पटाखों पर पाबंदी

दिल्ली और आसपास के इलाकों (एनसीआर) में पटाखों की बिक्री को प्रतिबंधित करने का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय सराहनीय है. इसे नागरिक अधिकारों की जीत के रूप में देखा जा सकता है. वैसे, इस फैसले पर सवाल भी उठाये जा रहे हैं. पटाखों के व्यवसायी और दुकानदार अपने कारोबार का रोना रो रहे हैं. कुछ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 11, 2017 6:35 AM
दिल्ली और आसपास के इलाकों (एनसीआर) में पटाखों की बिक्री को प्रतिबंधित करने का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय सराहनीय है. इसे नागरिक अधिकारों की जीत के रूप में देखा जा सकता है.
वैसे, इस फैसले पर सवाल भी उठाये जा रहे हैं. पटाखों के व्यवसायी और दुकानदार अपने कारोबार का रोना रो रहे हैं. कुछ लोग दिवाली के बेरौनक रहने और त्योहारों में हस्तक्षेप के तर्क भी दे रहे हैं. यह तकनीकी पेंच भी फंसाया जा रहा है कि जब तक वायु प्रदूषण के सबसे बड़े कारकों का निर्धारण नहीं हो जाता, तब तक पटाखों पर प्रतिबंध सरीखा कठोर फैसला उचित नहीं. इन तर्कों का कच्चापन और स्वार्थ भी बड़ा प्रकट है. जीवन को बचाये रखने से ज्यादा अहम और क्या हो सकता है? बगैर सांस लिये जीवन नहीं चल सकता है, पर सिर्फ सांस लेते रहने से जीवन के चलने की गारंटी नहीं हो जाती है.
जीवन को खतरा तब भी है जब सांस ली जा रही हवा जहरीली हो. अफसोस की बात है कि हवा के जहरीले होने के तथ्य पर एक जिम्मेदार समाज या सरकार के रूप में सचेत होने और जरूरी उपाय करने के मामले में हम अक्सर चूक जाते हैं. इससे जुड़ी हुई विडंबना यह भी है कि निदान के उपाय प्रशासन या विधायिका की तरफ से नहीं किये जाते, उसके लिए न्यायपालिका को आगे आना पड़ता है.
दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शुमार दिल्ली में बरसों से यही हो रहा है. वर्ष 2016 में दिल्ली की हवा में 2.5 माइक्रॉन से छोटे और सेहत के लिहाज से अत्यंत नुकसानदेह कणिकाओं (पार्टिकुलेट मैटर) की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से 29 गुणा अधिक थी. पार्टिकुलेट मैटर 2.5 के बारे में विशेषज्ञ कहते हैं कि इससे सिर्फ फेफड़े को ही नहीं, शरीर के बाकी जरूरी अंगों को भी भारी क्षति पहुंचती है और उसकी भरपाई नहीं हो सकती. दिल्ली को सांस के रोग रूप में इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. लेकिन वायु-प्रदूषण में कमी लाने की बहस इस बात पर अटकी है कि पहले कारण पता किया जाये कि सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण किस कारण से होता है.
उम्मीद की जानी चाहिए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद वायु प्रदूषण की समस्या पर सरकारें तत्परता से समाधान की ओर अग्रसर होंगी. फिलहाल, त्योहार के दौरान फैसले का पालन होना चाहिए तथा देश के अन्य हिस्सों में भी लोग पटाखे और आतिशबाजी के खतरे को समझते हुए विवेकपूर्ण तरीके से दीपावली मनायें. प्रशासनिक स्तर पर भी जागरूकता बढ़ाने तथा मौजूदा नियमों पर सख्ती बरतने की जरूरत है.

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