अरविंद केजरीवाल को थप्पड़ मारने की घटना पर आज तमाम बुद्धिजीवियों की सोच, प्रतिक्रि या और बातें एक सार्थक सोच और विवेक की ओर संकेत करती हैं. इधर लगातार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपहास हो रहा है.
आरोपों-प्रत्यारोपों के भीषण युद्ध में हमारा लोकतंत्र, हमारी सभ्यता-संस्कृति कहीं खो गयी सी लगती है. थप्पड़ मारना, जूते फेंकना, काली स्याही से मुंह काला करना- आक्रोश व्यक्त करने के ये तरीके हरगिज सभ्य और लोकतंत्रत्मक नहीं कहे जा सकते हैं.
यह आदिम और हिंसक प्रवृत्ति है, कहीं-कहीं इसे सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का जरिया भी बनाया जा रहा है. मैं देश की एक आम नागरिक होने के नाते कड़े शब्दों में इसकी भर्त्सना करती हूं. यह सिलसिला बंद हो, वरना दुनियाभर में हमारे देश की कैसी छवि बनेगी?
पद्मा मिश्र, जमशेदपुर