना है?

Next Article

Exit mobile version