मुद्दों पर बहस जरूरी
।। पवन के वर्मा।। (पूर्व राजनयिक व लेखक) भारत को बदलाव की दरकार है, लेकिन हर मतदाता को यह जानने का भी अधिकार है कि वह बदलाव कैसा होगा और उसकी दिशा क्या होगी. अगर लोगों को इन बातों की जानकारी नहीं मिल पाती है, तो देश के लोग, विशेष कर पढ़े-लिखे लोग किसी महत्वाकांक्षी […]
।। पवन के वर्मा।।
(पूर्व राजनयिक व लेखक)
भारत को बदलाव की दरकार है, लेकिन हर मतदाता को यह जानने का भी अधिकार है कि वह बदलाव कैसा होगा और उसकी दिशा क्या होगी. अगर लोगों को इन बातों की जानकारी नहीं मिल पाती है, तो देश के लोग, विशेष कर पढ़े-लिखे लोग किसी महत्वाकांक्षी भाषणबाज के हाथों का खिलौना बन जायेंगे, जो एक चालाक और सर्वव्यापी प्रचार अभियान पर बगैर किसी हिसाब-किताब के भारी मात्र में धन खर्च करता है.
चुनाव प्रक्रिया जारी है और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नागरिकों को अपनी पसंद जाहिर करने का यह एक मौका है. लोकतंत्र का अर्थ अनेक विकल्पों में से उस प्रत्याशी को चुनने की स्वतंत्रता से है, जिसकी पार्टी लोगों की भलाई के लिए सबसे उपयुक्त है. इसलिए यह हर पांच साल में महज कर्मकांडीय कारणों से होनेवाली कोई यांत्रिक प्रक्रिया नहीं है. इसमें हर प्रत्याशी के अच्छे-बुरे पहलुओं और हर पार्टी के गुण-दोषों को परखने की योग्यता और सोच-विचार की जरूरत होती है. यह समझदारी परिपक्व लोकतंत्र की निशानी है, जहां लोग समझ-बूझ के आधार पर निर्णय लेते हैं, न कि किसी भावना में बह कर या किसी तरह की हड़बड़ी की स्थिति में या किसी भेड़-चाल के प्रभाव में आकर निर्णय लेते हैं.
यह बात सही है कि कुछ राजनीतिक दलों द्वारा मीडिया में पैदा की गयी आक्रामक चकाचौंध के कारण उचित चयन कर पाना काफी हद तक मुश्किल हो गया है. दोनों प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी इसमें सबसे आगे हैं. निश्चित रूप से इन दलों के पास धन की कोई कमी नहीं है. राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी की तसवीरों से समाचार-पत्र भरे पड़े हैं. बिना इनके प्रचार के रेडियो सुनना मुश्किल है. बड़े-बड़े पोस्टरों से बड़े-बड़े नेता आपको देख रहे हैं. टीवी पर लंबे-लंबे विज्ञापन कार्यक्रमों में दिनभर बाधा डालते रहते हैं. लेकिन, इस चुनाव में प्रचार खर्च के मामले में भाजपा ने कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया है. मीडिया में भाजपा के सर्वोच्च नेता को दिखाते रहने की कोशिश में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी जा रही है. वे सर्वत्र और सर्वव्यापी हैं.
स्वाभाविक रूप से इस अभूतपूर्व प्रचार का उद्देश्य मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करना है. चुनावों में ऐसा करना वैधानिक भी है. लेकिन, ‘अच्छा’ विज्ञापन संदेश के सरल और संक्षिप्त होने पर निर्भर करता है. विज्ञापन में मसलों के विश्लेषण के लिए जगह नहीं होती. यह बस संदेश को रेखांकित करता है. इसमें साफ-साफ शब्दों में अपील की जाती है कि हमें वोट दें और दूसरों को खारिज करें. कम शब्दों में बात कह देना इसकी खासियत है, व्यापक वर्णन के लिये यहां जगह नहीं होती. मौजूदा चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ माहौल साफ है, और महंगाई, कमजोर प्रशासन तथा भ्रष्टाचार जैसी यूपीए गंठबंधन की असफलताएं सबके सामने हैं. ऐसे में मुख्य विरोधी दल के लिए प्रचार का आधार तैयार करना आसान हो गया है- कांग्रेस की आलोचना और भाजपा व इसके सर्वोच्च नेता को एकमात्र विकल्प के रूप में पेश करना.
प्रचार के अति सरलीकृत संदेश से परे सवाल पूछने का काम मतदाता का है. कांग्रेस की आलोचना तो ठीक है, लेकिन किस आधार पर आप यह दावा कर रहे हैं कि आप ही एकमात्र विकल्प हैं? आपकी नीतियां क्या हैं? अभी तक चली आ रही नीतियों से वे कैसे अलग हैं? क्या गुजरात मॉडल आपके सुशासन का एकमात्र प्रमाण है? अगर हां, तो क्या आप इसकी वास्तविक उपलब्धियों पर बहस-मुबाहिसे के लिए तैयार हैं? स्वास्थ्य और शिक्षा में गुजरात के खराब प्रदर्शन को आप कैसे स्पष्ट करेंगे? आप इसे कैसे स्पष्ट करेंगे कि राज्य के समूचे निवेश का 42 फीसदी सिर्फ पेट्रो केमिकल सेक्टर में ही आया है, जिससे महज कुछ बड़े कॉरपोरेट घराने ही लाभान्वित हुए हैं? गुजरात में किसान आत्महत्या के लिए क्यों मजबूर हो रहे हैं और औद्योगिक घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए ली गयी किसानों की जमीन का इतना कम मुआवजा क्यों दिया गया?
हमारे देश की विविधता को देखते हुए आपके पास अपेक्षाकृत विकसित राज्यों के बरक्स कम विकसित राज्यों के लिए क्या नीतियां हैं? आप भ्रष्टाचार कैसे मिटायेंगे, जब आप कर्नाटक में येदियुरप्पा जैसे नेताओं के साथ खड़े हैं, जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर मामले लंबित हैं? क्या आप मानते हैं कि भारत जैसे देश के लिए सामाजिक और धर्मिक सद्भाव बहुत महत्वपूर्ण है? अगर हां, तो आप मुजफ्फरनगर में उन विधायकों को सम्मानित क्यों कर रहे थे, जिन पर सांप्रदायिक दंगे भड़काने के आरोप हैं? आपकी विदेश नीति के मुख्य आधार क्या होंगे, और यह अब तक चली आ रही नीतियों से किस तरह अलग होंगे?
ये जरूरी सवाल हैं, लेकिन इनके जवाब विशाल पोस्टरों, रेडियो, टेलीविजन या समाचार-पत्रों के पूरे पन्ने के विज्ञापनों से नहीं मिलते हैं. भारतीय जनता पार्टी के सर्वोच्च नेता एक ‘बहुत करीबी’ एंकर के अलावा नीतियों को स्पष्ट करने के लिए किसी तरह के संवाद या प्रेस कांफ्रेंस करने से मना करते हैं. इस तरीके से जरूरी सवालों से परहेज और उनका सामना करने से बचते रहने की कोशिश के पीछे उनकी क्या सोच है? क्या उन्हें ऐसा लगता है कि हर तरह की मीडिया पर सरल, एकतरफा और पक्षपाती संदेश बार-बार दोहराने से मतदाता सम्मोहित होकर उन्हें अपना समर्थन दे देगा. या उनके मीडिया रणनीतिकार ऐसा मानते हैं कि मतदाता इतना भोला-भाला है कि उसके पास कोई सवाल नहीं है, और वह किसी कठपुतली की तरह प्रचार की धुन और नारों पर नाचेगा?
एक दृढ़ नेता और एक अधिनायकवादी नेता में अंतर होता है. भारत में मध्य वर्ग अकसर इन दोनों में अंतर नहीं कर पाता है, जैसा इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल की घोषणा के शुरुआती स्वागत में देखा गया था. क्या यह वर्ग अनजाने में फिर ऐसा ही करने के कगार पर तो नहीं है?
महज एक धारदार मीडिया और विज्ञापन आधारित प्रचार अभियान के बूते चुनाव लड़ना मतदाताओं की बौद्धिक क्षमता का गंभीर अपमान है. सभी राजनीतिक दल चुनाव प्रचार में धन खर्च करते हैं, लेकिन सिर्फ यही तरीका अपनी बात लोगों तक पहुंचाने का एकमात्र साधन नहीं हो सकता है. सभी राजनेताओं को यह बात ठीक से समझनी चहिए, और अगर वे ऐसा नहीं करते, तो इस बात का दबाव मतदाता की तरफ से आना चहिए. चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं को राजनेताओं से सीधे सवाल पूछने चाहिए और पार्टियों तथा प्रत्याशियों को उनका जवाब देने के लिए मजबूर करना चाहिए.
भारत को बदलाव की दरकार है, लेकिन हर मतदाता को यह जानने का भी अधिकार है कि वह बदलाव कैसा होगा और उसकी दिशा क्या होगी. अगर लोगों को इन बातों की जानकारी नहीं मिल पाती है, तो देश के लोग, विशेषकर पढ़े-लिखे लोग किसी महत्वाकांक्षी भाषणबाज के हाथों का खिलौना बन जायेंगे, जो एक चालाक और सर्वव्यापी प्रचार अभियान पर बगैर किसी हिसाब-किताब के भारी मात्र में धन खर्च करता है. अगर उसे सफलता मिल जाती है, तो उसे यह भरोसा हो जायेगा कि मतदाताओं को बेहतर की जरूरत नहीं है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का दावा करनेवाले इस देश के लिए इस स्थिति से बड़ी कोई और त्रसदी नहीं हो सकती है.
(यह स्तंभ पाक्षिक होगा)