क्षेत्रीय भाषाओं में न्याय
स्कृतिक और भौगोलिक बहुलता के लिहाज से भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय में एक विशिष्ट स्थान रखता है. विविधता में एकता हमारी राष्ट्रीय अखंडता का मूलभूत आधार है. उन्नत और उत्कृष्ट भाषाओं का संकुल हमारी संवेदना और सामंजस्य को इंद्रधनुषी आवरण प्रदान करता है. इस तथ्य के बावजूद यह भी एक बड़ा सच है कि सरकारी, प्रशासनिक […]
स्कृतिक और भौगोलिक बहुलता के लिहाज से भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय में एक विशिष्ट स्थान रखता है. विविधता में एकता हमारी राष्ट्रीय अखंडता का मूलभूत आधार है.
उन्नत और उत्कृष्ट भाषाओं का संकुल हमारी संवेदना और सामंजस्य को इंद्रधनुषी आवरण प्रदान करता है. इस तथ्य के बावजूद यह भी एक बड़ा सच है कि सरकारी, प्रशासनिक और न्यायिक कामकाज में क्षेत्रीय भाषाओं को समुचित स्थान और महत्व नहीं मिल सका है. ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की यह सलाह बहुत महत्वपूर्ण है कि उच्च न्यायालयों के फैसले संबंधित पक्षों को उनकी अपनी भाषा में उपलब्ध कराया जाना चाहिए. उन्होंने उचित ही कहा है कि आम लोगों तक न्याय को पहुंचाने के साथ यह भी जरूरी है कि उसी भाषा में फैसले उन्हें बताये जाएं, जिसे वे बखूबी समझते हैं.
उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में कागजात और फैसले अंग्रेजी में होते हैं. यदि स्थानीय भाषाओं को भी तरजीह दी जाये, तो बड़ी आबादी के लिए कानूनी प्रक्रिया और फैसलों तथा उनके खास बिंदुओं को समझ पाना आसान हो जायेगा. हमारे देश में अंग्रेजी बोलने और समझनेवाले लोगों की संख्या बहुत कम है तथा जो इस भाषा को ठीक से समझते हैं, वे अमूमन समाज के उच्च एवं उच्च मध्य वर्ग के लोग होते हैं. मुकदमों में उलझे अधिकतर लोगों को कानूनी प्रक्रिया में पूरी तरह से वकील और न्यायिक अधिकारियों पर निर्भर रहना पड़ता है. यदि वादी और प्रतिवादी को उनकी भाषा में दस्तावेज मुहैया कराये जायेंगे, तो उन्हें स्थिति को समझने और आगे की कार्रवाई करने में सहूलियत होगी.
यह सर्वविदित है कि हमारी न्यायिक व्यवस्था सक्षम और जिम्मेदार है, पर वह दोषमुक्त भी नहीं है. लंबित मामलों और कानूनी जटिलताओं का सबसे ज्यादा खामियाजा गरीबों और निम्न आयवर्गीय लोगों को ही भुगतना पड़ता है. राष्ट्रपति कोविंद ने भी अपने संभाषण में इस बात को रेखांकित किया है. न्यायालयों से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए बहसें लंबे समय से जारी हैं. यह सुकून की बात है कि इस दिशा में ठोस प्रयास भी किये जा रहे हैं. उम्मीद है, जैसा कि राष्ट्रपति ने भी कहा है, कि अदालतें क्षेत्रीय भाषाओं को अपनाने के लिए समुचित पहल करेंगी, ताकि भाषा की दीवार लोगों और न्याय के बीच किसी तरह की बाधा न बने.
तकनीकी और मानव संसाधन की उपलब्धता होने के कारण यह काम बहुत मुश्किल भी नहीं है. उच्च न्यायालय राज्यों की राजधानी में स्थित हैं और उन्हें स्थानीय भाषाओं में कागजातों को अनुदित कराने में परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा. राष्ट्रपति की इस सलाह को शासन-प्रशासन के अन्य क्षेत्रों में भी लागू करने पर विचार किया जाना चाहिए ताकि सही मायनों में आम लोगों की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं की पूर्ति हो सके.