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समाज बदलती लड़कियां

शफक महजबीन टिप्पणीकार स्कूल हो या काॅलेज या कोई शैक्षिक संस्थान, शिक्षा के साथ ही छात्राओं की सुरक्षा भी जरूरी है. इस ऐतबार से बीएचयू की घटना पर आॅस्ट्रेलिया के लाट्रोब यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ईयान वूलफोर्ड का ट्वीट बहुत महत्व रखता है. ईयान कहते हैं- ‘प्रोफेसर होने के चलते हमारा कर्तव्य है कि हम अपने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 29, 2017 7:09 AM
शफक महजबीन
टिप्पणीकार
स्कूल हो या काॅलेज या कोई शैक्षिक संस्थान, शिक्षा के साथ ही छात्राओं की सुरक्षा भी जरूरी है. इस ऐतबार से बीएचयू की घटना पर आॅस्ट्रेलिया के लाट्रोब यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ईयान वूलफोर्ड का ट्वीट बहुत महत्व रखता है.
ईयान कहते हैं- ‘प्रोफेसर होने के चलते हमारा कर्तव्य है कि हम अपने विद्यार्थियों को सुरक्षा दें, न कि उनके खिलाफ पुलिस बुलायें. बीएचयू के शिक्षक अपने इस कर्तव्य को नहीं निभा पाये हैं, इसलिए उन्हें शिक्षक का पद त्याग देना चाहिए.’ इस ट्वीट पर गौर करें, तो विडंबना नजर आती है कि हमारे विश्वविद्यालयों में शिक्षक ऐसी सोच नहीं रखते.
आठ अप्रैल, 2015 को मुद्रा बैंक के उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था- ‘एक किसान अगर आम बेचे, तो उसे पैसा मिलता है. वही किसान आम का अचार बेचे, तो और अधिक पैसा मिलता है.
उस अचार को अगर बोतल में पैक करके बेचे, तो और भी अधिक पैसा मिलता है. लेकिन वहीं, अगर एक लड़की उस अचार के बोतल को लेकर खड़ी हो जाये, तो उसकी बिक्री बहुत बढ़ जाती है.’ यह कैसी विडंबना है कि एक लड़की की क्षमता उसके अपने गुणों के आधार पर नहीं, बल्कि उसकी शारीरिक बनावट के आधर पर आंकी जाती है. उसे विज्ञापन की वस्तु समझा जाता है.
ऐसी ही सोच देश के करीब हर पुरुष की दिखती है. बीएचयू में लड़कियों के साथ होनेवाली छेड़खानी की घटनाओं पर लड़कियों की शिकायत को अनसुना किये जाने के पीछे भी ऐसी ही सोच है. नहीं तो अपने हक के लिए धरना देती लड़कियों पर पुरुष पुलिस लाठियां नहीं चलाती. पुलिस का यह प्रहार एक मर्दवादी व्यवस्था का परिणाम है.
बीएचयू में अरसे से हो रही छेड़खानियों को लेकर लड़कियों में गुस्सा था, जिसने आंदोलन का रूप धर लिया. अनुचित बात है यह कहना कि लड़कियों के धरना देने या आंदोलन करने से बीएचयू की छवि खराब हो रही है. बल्कि बीएचयू की छवि तो तब खराब होती है, जब लड़के छेड़खानी करते हैं, अभद्रता करते हैं. कहना तो यह उचित होगा कि छेड़खानी के विरोध में लड़कियों के एकजुट होने से उनका सशक्तिकरण होगा और हमारा सहभागी लोकतंत्र भी मजबूत होगा. हमें तो गर्व होना चाहिए कि लड़कियां समाज में बदलाव लाने की कोशिश कर रही हैं.
उत्तर प्रदेश में नयी सरकार बनते ही छेड़खानी रोकने के लिए ‘एंटी रोमियो दस्ता’ बना था, जो स्कूलों-काॅलेजों के बाहर ज्यादा सक्रिय था.
लेकिन, बीएचयू में छेड़खानी की घटना होती रही और इस दस्ते का कहीं अता-पता तक नहीं चला. यह बीएचयू की प्रशासनिक कमजोरी ही है, जिससे लड़कियों को धरने पर बैठना पड़ा. क्या ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना’ ऐसे ही सफल होगी? हमें लड़कियों की हक की आवाज सुननी ही होगी.

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