महोदय, यह ठीक नहीं!
उम्दा वास्तु-शिल्प के साथ चमकदार इतिहास का मेल सोने पर सुहागा जैसा है. इस लिहाज से कर्नाटक के ‘विधान सौध’(विधानसभा) को अपनी हीरक- जयंती धूमधाम से मनाना ही चाहिए. वर्ष 1955 में इस भवन की नींव तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रखी थी. यह इमारत आधुनिकता के साथ भारतीय कला के मेल का शानदार उदाहरण […]
उम्दा वास्तु-शिल्प के साथ चमकदार इतिहास का मेल सोने पर सुहागा जैसा है. इस लिहाज से कर्नाटक के ‘विधान सौध’(विधानसभा) को अपनी हीरक- जयंती धूमधाम से मनाना ही चाहिए. वर्ष 1955 में इस भवन की नींव तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रखी थी.
यह इमारत आधुनिकता के साथ भारतीय कला के मेल का शानदार उदाहरण होने के साथ लोकतांत्रिक यात्रा की गवाह रही है. कर्नाटक के प्रतिष्ठित साहित्यकार यूआर अनंतमूर्ति का कहना था कि विविधता में एकता को प्रत्यक्ष और सार्थक ढंग जाहिर करनेवाले राज्यों में कर्नाटक का नाम सबसे पहले लिया जायेगा. वह कर्नाटक को बहुकेंद्री सत्ता का समाज कहते थे.
भाषायी आधार पर राज्यों के गठन के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें, तो अनंतमूर्ति की बात कन्नड़ अस्मिता की गर्वीली घोषणा कम और भारत के संघीय ढांचे में स्वीकृत सत्ता के बंटवारे के सिद्धांत के ज्यादा करीब लगती है. लिहाजा माना जा सकता है कि कर्नाटक विधानसभा अपनी स्थापना की हीरक जयंती मनाने जा रही है, तो प्रतीक रूप में वह भारत में लोकतंत्र की न रुकनेवाली धारा और उसमें समाये बहुलतावाद के दर्शन का उत्सव मना रही है.
लेकिन, असल सवाल है कि उत्सव किस रूप में मनाया जाये, ताकि बहुकेंद्री सत्ता-संरचना का संदेश उजागर हो. कर्नाटक विधानसभा के स्पीकर केबी कोलीवाड का प्रस्ताव है कि अगर विधानसभा के हर सदस्य को 13 ग्राम के सोने का बिस्किट और सचिवालय के हर कर्मचारी को चांदी का पत्ता दिया जाये, तो यह हीरक-जंयती की महिमा के अनुरूप होगा.
प्रस्ताव के बारे में एक बात बड़ी साफ है कि उसमें न तो प्रदेश की जनता के सुख-दुख की चिंता है और न ही सरकारी धन के उपयोग को लेकर कोई विवेक. कोलीवाड के प्रस्ताव को सूखे, बाढ़ और किसान की आत्महत्याओं के साक्षी रहे कर्नाटक की जनता की भावनाओं से खिलवाड़ के सिवा कोई और नाम नहीं दिया जा सकता है.
हीरक जयंती के लिए विधान सौध के नवीकरण पर 17 करोड़ रुपये और प्रकाश की व्यवस्था पर साढ़े तीन करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं और विधानसभा अध्यक्ष अगर समारोह के नाम पर 26 करोड़ रुपये का खर्चा ऊपर से और बढ़ाना चाहते हैं, तो माना यही जायेगा कि कर्नाटक के विधायकों ने इसे लोकतंत्र का नहीं, बल्कि अपने धन-वैभव के प्रदर्शन का उत्सव समझ लिया है.
सत्ताधारी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने विधानसभा के स्पीकर के प्रस्ताव पर एतराज जताकर अच्छा किया है. उम्मीद है कि सूबे के मुख्यमंत्री और विधायक लोकतंत्र की मर्यादा के अनुरूप फैसला लेंगे और सार्वजनिक धन का अनुचित इस्तेमाल नहीं करेंगे.