हमारे संकल्प उनके इरादे

संतोष उत्सुक व्यंग्यकार अपने न्यू इंडिया से, अस्वच्छता, गरीबी, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, संप्रदायवाद व जातिवाद, अब धीरे-धीरे पलायन कर रहे हैं, क्योंकि निर्माण युग के नये प्रखर नायक द्वारा देशवासियों को संकल्प दिलाये कई सप्ताह हो चुके हैं. कोई विराट व्यक्तित्व कुछ करने पर तुल जाये, तो दुनिया बदल सकता है. कुछ समय बाद ‘सच्ची’ खबरों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 27, 2017 6:09 AM
संतोष उत्सुक
व्यंग्यकार
अपने न्यू इंडिया से, अस्वच्छता, गरीबी, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, संप्रदायवाद व जातिवाद, अब धीरे-धीरे पलायन कर रहे हैं, क्योंकि निर्माण युग के नये प्रखर नायक द्वारा देशवासियों को संकल्प दिलाये कई सप्ताह हो चुके हैं. कोई विराट व्यक्तित्व कुछ करने पर तुल जाये, तो दुनिया बदल सकता है.
कुछ समय बाद ‘सच्ची’ खबरों व ‘रंगीन’ विज्ञापनों से पता चल जायेगा कि इन सातों क्षेत्रों में उन्नति का कितना इतिहास रचा गया. हमारे समाज में लक्की सेवन की संकल्पना अब भी बरकरार है, संकल्प भी ‘सात’ के बारे में लिया गया है, क्या पता ‘भाग्यशाली’ साबित हो ही जाये.
इतिहास परिवर्तनशील और शरीफ होता है, जिसे जब चाहें जितना मर्जी बदल सकते हैं, वह बुरा नहीं मानता. हां जिन राष्ट्र निर्माताओं ने सत्तर वर्ष तक सोची-समझी योजना, पैनी दृष्टि, सच्चे सौदे, पक्के इरादों व समझदारी भरे क्रियान्वयन से इन क्षेत्रों में सफलता का इतिहास लिखा है, उन्हें जरा बुरा लग सकता है.
कहीं यह वही बात तो नहीं हुई कि पहले पैसे लेकर अवैध निर्माण होने दो, फिर कानून की दुहाई देते हुए उसे तुड़वाना शुरू कर दो. एक पुराने संकल्प में जिंदगी डिजिटल करने का कार्यक्रम शुरू है, लेकिन करोड़ों भूखे पेट, करोड़ों नंगे शरीर व करोड़ों आवासहीन नागरिक रोटी कपड़ा मकान के चक्कर में फंसे हैं.
देश में हत्याएं करनेवाली नासमझ भीड़, औरतों-बच्चों के शिकारी, अवैध वसूली करनेवाले, नफरत फैलानेवाले, दहेज लेनेवाले, बूढ़े-बीमारों की अनदेखी करनेवाले, देश की हरियाली व नदियों के दुश्मन बढ़ते जा रहे हैं.
विदेशियों के इरादे अजीब हैं, एक कंपनी ने अपने कर्मचारियों की त्वचा में, अंगूठे और तर्जनी के बीच माइक्रोचिप लगा दी है, जिसे कर्मचारियों ने बहुत पसंद किया. दुनियाभर की कंपनियों की नजरें इस नयी तकनीक पर जा चिपकी हैं, जिससे कई काम हाथ हिलाने मात्र से हो जायेंगे.
जापान में रोबोट हर तरह का काम करते हैं. अब एक कंपनी ने रोबोट को अंत्येष्टि का काम सौंप दिया है. इससे वहां मरना सस्ता हो गया है. रोबोट का नाम ‘पेपर’ है और यह काम बौद्ध भिक्षु (रोबोट) का करेगा. जापान जैसे विकसित देश में मरने-दफनाने के लिए जमीन व पादरी समेत पांच लाख तक का खर्च हो सकता है.
लगता है ज्यादा विकास भी अच्छा नहीं होता. सोचता हूं, गौतम बुद्ध को यह सब जानकर कैसा लग रहा होगा. क्या उन्हें कभी लगा था कि दुनिया रोबोटी हो जायेगी. इंसान भी रोबोट होता जा रहा है. मेरी पत्नी गुस्से में मुझे कई बार पूछ चुकी है, ‘क्या मैं रोबोट हूं’ या वह समझा चुकी है ‘मैं रोबोट नहीं हूं’. क्या हमें विदेशियों की नकल करनी चाहिए?

Next Article

Exit mobile version