दो दिन पहले अखबार में खबर आयी ‘खिजरी ग्रामसभा द्वारा प्रशासन के प्रवेश पर प्रतिबंध’. यह खबर अंधोन्मुख विकास पर एक मौन प्रश्न है. एक तरफ प्रशासन के आने की प्रतीक्षा में पथराई आंखें और वहीं दूसरी तरफ बगावत के सुर.
हमें समझना होगा कि जिस तरह मछली जल के बगैर नहीं रह सकती, ठीक उसी तरह आदिवासी समाज भी जल, जंगल व गांव के वगैर महफूज नहीं रह सकते. सच में आज विकास सबसे बड़ी सियासत बन गया है. इसको झारखंड के आदिवासी समझते हैं, मगर बाकी समाज सावन के अंधे-सा बौराया हुआ है. वह यह समझने को तैयार नहीं है कि जिस चीज के विकास को लेकर आदिवासी समाज का विश्वास ही नहीं बन पा रहा है, उसे लेकर दबाव बनाने का मतलब क्या है?
प्रदीप कुमार सिंह, रामगढ़, इमेल से