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आतंक की अलग-अलग परिभाषा
आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर अक्सर ऐसी खबरें अफगानिस्तान, इराक, सीरिया अथवा पाकिस्तान से आती हैं कि किसी धार्मिक अथवा सांस्कृतिक कार्यक्रम में गोलीबारी हुई और बड़ी संख्या में लोग मारे गये. लेकिन, पिछले दिनों ऐसी ही खबर अमेरिका से आयी कि लास वेगास शहर में एक संगीत कार्यक्रम में नजदीकी एक होटल से […]
आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
अक्सर ऐसी खबरें अफगानिस्तान, इराक, सीरिया अथवा पाकिस्तान से आती हैं कि किसी धार्मिक अथवा सांस्कृतिक कार्यक्रम में गोलीबारी हुई और बड़ी संख्या में लोग मारे गये. लेकिन, पिछले दिनों ऐसी ही खबर अमेरिका से आयी कि लास वेगास शहर में एक संगीत कार्यक्रम में नजदीकी एक होटल से गोलियां बरसायीं गयीं, जिसमें 58 लोगों की जान चली गयी और 500 से ज्यादा लोग घायल हो गये.
इसके बाद जब सुरक्षाबलों ने इस शख्स को घेरा, तो उसने खुद को गोली मार ली. स्टीफन पैडक नामक इस शख्स ने घटना को अंजाम दिया था. म्यूजिक कंसर्ट का आनंद लेने आयी लगभग 20 हजार लोगों की भीड़ पर हमला कर उसने 58 लोगों की जान ले ली. लेकिन, अमेरिका और वहां की मीडिया ने अब तक उसे आतंकवादी करार नहीं दिया है.
उसके लिए हत्यारा, हमलावर, बंदूकधारी, लोन वुल्फ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है. किसी म्यूजिक कंसर्ट पर अंधाधुंध गोलीबारी कर सुनियोजित तरीके से 58 लोगों की जान लेने और पूरे अमेरिका में आतंक का खौफ फैला देनेवाले शख्स को आतंकवादी कहने से बचा जा रहा है, जबकि इसे अमेरिका की हाल की सबसे भयावह गोलीबारी की घटना बताया जा रहा है. इससे पहले जून, 2016 में फ्लोरिडा के एक नाइट क्लब में हुई गोलीबारी में 49 लोगों की जान चली गयी थी.
इसको लेकर अमेरिका और पश्चिमी देशों के रवैये पर सवाल उठ रहे हैं. दरअसल यह शख्स गोरा है, मुस्लिम अथवा अश्वेत नहीं है और किसी अन्य समुदाय अथवा धर्म से नहीं जुड़ा है. कहा जा रहा है कि अगर यह शख्स मुस्लिम होता, तो अब तक इसे आतंकवादी करार दे दिया गया होता.
आइएस ने दावा किया कि पैडक उनका सिपाही था. अमेरिकी एजेंसियों ने कहा कि ऐसे कोई प्रमाण नहीं मिले हैं. ठीक बात है कि इसकी जांच कर लेनी चाहिए, लेकिन यह भी सच है कि आतंकवाद को लेकर दोहरे मापदंड के कारण दुनियाभर में समस्याएं पैदा हुईं हैं.
आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल पश्चिमी देश अक्सर अपनी सहूलियत से करते हैं. अमेरिका और पश्चिमी देशों में साधारण विस्फोट भी आतंकवादी घटना माना जाता है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में जानलेवा हमले को पश्चिम और उनका मीडिया आतंकवादी नहीं, चरमपंथी घटना बताता है. जिस तरह से दुनिया आतंकवाद से जूझ रही है, ऐसे में वक्त आ गया है कि आतंकवाद को दोहरे चश्मे से देखने की प्रवृत्ति खत्म होनी चाहिए.
आइए, स्टीफन पैडक की पृष्ठभूमि भी जान लेते हैं. 58 लोगों की जान लेने वाला स्टीफन पैडक एक अमीर शख्स और बड़ा जुआरी था. वह एकाउंटेंट था, बाद में प्रोपर्टी और जुए के खेल में आ गया. कई फ्लैटों का मालिक था और उसे किराये से भारी आमदनी होती थी. वह अपनी प्रेमिका के साथ दो मंजिले घर में ठाठ से रहता था. घटना को अंजाम देने के लिए पैडक ने होटल के 32वें फ्लोर के एक कमरे को बुक किया था.
पुलिस ने इस कमरे से 24 हथियार बरामद किये हैं, जिनमें राइफल्स, शॉट गन्स, टेलिस्कोप और एके-47 शामिल हैं. वह 10 सूटकेस में हथियारों के अलावा हजारों राउंड गोलियां लेकर होटल पहुंचा था. गोलियों की बौछार करने के लिए उसने सेमी ऑटोमैटिक हथियारों को ऑटोमैटिक में तब्दील कर लिया था. उसके घर से भी भारी मात्रा में गोला बारूद मिला है.
उसकी कार से अमोनियम नाइट्रेट मिला है, जिसका इस्तेमाल बम बनाने में किया जाता है. होटल के उसके कमरे में जिस कदर हथियार बरामद हुए, उसे देख अमेरिकी पुलिस अधिकारी भी मान रहे हैं कि हमला को सोच समझकर और योजना बनाकर अंजाम दिया गया. साथ ही उसे इसके नतीजे मालूम थे. अमेरिकी कानून लोगों को हथियार खरीदने और रखने की इजाजत देता है.
इसके लिए कोई लाइसेंस की जरूरत नहीं होती. लास वेगास के एक जाने-माने होटल में पैडक इतनी बड़ी संख्या में हथियारों से भरे सूटकेस लेकर कैसे पहुंच गया, यह अलग जांच का विषय है. यह भी स्पष्ट हो गया है कि न तो वह सनकी था और न ही उसका ऐसा कोई मेडिकल रिकॉर्ड था. आश्चर्य की बात है कि इस सबके बावजूद अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां उसे आतंकवादी की श्रेणी में नहीं रख रही हैं.
अमेरिका के सभी प्रांतों की आतंकवाद को लेकर परिभाषा लगभग एक सी है और इस पर भी एक नजर डाल लेनी चाहिए. अमेरिकी कानून के अनुसार, ऐसा कोई भी काम आतंकवाद की श्रेणी में आता है, जिसमें हिंसा का इस्तेमाल लोगों को मारने या उन्हें भारी शारीरिक नुकसान पहुंचाने के मकसद से किया गया हो. सवाल उठता है कि क्या इस परिभाषा पर यह अपराध खरा नहीं उतरता. लेकिन, पुलिस कह रही है कि उन्हें अभी तक नहीं पता कि पैडक ने किस वजह से ऐसा किया.
वह बस इतना ही जानती हैं कि वह एक लोन वुल्फ हत्यारा था, यानी ऐसी घटना को अकेले अंजाम देने वाला व्यक्ति. इसलिए उसे आतंकवादी की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. अमेरिका और पश्चिमी देश अक्सर भारत और दुनियाभर के अन्य देशों को मानवाधिकारों का ज्ञान देते नजर आते हैं, लेकिन उनके यहां भेदभाव कितना गहरा है, इसके उदाहरण भरे पड़े हैं. आतंकवाद को लेकर तो उनका नजरिया पूर्वाग्रहों से भरा हुआ नजर आता है.
पश्चिमी देशों को आतंकवाद के प्रति दोहरे मानदंड अपनाना बंद करना होगा. पाकिस्तान आतंकवाद को रणनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करता है, उसको लेकर इन देशों का रवैया हमेशा से ढुलमुल रहा है.
अमेरिका के रवैये में अब जरूर थोड़ा परिवर्तन आया है. एक घटना से स्थिति और स्पष्ट होती है. आइएस ने नवंबर, 2015 में फ्रांस पर आतंकवादी हमला किया, जिसमें 130 लोग मारे गये थे. इसके बाद फ्रांस ने इस पेरिस हमले को युद्ध करार दिया था और आइएस के सीरिया स्थित ठिकानों पर बमबारी शुरू कर दी थी. इसके पहले रूस सीरिया स्थित आइएस ठिकानों पर जब हमले कर रहा था, तो इस कार्रवाई से कई पश्चिमी देश नाराज थे और अमेरिका तो इसके सख्त खिलाफ था.
अब परिस्थितियां इतनी गंभीर हैं कि यह रवैया नहीं चल सकता. वक्त आ गया है कि दुनिया के सभी प्रमुख देश आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर कड़ा संदेश दें, अपने नफे-नुकसान से रणनीति तय न करें.
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