बचपन बचाओ, देश बचाओ
नोबेल से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी अपनी पूरी टीम के साथ ‘बचपन बचाओ- देश बचाओ’ आंदोलन में लगी हुई है. लेकिन हमारे गांव-कस्बों, शहरों की गंदी बस्तियों में रहनेवाले बच्चे अपना बचपन नहीं जी रहे हैं. उन्हें छोटे-मोटे कामों में लगा दिया जाता है. कहीं घरेलू नौकर के रूप में, तो कहीं होटलों और ढाबों में […]
नोबेल से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी अपनी पूरी टीम के साथ ‘बचपन बचाओ- देश बचाओ’ आंदोलन में लगी हुई है. लेकिन हमारे गांव-कस्बों, शहरों की गंदी बस्तियों में रहनेवाले बच्चे अपना बचपन नहीं जी रहे हैं. उन्हें छोटे-मोटे कामों में लगा दिया जाता है. कहीं घरेलू नौकर के रूप में, तो कहीं होटलों और ढाबों में नारकीय स्थिति में उन्हें काम करते हुए देखा जा सकता हैं.
करोड़ों बच्चे अमानवीय और नारकीय जीवन जीने को अभिशप्त हैं. सरकार ने भी इस दिशा में कड़े कानून बनाये हैं और उसका क्रियान्वयन कर रही है. सरकार व सामाजिक संगठनों को निरंतर प्रयास जारी रखने से ही इस सामाजिक बुराई पर विजय पायी जा सकती है. लेकिन जब तक गरीबी और निर्धनता खत्म नहीं होगी, इसका समूल नाश संभव नहीं दिखता.
युगल किशोर, रांची