।। सत्य प्रकाश चौधरी।।
(प्रभात खबर, रांची)
तपती धूप में रुसवा साहब कुम्हलाये हुए ‘आप’ की दुकान की ओर चले आ रहे थे. चेहरे पर खुशी की एक लकीर थी जो बरसों की उदासी से दबी लग रही थी. शायद कुछ ऐसी ही खुशी की लकीर छोड़ दी गयी उस बीवी के चेहरे पर अब होगी, जिसे उसके शौहर ने 45 साल बाद अपना माना है. कानूनी मजबूरी के चलते ही सही, माना तो. हां, खुशी की लकीर और चौड़ी हो जाती, अगर उसे यह खबर मीडिया से नहीं, खुद शौहर से मिलती.
दरअसल, शौहर इस बार कोई जोखिम नहीं लेना चाहता, क्योंकि उसे मुल्क का तख्तो ताज दिख रहा है. वह नहीं चाहता कि चुनाव के बाद कोई उसके चुनावी हलफनामे को चुनौती दे और कहे कि देखो इसने निजी जिंदगी से जुड़ी जानकारियां छिपायी हैं. वह नहीं चाहता कि सामने आयी खाने की थाली को कोई मक्खी इसमें गिर कर सामने से हटवा दे. पप्पू पनवाड़ी ने रुसवा साहब के चेहरे पर खुशी की लकीर को पकड़ लिया और ऐसे खुश हुए मानो लापता मलयेशियाई हवाई जहाज का मलबा ढूंढ़ निकाला हो. बोले-‘‘कहिए रुसवा साहब, अच्छे दिन आनेवाले हैं के नारे का असर आप पर भी हो गया है क्या?’’
रुसवा साहब चिढ़ गये, ‘‘मियां, ये बाल धूप में सफेद नहीं हुए हैं. इन झूठे ख्वाब दिखानेवालों को तब से देख रहा हूं जब तुम निक्कर पहन कर घूमते रहे होगे. मुङो तो बस इस बात की खुशी है कि चुनाव में नेता नंगे होकर जनता के सामने आ गये हैं.’’ पप्पू ने पान बढ़ाते हुए कहा, ‘‘ठीक कह रहे हैं. भाजपा का एक नेता बोला कि केजरीवाल हमदर्दी हासिल करने के लिए खुद ही अपने को थप्पड़ मरवा रहे हैं. बताइए भला!’’ रुसवा साहब ने समझाया, ‘‘केजरीवाल जनता के बीच का आदमी है इसलिए ऑटोवाला भी ऐसी हिम्मत कर ले रहा है. मोदी या राहुल पर थप्पड़ चलाने की बात सोच कर ही उसकी पैंट गीली हो जायेगी. नाराज होने की जरूरत नहीं, यह बताता है कि आम आदमी केजरीवाल को अपने बराबर का आदमी समझ रहा है.
अपना सेवक मान रहा है.’’ अब जो खुशी की लकीर रुसवा साहब के चेहरे पर थी वह पप्पू के चेहरे पर भी नुमाया होने लगी. रुसवा साहब ने बात आगे बढ़ायी, ‘‘अब समाजवादी नेताजी को देख लो. साल-दो साल पर वह ऐसा बयान जरूर देते हैं जिससे साफ हो जाता है कि औरतों के बारे में उनकी सोच खाप वाली है. याद है न वह पिछला बयान, जब उन्होंने कहा था कि महिला आरक्षण से ऐसी औरतें चुन कर आयेंगी जिन्हें देख लोग सीटियां बजायेंगे. उन्होंने अपनी पतोहू डिंपल का भी लिहाज नहीं किया था. लेकिन इस बार तो उन्होंने हद ही कर दी. बलात्कारियों से उनकी हमदर्दी देख कर लगा कि वह रैली में मर्दो को नहीं, बलात्कारियों को संबोधित कर रहे थे. वहां औरतें भी थीं, पर लगता है कि वह उन्हें किसी खाने में नहीं गिनते. समाजवादी भैया लैपटॉप खूब बंटवा रहे हैं, काश कुछ आधुनिक सोच भी बंटवा पाते!’’