..लेकिन हमें तो ‘नमो’ ही चाहिए

।। विली गेरमुंड।। (वरिष्ठ जर्मन पत्रकार, द बर्लिनर) रंग उड़ी हुई साड़ी पहने महिला बड़े जतन से मुर्गे की एक बोटी को धो रही है. उसे अपने परिवार के लिए खाना बनाना है. उसके बेटे, बेटियां और पति खेतों में काम करने के लिए गये हैं. यह प्याज कीपौध लगाने का समय है, इसलिए खेत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 13, 2014 3:24 AM

।। विली गेरमुंड।।

(वरिष्ठ जर्मन पत्रकार, द बर्लिनर)

रंग उड़ी हुई साड़ी पहने महिला बड़े जतन से मुर्गे की एक बोटी को धो रही है. उसे अपने परिवार के लिए खाना बनाना है. उसके बेटे, बेटियां और पति खेतों में काम करने के लिए गये हैं. यह प्याज कीपौध लगाने का समय है, इसलिए खेत के मालिक ने जमसौत में मिट्टी के घर में रहनेवाले लगभग सभी लोगों को बुलाया है. पटना से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित जमसौत एक छोटा सा गांव है. वहां के लोग जितना भी कमा पाते हैं, उसमें खुश हैं. कुछ सौ मीटर की दूरी पर ईंट के घरों में रहनेवाले जमसौत की महिलाओं को मुसहर (चूहा खानेवाली) कहते हैं. वो ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि जब पैसे नहीं होते हैं, तो वे लोग खेतों में से चूहों को पकड़ कर खाते हैं.

हाथ में चांदी जैसी चमकनेवाली चूड़ियां पहने एक महिला कहती है- नहीं, यहां पर अभी तक कोई नहीं आया है. उसके चारों ओर और पूरे देश में चुनाव प्रचार पूरे परवान पर है, लेकिन वह महिला घास काटने में व्यस्त है. भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को उम्मीद है कि 81.5 करोड़ वोटर उन्हें लोकसभा में बहुमत दिला देंगे. सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी, जिसका शासन 2004 से है, इस समय थकी हुई दिख रही है. परंपरागत पार्टियों से इतर नयी बनी आम आदमी पार्टी लोगों को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर रिझाने की कोशिश कर रही है.

हर एक वोट कीमती होता है. लेकिन बिहार में जमसौत के चूहा खानेवालों के पास किसी ने आने की जहमत नहीं उठायी जो 1.3 अरब लोगों की जनसंख्यावाले देश की जाति व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर आते हैं. हर तीन में से दो भारतीय को रोजाना दो डॉलर से कम में गुजारा करना पड़ता है. पिछले कई वर्षो में आíथक विकास के बावजूद बढ़ती महंगाई ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है.

करीब दो दशक पहले केरल से बिहार आयीं सुधा वर्गीज कहती हैं, मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे या नहीं, इसका फैसला गरीब ही करेंगे. आज उनकी संस्था ‘नारी गुंजन’ मुसहरों की लड़कियों के 50 केंद्र चला रही है.

वर्गीज दो कमरे के रंगे-पुते घर के सामने खड़ी हैं. कई वर्षो तक यही उनका घर हुआ करता था. खेत के मालिकों की धमकी की वजह से उन्हें वहां से भागना पड़ा. आज उस घर में कुछ मशीनें हैं जिससे कुछ सामान बनता है जिसका चुनाव प्रचार में बहुत बड़ा योगदान है. जमसौत की महिलाएं जब खाली होती हैं तब उस घर में सैनेटरी नैपकिन बनाती हैं जिसके एक पीस की लागत दो रुपये है. दीदी बताती हैं कि नैपकिन का इस्तेमाल परंपरागत रूप से कपड़े के साथ प्रयोग में लाये जा रहे बालू या राख से ज्यादा सुरक्षित है. कुछ लोग सुधा वर्गीज को दीदी ही कह कर बुलाते हैं. स्वास्थ्य पर इसके सकारात्मक प्रभाव को बिहार सरकार ने भी मान्यता दी. कुछ समय पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सरकारी स्कूल की लड़कियों को इसे मुफ्त में देने की बात कही थी. गरीब परिवारों को अपनी बेटियों को स्कूल भेजने का एक और कारण मिल गया. नीतीश कुमार को उम्मीद है कि मांएं उनकी पार्टी को वोट देकर कर्ज चुकायेंगी.

‘द ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास’ के लेखक और बिहार के मुख्यमंत्री के प्रवक्ता पवन कुमार वर्मा कहते हैं, पिछले कई वर्षो में बिहार का औसत विकास 11 फीसदी हुआ है. वो आगे कहते हैं कि बिहार की जनता का आíथक और सामाजिक विकास भी हुआ है.

19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जर्मनी की फार्मास्यूटिकल कंपनी होशेट ने बिहार में गरीबी की नींव रखी थी. कंपनी ने कृत्रिम नील की खोज की जिसने प्राकृतिक नील की जगह ले ली. नील बिहार से ही निर्यात होता था. तब से बिहार-जहां कामसूत्र लिखा गया था- विद्वेष का पर्यायवाची बन गया. पिछले कुछ वर्षो में बिहार में बदलाव आ रहा है. आद्री के निदेशक शैबाल गुप्ता कहते हैं- हमलोगों ने बड़े सामाजिक बदलाव देखे हैं. कोई नहीं जानता है कि महिलाओं का वोट किसको जायेगा.

मोदी को बिहार में हो रहे सुधार से बहुत कुछ लेना-देना नहीं है, फिर भी उनके नाम में चुंबक जैसी शक्ति है. बिहार में हर कोई जिसमें मुसलमानों का ठीकठाक प्रतिशत है, प्रधानमंत्री पद के इस हिंदू-राष्ट्रवादी उम्मीदवार के इतिहास के बारे में जानता. 2002 में मोदी चुपचाप बैठे रहे जब 2000 मुसलमानों की हत्या कर दी गयी थी. वे लोग ट्रेन में 58 हिंदुओं की हत्या का बदला ले रहे थे.

हिंदू-राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 से 2004 के दौरान परमाणु परिक्षण कर दक्षिण एशिया में हथियारों की होड़ शुरू कर दी थी. इस बार आरएसएस के लोग घर-घर जा कर मोदी के लिए वोट मांग रहे हैं.

भारत जहां कई भाषाएं हैं, कई संस्कृतियां हैं और सहनशीलता की परंपरा रही है, वह बदलाव के मुहाने पर खड़ा है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, प्रमुख जगहों पर बिठाने के लिए आरएसएस के 2000 लोगों को तैयार किया जा रहा है. उनका काम स्कूल और कॉलेज में पढ़ाई जानेवाली इतिहास की किताबों को फिर से लिखना होगा. भाजपा को लंबे समय तक फायदा पहुंचाने के लिए उन लोगों को पुलिस जैसे महत्वपूर्ण विभागों में बैठाया जायेगा. टाइम्स ऑफ इंडिया के एक विेषक ने वोटरों को चेताया है कि मोदी फासीवाद का थोड़ा नरम रूप लेकर आयेंगे.

इससे भारत के धनी वर्ग को कोई मतलब नहीं है. यहां तक कि रतन टाटा भी मोदी के कैंप में शामिल हो गये जो चाहता है कि ईसाई और मुसलमान अल्पसंख्यक हिंदू-शासन के सामने घुटने टेक दें. बड़ी वित्तीय मदद की बदौलत मोदी ने ऐसे आधुनिक प्रचार अभियान की शुरुआत की है जिसने भारत को सुनामी की तरह अपने कब्जे में ले लिया है. मोदी हर समाज की टोपी पहनते हैं, सिर्फ मुसलमानों की टोपी पहनने से उन्हें परहेज है. उनके समर्थक ‘हर हर महादेव’ की तर्ज पर ‘हर हर मोदी’ के नारे लगा रहे हैं.

दिल्ली में आनंद महिंद्रा कहते हैं कि कुछ लोग अपनी आजादी को लेकर चिंतित हो सकते हैं, लेकिन हमलोगों को एक मजबूत व्यक्ति की जरूरत है जो भ्रष्टाचार रोके और काम को आगे बढ़ाये. बिहार में 35 वर्ष के श्रवण कुमार पटना के गांधी मैदान में पिछले 15 वर्षो से मूंगफली बेच रहे हैं. मैदान में गांधीजी की मूíत के बगल में खड़े होकर कहते है, पूरे परिवार ने महंगाई को रोकने के लिए मोदी को वोट देने का फैसला किया है. मैदान के बाहरी किनारों पर रिक्शा चलानेवाले और कचरा बीननेवाले रात गुजारते हैं. अपना खाना वे छोटे-छोटे चूल्हों पर बनाते हैं. सामने की सड़क पर तेजी से जातीं कारों की बत्तियां उनके चेहरों पर ऐसे चमकती हैं मानो उनसे किये गये वादे कभी पूरे नहीं होंगे.

मूंगफली बेचनेवाले श्रवण कुमार बताते हैं, कुछ वर्षो पहले इस समय आपको यहां लूट लिया जाता. आज आप और मैं इस मैदान में सुरक्षित हैं. वह यह भी मानते हैं कि यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बदौलत हुआ है, फिर भी वो उनको वोट नहीं देंगे. कुमार कहते हैं, हमें नमो चाहिए.

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