राहें रौशन रहें!
दीपोत्सव! घर-आंगन, चौक-चौबारे रंगोलियां, और दीपमालाएं. रोशनी की कड़ियां जुड़ते हुए अनंत तक अनवरत बढ़ती जायेंगी. हजारों सालों से चलता यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा. परंपरा इसी को तो कहते हैं, इसके शुरू और आखिर का कुछ अता-पता नहीं. बस इतना पता है कि परंपरा में शामिल होकर ही मनुष्य हुआ जा सकता है. […]
दीपोत्सव! घर-आंगन, चौक-चौबारे रंगोलियां, और दीपमालाएं. रोशनी की कड़ियां जुड़ते हुए अनंत तक अनवरत बढ़ती जायेंगी. हजारों सालों से चलता यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा. परंपरा इसी को तो कहते हैं, इसके शुरू और आखिर का कुछ अता-पता नहीं. बस इतना पता है कि परंपरा में शामिल होकर ही मनुष्य हुआ जा सकता है.
सारे त्योहारों की तरह दीपावली का भी यही संदेश होता है और ठीक-ठीक कहें, तो दीपावली में ही यह संदेश कहीं ज्यादा निखरकर सामने आता है.
दीपावली का भी एक विधान है, वह यूं ही नहीं आती. उसको पहले एक बुलावा जाता है. पूरब के अंचल में इस नेह-निमंत्रण का नाम है ‘यम का दीया.’ दिवाली के एक दिन पहले यम का दिया ‘बारने’ से दीपावली प्रारंभ होती है. परंपरा के सारे विधान अपने अंचरा में समेटे बैठी घर की दादी या मां बतायेंगी कि यम के दीये के लिए हमेशा मिट्टी के पुराने दीये का इस्तेमाल होता है, उस दीये का जो पिछले साल घर-आंगन में जला था. रिवाज है कि घर-आंगन में ऐन विहान-वेला तक जलते रहनेवाले दीप को संजो कर रख लेते हैं.
उसी को ‘बार कर’ दिवाली से एक रात पहले दीपोत्सव की शुरुआत करते हैं. दीपावली की परंपरा में जो पिछला है और जीवंत है, उसका अर्थ यम के दीये से खुलता है. यम का दीया यह बोध देता है कि पहले से एक सिलसिला चला आ रहा है, हम कुछ नया नहीं कर रहे हैं, बल्कि चले आ रहे सिलसिले को आगे बढ़ा रहे हैं. लेकिन, यम के दीये को फिर वापस घर में नहीं लाते, बाहर ही छोड़ देते हैं.
मतलब, परंपरा में जो आगे का हिस्सा है, उसमें हमें अपनी तरफ से कुछ नया जोड़ना है- परंपरा रूढ़ि न बन जाये, बल्कि उसमें नयी पीढ़ी अपनी प्रतिभा और परिश्रम से कुछ नया जोड़े, वह कुछ मौलिक करे, यह अपेक्षा होती है दीपावली के नये दीयों को. दीपावली इस अर्थ में चली आ रही परंपरा में नये अर्थ और नया जीवन भरने की चुनौती भी है.
इस दीवाली हर नये दीप में नव-ज्योति जगाते समय स्वयं से सवाल पूछें कि विरासत ने मानवीय मूल्यों की जो थाती हमें सौंपी है, उसे हमने कहां तक अक्षुण्ण और अखंड रखा, उसमें हमने कहां तक नव-सर्जन किया, तथा गरीबी, भ्रष्टाचार, हिंसा, अविश्वास, अहंकार और लालच के अंधेरे के खिलाफ समृद्धि, ईमानदारी, प्रेम, भरोसा, परोपकार और त्याग की रोशनी फैलाने का हमारा सफर कहां तक आगे पहुंचा. इस दीपोत्सव प्रभात खबर परिवार की ओर से आप सभी को सुख-सौभाग्य और समृद्धि की अशेष शुभकामनाएं!