नारे नहीं, योग्यता से आगे बढ़ेगी स्त्री

आये दिन महिला सशक्तीकरण, महिला-सुरक्षा, महिलाओं पर होने वाले अत्याचार जैसे कई विषयों पर कुछ-न-कुछ विचार आते रहते हैं. इसी कड़ी में विगत छह अप्रैल को एक खबर आयी. भारत में महिलाओं की स्थिति पर एक सर्वेक्षण. इसके मुताबिक अधिकतर महिलाएं परदे के भीतर जीवन गुजारती हैं, जो आज के विचार से एक तरह से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 19, 2014 3:01 AM

आये दिन महिला सशक्तीकरण, महिला-सुरक्षा, महिलाओं पर होने वाले अत्याचार जैसे कई विषयों पर कुछ-न-कुछ विचार आते रहते हैं. इसी कड़ी में विगत छह अप्रैल को एक खबर आयी. भारत में महिलाओं की स्थिति पर एक सर्वेक्षण.

इसके मुताबिक अधिकतर महिलाएं परदे के भीतर जीवन गुजारती हैं, जो आज के विचार से एक तरह से उन पर अत्याचार सदृश ही है. क्योंकि समाज में सबको समानता का मौलिक अधिकार प्राप्त है. यदि पुरुष परदे में रहना पसंद नहीं करते, तो महिलाओं के लिए परदा क्यों? क्यों नहीं महिलाएं भी खुले विचार से विचरण करें, मनमुताबिक हाट-बाजार करें?

बातें तो हम सभी ऐसी ही करते हैं, लेकिन हमारे सिद्धांत और व्यवहार में तालमेल नहीं है. दरअसल, ऐसे विचार साझा कर लोगों को मूर्ख बनाया जाता है और कोई नहीं चाहता कि भारतीय महिला परदे से बाहर आये. महिला सशक्तीकरण का विरोध न हो, लेकिन अनावश्यक बातों का विराध जरूर होना चाहिए. महिला स्वतंत्र होगी, तभी उनका सर्वागीण विकास होगा- ऐसी बात नहीं है. अगर महिलाओं को कोई रोक पाता, तो आज लक्ष्मीबाई, मीराबाई, इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, शीला दीक्षित, सुषमा स्वराज, मेनका गांधी, मीरा कुमार, मायावती, जयललिता, राबड़ी देवी, ममता बनर्जी जैसे नामों को कोई नहीं जानता. जिसमें प्रतिभा है उसे कोई भी शक्ति आगे बढ़ने से रोक नहीं सकती. चाहे वह स्त्री हो या पुरुष. हमें अपनी काबिलीयत सिद्घ करनी होगी. केवल नारेबाजी और गुटबंदी से कुछ भी हासिल नहीं होनेवाला. अगर अधिकांश महिलाएं पुरुषों से राय लेती हैं, तो इसका यह अर्थ नहीं निकला जाना चाहिए कि महिलाओं पर पुरुषराज कायम है.

धीरेंद्र कुमार मिश्र, गिरिडीह

Next Article

Exit mobile version