टीवी पर देश-विदेश की जानकारी के लिए जब समाचार का चैनल लगाया, तो वहां विज्ञापन आ रहा था. दूसरे-तीसरे सभी समाचार चैनलों पर तरह-तरह के विज्ञापन आ रहे थे. समझ में नहीं आया कि ये समाचार के चैनल हैं या विज्ञापन के? विज्ञापन के बाद जब समाचार शुरू हुआ, लेकिन मात्र तीन-चार समाचार बताने के बाद उसमें ब्रेक हो गया और फिर विज्ञापन का दौर.
यह समझा जा सकता है कि विज्ञापन उनके लिए आय का स्रोत है. पर क्या इसके एवज में करोड़ों दर्शकों को विज्ञापन परोसकर उनपर अत्याचार करना ही एकमात्र उपाय है? दर्शकों को इस तरह से उबाकर ही उनके उद्देश्य की पूर्ति हो सकती है? चैनल वालों को सिर्फ विज्ञापनदाताओं के बारे में न सोच कर अपने दर्शकों की पीड़ा को भी समझना चाहिए.
गोविंद कुमार तिवारी, चुटिया, रांची