चुनावी वेला में छूट रहे ‘किताब बम’

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा बेहद महत्वपूर्ण पदों पर बिठाये गये कुछ नौकरशाहों एवं अन्य लोगों ने ऐन चुनावी वेला में उनकी सरकार को परेशानी में डालना शुरू कर दिया है. डॉ सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू और पूर्व कोयला सचिव पीसी पारख ने तो बकायदा किताबें लिख कर यूपीए के कामकाज पर गंभीर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 15, 2014 4:15 AM

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा बेहद महत्वपूर्ण पदों पर बिठाये गये कुछ नौकरशाहों एवं अन्य लोगों ने ऐन चुनावी वेला में उनकी सरकार को परेशानी में डालना शुरू कर दिया है. डॉ सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू और पूर्व कोयला सचिव पीसी पारख ने तो बकायदा किताबें लिख कर यूपीए के कामकाज पर गंभीर सवाल उठाये हैं. संजय बारू ने अपनी किताब के शीर्षक में ही मनमोहन सिंह को ‘संयोगवश बना प्रधानमंत्री’ कहा है. उन्होंने लिखा है कि मनमोहन सरकार पर असली नियंत्रण कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके नजदीकियों का था.

पारख ने भी यही बातें दोहराते हुए कहा है कि कई मंत्री मनमोहन सिंह के निर्णयों को नहीं मानते थे और कई बार उनके उलट काम करते थे. किताब की इन बातों पर बहस स्वाभाविक है और आनेवाले समय में इनके अलग-अलग आयाम भी सामने आयेंगे. मनमोहन सिंह के दस वर्षो के कार्यकाल को इतिहास तो परखेगा ही, चुनाव में मतदाता भी अपना फैसला सुनाएंगे.

लेकिन इन किताबी खुलासों पर कुछ और भी अहम सवाल उठ रहे हैं, जिन पर ठहर कर सोचा जाना चाहिए. ये किताबें ऐन चुनाव के मौके पर क्यों आयी हैं? क्या संजय बारू कांग्रेस से इस बात का बदला ले रहे हैं कि उन्हें यूपीए के दूसरे कार्यकाल में बड़ा ओहदा नहीं मिला? बारू अपनी बौद्धिक क्षमता से अधिक अपनी राजनीतिक वफादारी बदलने के लिए जाने जाते हैं. वे पिछले दो दशकों में केंद्र में बनी हर सरकार के साथ रहे हैं.

कहीं यह किताब अगली सरकार के साथ जुड़ने की रणनीति का हिस्सा तो नहीं? उधर, कोयला घोटाले के सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले में पीसी पारख का नाम भी है. कांग्रेस पार्टी और केंद्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक पर उनका हमला कहीं इस क्षोभ का परिणाम तो नहीं कि मनमोहन सरकार ने उन्हें बचाने की कोशिश नहीं की? आखिर यह लिखने का क्या अर्थ है कि कोयला घोटाले में प्रधानमंत्री को भी नामजद किया जाना चाहिए? सवाल यह भी है कि एक महत्वपूर्ण ओहदे पर बैठे व्यक्ति के संज्ञान में लायी गयी सूचनाओं को किताब के रूप में सार्वजनिक करना कहां तक सही है? हकीकत जो भी हो, चुनावी वेला में छूटे ये ‘किताब बम’ नुक्कड़ की सामान्य बतकही का हिस्सा बनने से ज्यादा असर शायद ही छोड़ पायेंगे.

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