नोटबंदी के तात्कालिक प्रभाव जनहित में नहीं
आठ नवंबर को नोटबंदी का एक साल पूरा होगा. इस फैसले को सरकार भले ही दूरगामी परिणामों को सकारात्मक बताने का दावा कर रही हो, मगर इसके हालिया परिणाम तो कुल मिलाकर देश की विकास दर और जीडीपी के लिए के लिए नकारात्मक साबित हुए हैं. विश्व बैंक और एशियन डवलपमेंट बैंक जैसी वैश्विक संस्थाओं […]
आठ नवंबर को नोटबंदी का एक साल पूरा होगा. इस फैसले को सरकार भले ही दूरगामी परिणामों को सकारात्मक बताने का दावा कर रही हो, मगर इसके हालिया परिणाम तो कुल मिलाकर देश की विकास दर और जीडीपी के लिए के लिए नकारात्मक साबित हुए हैं. विश्व बैंक और एशियन डवलपमेंट बैंक जैसी वैश्विक संस्थाओं ने इसके लिए नोटबंदी और जीएसटी को ही जिम्मेदार ठहराया है. एक ओर सरकार डिजिटल इंडिया बनाने का दावा कर रही है.
वहीं दूसरी ओर व्यावसायिक बैंकों ऑनलाइन ट्रांजेक्शंस में बहुत ज्यादा चार्ज वसूल रहे हैं. नोटबंदी से भ्रष्टाचार पर रोक का दावा करना अच्छी बात है, मगर तमाम तरह के विरंोधाभासों को दूर करने के लिए सरकार को सोशल ऑडिट जैसी व्यवस्था को ‘करप्शन एलिमिनिशेन’ के तौर पर लागू करने में अब देरी नहीं करनी चाहिए.
रक्षित परमार, इमेल से.