बाल दिवस पर बच्चों को दें किताब
क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार हाल ही में एक सेमिनार में बोलना हुआ था. विषय था- बुक्स एेज ए बाम. यानी क्या हमारी कठिनाइयां दूर करने में किताबें मरहम का काम करती हैं. आज बाल दिवस पर सोचना होगा कि क्या सचमुच किताबें किसी दुख-तकलीफ में हमारे काम आती हैं? क्या उन्हें दूर करके हमें खुशी […]
क्षमा शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
हाल ही में एक सेमिनार में बोलना हुआ था. विषय था- बुक्स एेज ए बाम. यानी क्या हमारी कठिनाइयां दूर करने में किताबें मरहम का काम करती हैं. आज बाल दिवस पर सोचना होगा कि क्या सचमुच किताबें किसी दुख-तकलीफ में हमारे काम आती हैं? क्या उन्हें दूर करके हमें खुशी प्रदान कर सकती हैं?
जब भी हम कोई अच्छी किताब पढ़ते हैं, तो वह हमें किसी दूसरी दुनिया में ले जाती है. वह हमें हमारे दुखों और चिंताओं से मुक्त करती है. लोग केवल शिक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि मनोरंजन के लिए भी किताबें पढ़ते हैं.
बहुत से लोग अपनी परेशानियों का हल खोजने के लिए मुड़-मुड़कर प्राचीन ग्रंथों, धर्मशास्त्रों, विज्ञान की पुस्तकों, पर्यावरण और जीव-जंतुओं से जुड़ी पुस्तकों की ओर देखते हैं. अपनी और दूसरों की समस्याओं का हल तलाश करने की कोशिश करते हैं.
किताब से जीवन की सभी समस्याएं हल हो सकती हैं, इसीलिए उसमें सरस्वती का निवास कहते हैं. विद्या की बातें होती हैं. किताब नीचे गिर जाये या उस पर पांव पड़ जाये, तो उसे उठाकर माथे से लगाकर सम्मान देना होता है.
इन दिनों बच्चों पर चारों ओर से तकनीक हावी है. उपहार के रूप में किताबों को देने का चलन भी कम हो चला है. एक समय ऐसा भी रहा है, जब कहा जाने लगा था कि किताबें जल्दी ही समाप्त हो जायेंगी, और बच्चों को पढ़ाने के लिए किताबों की जरूरत नहीं रहेगी. मगर यह पूरा सच नहीं है. किताब हमारे बच्चों के लिए किसी न किसी रूप में जरूरी बनी रहेगी.
लेकिन हां, उनका रूप बदल सकता है. वे कागज पर छपी होने के मुकबले इ-बुक्स का रूप ले लेंगी या किसी और नये रूप में आ जायेंगी. शिलालेखों और भोजपत्रों से लेकर इ-बुक तक किताब की यात्रा न केवल रोचक रही है, बल्कि श्रम साध्य भी रही है. आज लोग कहते हैं कि बच्चे अपने होम वर्क, टीवी, कंप्यूटर, नेट में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास किताब पढ़ने का समय नहीं है. मगर, इससे किताबों का महत्व खत्म नहीं हो जाता.
सच तो यह है कि अगर एक बच्चा कोई कहानी की किताब पढ़ता है, उसे वह पसंद आती है, तो वह अपने किसी दोस्त, किसी सहपाठी को उसे पढ़ने को कहता है. यह एक प्रकार का चेन रिएक्शन है.
एक पढ़ी, पसंद की गयी और बतायी गयी किताब न जाने कितने हाथों में पहुंचती है. कितने बच्चे उसे पढ़ते हैं. पुस्तकालय, जहां अगर एक बार किताब पहुंच जाये, तो उसकी उम्र लंबी होती है. वहां से लेकर हो सकता है, कई पीढ़ियों ने एक ही किताब को पढ़ा हो. इस तरह किताब से भी दादी-नानी और बुजुर्गी का रिश्ता बन जाता है.
इसीलिए पुस्तक एक ऐसा चिराग, ऐसी रोशनी है, जो हजारों को राह दिखाती है. सो, इस बाल दिवस पर क्यों न बच्चों को एक नयी किताब दी जाये. वे पढ़ें और पसंद आने पर किसी और को पढ़ने को दें. चाचा नेहरू के जन्मदिन को मनाने का यह सबसे बेहतरीन तरीका है.