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प्रोत्साहन पैकेज के फायदे

कृषि, आवास निर्माण क्षेत्र, रेलवे, सड़क, आदि में इस पैकेज के इस्तेमाल से जीडीपी की दर अच्छी हो जायेगी. अगर सरकार अभी पैकेज का ऐलान करती है, तो उम्मीद है कि अगले साल की पहली तिमाही (जनवरी-मार्च 2018) में हमारी जीडीपी छह प्रतिशत को पार कर सकती है. बीते बुधवार को हुई कैबिनेट मीटिंग के […]

कृषि, आवास निर्माण क्षेत्र, रेलवे, सड़क, आदि में इस पैकेज के इस्तेमाल से जीडीपी की दर अच्छी हो जायेगी. अगर सरकार अभी पैकेज का ऐलान करती है, तो उम्मीद है कि अगले साल की पहली तिमाही (जनवरी-मार्च 2018) में हमारी जीडीपी छह प्रतिशत को पार कर सकती है.
बीते बुधवार को हुई कैबिनेट मीटिंग के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि सरकार की नजर अर्थव्यवस्था पर है और मौजूदा आर्थिक सुस्ती को दूर करने के लिए जल्दी ही पैकेज का ऐलान हो सकता है.

यह ऐसी स्थिति है, कि जब पानी गले तक आ जाये, तब हम चेतें. सरकार को यह पहले से ही पता है कि पिछले 20 महीने यानि दिसंबर 2015 के बाद से अगस्त 2017 तक के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार धीमी होती रही है. सरकार यह समझ ही नहीं पायी कि ऐसा क्यों हुआ. अगर पिछली पांच तिहाइयों यानी 15 महीने का जीडीपी (सकल घरेलू उत्पादन) का आंकड़ा देखते हैं, तो पता चलता है कि वह किस तरह से लगातार नीचे गिरता रहा है और सरकार चुपचाप देखती रही है.

मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह आंकड़ा 5.7 प्रतिशत आया है, जो पिछली 13 तिमाहियों में सबसे कम है, जबसे यह सरकार आयी है. अब जो इकोनॉमी फीडबैक आ रहा है, उससे यही लगता है कि आगामी दिनों में जीडीपी 5.7 से भी नीचे गिर सकती है और अक्तूबर-दिसंबर 2017 की तिमाही में यह 5 प्रतिशत से थोड़ा ही ऊपर रह सकता है. कुल मिलाकर, यह एक अच्छी बात है कि सरकार अब जाकर इस स्थिति को समझी है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में चारों तरफ से गिरावट आ रही है और इसीलिए वित्त मंत्री ने पैकेज लाने की बात कही है.

यह स्थिति बनी क्यों? इसकी तह में जायें, तो यह साफ दिखता है कि अरसे से मैन्यूफैक्चरिंग ग्रोथ में भारी गिरावट है, सेवा क्षेत्र चार साल की गिरावट पर है, औद्योगिक उत्पादन भी चार साल की गिरावट पर है, और कृषि क्षेत्र जो थोड़ी ठीक चल रही थी वह भी अब गिरावट पर है. वहीं दूसरी ओर मध्य वर्ग उत्तेजित हो रहा है, क्योंकि उसके पास नौकरियां नहीं हैं. किसान परेशान है, क्योंकि उसको उपज का दाम नहीं मिल रहा है. एक्सपोर्ट इंडस्ट्री का भी बुरा हाल है. ऊपर से नोटबंदी और जीएसटी की अलग ही मार पड़ी है. इन सब विषम परिस्थितियों के बीच कोई भी अर्थव्यवस्था तेजी नहीं पकड़ सकती. यही वजह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अपने बुरे दौर से होकर गुजर रही है. सरकार को जब यह महसूस हुआ, तो उसने सोचा कि अब खुद खर्च करना पड़ेगा, नहीं तो आगे जाकर इस वित्त वर्ष के पूरा होते-होते जीडीपी का छह प्रतिशत पर पहुंचना भी मुश्किल हो जायेगा. इसीलिए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वाणिज्य मंत्री और पीएमओ के अधिकारियों आदि के साथ बैठक में चर्चा के बाद कहा कि पैकेज लाना पड़ सकता है.
यहां एक महत्वपूर्ण बात यह है कि बीते दो सालों में 9 एक्साइज पेट्रोलियम तेल पदार्थों से केंद्र सरकार को 2 लाख 73 हजार करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ है, और राज्यों को 188 हजार करोड़ रुपये का राजस्व मिला है. सरकार यह बताये कि इतने पैसे का इस्तेमाल उसने किन-किन क्षेत्रों में किया है. सड़क-निर्माण में किया या रेलवे में किया, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में किया या आवासीय योजना में किया, यह सरकार को बताना चाहिए. अगर तेल की कीमतें बढ़ाकर सरकार ने राजस्व में वृद्धि की है, तो उसका इस्तेमाल कहां और किन क्षेत्रों में किया, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. लेकिन, जब अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गयी है, तब सरकार पैकेज लाकर जनता के ऊपर व्यय करने की बात कर रही है. जबकि सरकार को यह पता है कि अर्थव्यवस्था को गतिमान रखने के लिए पब्लिक एक्सपेंडिचर (सरकारी व्यय) को बढ़ावा देने की जरूरत होती है. यह काम सिर्फ सरकार ही कर सकती है, क्योंकि निजी क्षेत्रों का जो हाल है, उनके बस की यह बात नहीं कि वे कुछ कर सकें.
वित्तीय अनुशासन को संस्थागत रूप देने, वित्तीय घाटे को कम करने और माइक्रो इकोनॉमिक मैनेजमेंट को बढ़ावा देने के साथ ही बैलेंस और भुगतान को व्यवस्थित करने के उद्देश्य से बनाये गये फिसकल रिस्पांसिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक्ट (एफआरबीएमए) में एक प्रावधान है कि आर्थिक संकट की स्थिति में सरकारी व्यय बढ़ाकर अर्थव्यवस्था की गति को सुधारा जा सकता है. इसी सुधार के लिए वित्त मंत्री ने स्टीमुलस पैकेज (प्रोत्साहन पैकेज) की बात की है. यह पैकेज 35 से 40 हजार करोड़ रुपये का होता है, इससे अधिक का प्रावधान नहीं है. इस पैकेज पर प्रधानमंत्री अपनी मुहर लगाते हैं, तभी यह जनता के लाभ के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है.
आपको याद होगा, साल 2008 में जब दुनियाभर में आर्थिक मंदी आयी थी, उसी दौरान मुंबई में 26/11 की घटना हुई थी. तब कुछ दिनों के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वित्त मंत्री बने थे और पी चिदंबरम को गृह मंत्री बना दिया गया था. तब मनमोहन सिंह ने स्टीमुलस पैकेज लाने का निर्णय लिया था, ताकि वैश्विक मंदी का लोगों पर असर न हो सके. तब मनमोहन सिंह ने 29,100 करोड़ रुपये का यह पैकेज दिया था, जिसकी वजह से कई ड्यूटी कटौती और टैरिफ दिया गया था. कई क्षेत्रों में जनता को टैक्स के बोझ से बचाया गया, जिससे उस पर आर्थिक मंदी का असर नहीं पड़ पाया और भारतीय अर्थव्यवस्था भी सुचारू रूप से गतिमान रही.
इस पैकेज के तहत पैसा जब व्यवस्था में आता है, जनकल्याणकारी योजनाओं में इसका इस्तेमाल होता है, तब खुद ही अर्थव्यवस्था गतिमान रहेगी. क्योंकि, तब लोगों पर आर्थिक बोझ कम होगा और उनके खर्च की क्षमता भी बनी रहेगी. जनकल्याणकारी योजनाओं में सरकारी व्यय से लोगों के पास पैसे आयेंगे और खरीदारी बढ़ेगी, जिससे कि मार्केट में तेजी रहेगी और अर्थव्यवस्था गतिमान होगी. कृषि, आवास निर्माण क्षेत्र, रेलवे, सड़क, आदि में इस पैकेज के इस्तेमाल से जीडीपी की दर भी अच्छी हो जायेगी. अगर सरकार अभी पैकेज का ऐलान करती है, तो उम्मीद है कि अगले साल यानि 2018 की पहली तिमाही (जनवरी-मार्च 2018) में हमारी जीडीपी छह प्रतिशत को पार कर सकती है.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
संदीप बामजई
आर्थिक पत्रकार
sandeep.bamzai@gmail.com

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