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महिला-पुरुष दोस्ती का दोष कम नहीं!

देश में महिलाओं पर अत्याचार की घटनाएं नयी नहीं हैं. सन 2012 में अचानक हमारे अंदर का इनसान जाग उठा. सारा देश हैवानियत के खिलाफ गोलबंद हो गया. देश की महिलाओं को अपनी हिफाजत खुद करने के इरादे से कानून ने भी इतनी ताकत दे दी है कि इनकी एक शिकायत पर बेकसूर को भी […]

देश में महिलाओं पर अत्याचार की घटनाएं नयी नहीं हैं. सन 2012 में अचानक हमारे अंदर का इनसान जाग उठा. सारा देश हैवानियत के खिलाफ गोलबंद हो गया. देश की महिलाओं को अपनी हिफाजत खुद करने के इरादे से कानून ने भी इतनी ताकत दे दी है कि इनकी एक शिकायत पर बेकसूर को भी कड़ी सजा हो सकती है. फिर भी देश का यह कलंक मिटता नहीं.

आखिर क्यों? सच्चाई यह है कि कुछ हादसों को छोड़ दें तो बदनीयती और छेड़खानी के मामलों में महिला-पुरुष की ‘दोस्ती’ अहम भूमिका निभाती है. रिश्तों की दीवार दोस्ती से कमजोर होती है. जरा गौर करें, वेलेंटाइन जैसे ‘महोत्सव’ एकतरफा नहीं मनते. महिला-पुरुष दोस्ती वह अमरबेल है जो नारी रूपी वृक्ष के सहारे ही पलती है. समाज को कलंक मुक्त करने के लिए इस अमरबेल को फैलने से रोकना होगा.

एमके मिश्र, रातू, रांची

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