चीन का पैंतरा

डोकलाम विवाद ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन से तुरंत पहले सुलझा लिया गया था तथा भारत और चीन पुरानी स्थिति बहाल करने के लिए राजी हो गये थे. तब कुछ जानकारों ने यह आशंका जतायी थी कि ब्रिक्स सम्मेलन को सफल बनाने के लिए यह चीन की चालाकी हो सकती है. अब यह आशंका सही […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 10, 2017 6:33 AM

डोकलाम विवाद ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन से तुरंत पहले सुलझा लिया गया था तथा भारत और चीन पुरानी स्थिति बहाल करने के लिए राजी हो गये थे. तब कुछ जानकारों ने यह आशंका जतायी थी कि ब्रिक्स सम्मेलन को सफल बनाने के लिए यह चीन की चालाकी हो सकती है.

अब यह आशंका सही साबित होती दिख रही है. खबरों के मुताबिक, डोकलाम में पुरानी जगह पर तो नहीं, परंतु उससे चंद किलोमीटर दूर चीनी सैनिक फिर से सड़क निर्माण के लिए जुटे हैं. चीन सीमा पर भारत के साथ बार-बार जोर आजमाइश करने पर आमादा है, तो उसके कारण उसकी दूरगामी रणनीति में खोजे जाने चाहिए. भूटान के साथ भारत की संधि है और इसके मुताबिक वक्त-जरूरत भारत को भूटान की सीमाओं की रक्षा करनी है.

डोकलाम क्षेत्र में भूटान के हिस्से पर चीन अपनी दावेदारी करता है और इसी तर्क से वहां सड़क बनाना चाहता है. अगर भारत भूटान की रक्षा में अपने सैनिक तैनात न करे, तो इसका मतलब चीन यही निकालेगा कि इलाके में उसके सैन्य-विस्तार को चुनौती देनेवाला कोई नहीं है. दक्षिण एशिया के अनेक पड़ोसी देशों के साथ भारत के अच्छे संबंध चीन को खटकते हैं.

डोकलाम में तनाव पैदा करके चीन थाह लेना चाहता है कि पड़ोसी देशों की सुरक्षा की अपनी पुरानी टेक पर भारत कहां तक टिक पाता है. अमेरिका, जापान, वियतनाम जैसों देशों के साथ मिलकर भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘वन बेल्ट वन रोड’ के बरक्स एक वैकल्पिक आर्थिक गलियारा बनाने की राह पर है. मध्य एशिया के देशों तक भारत की पहुंच पहले की तुलना में बढ़ी है और एक्ट एशिया पॉलिसी को भी गति मिली है.

भारतीय प्रभाव की इस बढ़ोतरी को चीन अपनी महत्वाकांक्षा की राह में अवरोध की तरह देखता है. एशिया में अमेरिकी ताकत कमजोर पड़ने के साथ चीन अपने लिए महाशक्ति बनने का मौका देख रहा है. ऐसे में सवा अरब की आबादीवाला लोकतांत्रिक देश भारत आर्थिक संभावनाओं और यूरोप के उदारवादी मुल्कों की बिरादरी में अपनी राजनीतिक पैठ के कारण चीन को मजबूत प्रतिद्वंद्वी प्रतीत हो रहा है.

बेशक चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 2022 में तीसरी बार राष्ट्रपति चुने जाने के लिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर होनेवाले चुनाव में अपनी जमीन तैयार करने की कोशिश में लगे हैं और इसमें डोकलाम-विवाद उन्हें मदद पहुंचा सकता है, लेकिन डोकलाम में तनाव पैदा करना चीन की दूरगामी रणनीति का हिस्सा है. भारत की जवाबी कूटनीति और रणनीति इस सोच के हिसाब से तय की जानी चाहिए.

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