यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत

झारखंड में गुरुवार को लोकसभा की चार सीटों के लिए पलामू, चतरा, लोहरदगा और कोडरमा में जितनी बड़ी संख्या में मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया, वह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है. चुनाव आयोग ने भी इस बार उम्मीद जतायी थी कि गत चुनाव के मुकाबले मतदान का प्रतिशत बढ़ेगा. इसके पीछे कारण […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 11, 2014 4:03 AM

झारखंड में गुरुवार को लोकसभा की चार सीटों के लिए पलामू, चतरा, लोहरदगा और कोडरमा में जितनी बड़ी संख्या में मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया, वह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है. चुनाव आयोग ने भी इस बार उम्मीद जतायी थी कि गत चुनाव के मुकाबले मतदान का प्रतिशत बढ़ेगा. इसके पीछे कारण थे. पहले चरण में जिन चार सीटों पर चुनाव हुए हैं, वे नक्सल प्रभावित माने जाते हैं. नक्सलियों ने कई इलाकों में चुनाव बहिष्कार की भी घोषणा की थी. पोस्टर चिपकाये थे.

बम विस्फोट किये थे. आतंक इतना था कि प्रचार करने के लिए प्रत्याशी दूरदराज के गांवों में जाने से हिचक रहे थे. कई प्रत्याशियों को यह बता दिया गया था कि वे गांवों में प्रचार के लिए रात में न जायें. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितना भय था. चुनाव में सरकार की ओर से भी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गयी थी. जितनी बड़ी संख्या में लोगों ने वोट किया, उससे लगता है कि उन पर नक्सलियों की धमकी का असर नहीं पड़ा. जिन चार क्षेत्रों में आज मतदान हुए, उन क्षेत्रों में 2009 के लोकसभा क्षेत्र में औसतन 50 फीसदी मत ही पड़े थे. यानी आधे लोग ही लोकतंत्र के इस बड़े पर्व में हिस्सा लिया था. आधे लोगों की भागीदारी नहीं हुई थी.

इस बार 18 साल की उम्र पूरी कर वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करानेवाले युवा मतदाता भी उत्साह के साथ निकले. वोट दिया. यह ऐसे ही नहीं हुआ है. जिस तरीके से चुनाव में वोट प्रतिशत घट रहा था, वह खतरनाक था. इसके लिए चुनाव आयोग से लेकर मीडिया ने भी मतदाताओं को जागरूक करने का अभियान चलाया है. सरकार की ओर से भी सक्रियता रही. इसका असर दिखा. लोगों को बताने में ये संस्थाएं सफल रहीं कि बगैर वोट दिये कुछ नहीं किया जा सकता है. बेहतर प्रत्याशी को अगर चुनना है तो इसके लिए वोट तो देना होगा. चुनाव का लगभग शांतिपूर्ण होना भी बड़ी उपलब्धि है. 10-15 साल पहले तक के चुनाव में बूथ लूटने में गोली चलती थी. दलों में संघर्ष होता था और 30-40 लोग राज्य में मारे जाते थे. अब ऐसी स्थिति नहीं है. हां, कुछ जगहों पर छोटी-छोटी घटनाएं घटी हैं, लेकिन हालात बेहतर हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि अगले चरणों में मतदाता इससे ज्यादा उत्साह से निकलेंगे.

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