आठ साल पहले कई महादेशों के लोग सर्दी,खांसी और बुखार के एक नये वायरस एच1एन1 की चपेट में आये. बीमारी घातक सिद्ध हुई और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे महामारी घोषित कर दिया.
सर्दी-जुकाम और जानलेवा बुखार पैदा करनेवाला यह वायरस 1918 में भी कहर बरपा कर चुका है, लेकिन 2009 में यह वायरस अपने नये अवतार में था. चिड़िया, सूअर और मनुष्य में पाये जानेवाले फ्लू के वायरस के पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर अंतर्क्रिया से इसकी आंतरिक आण्विक संरचना बदल गयी थी और प्रचलित दवाइयों के सहारे उस पर काबू पाना मुश्किल हो रहा था. इस वायरस से पैदा रोग को स्वाइन फ्लू का नाम दिया गया. तब से अब तक आठ साल गुजर गये हैं. डब्ल्यूएचओ की हिदायतों के अनुरूप सुरक्षा के उपाय भी किये गये हैं. अब टीका भी उपलब्ध है और इससे कम-से-कम एक साल तक बचाव होने का दावा किया जाता है. लेकिन, जानकारी और उपायों के बरक्स भारत की स्थिति की तुलना करें, तो आश्चर्यमिश्रित दुख होता है.
आंकड़े बताते हैं कि स्वाइन फ्लू पर पश्चिमी देशों में काबू करने की ताकत बढ़ी है, परंतु भारत में इसका उलटा हो रहा है. सरकारी अस्पतालों के आंकड़ों के आधार पर स्वास्थ्य मंत्रालय के दस्तावेज में माना गया कि इस साल अगस्त महीने तक 1100 लोग स्वाइन फ्लू से जान गंवा चुके हैं, जबकि रोग के 22 हजार से ज्यादा मामले पूरे देश में सामने आये हैं. बीमारी का प्रसार किसी एक राज्य या इलाके में केंद्रित न होकर चतुर्दिक है.
बुनियादी ढांचे और प्रति व्यक्ति आमदनी के मामले में पिछड़े माने जानेवाले राज्यों में ही नहीं, महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु जैसे अपेक्षाकृत धनी और बेहतर स्वास्थ्य ढांचेवाले राज्यों में भी यह रोग हद तक बेकाबू साबित हो रहा है. विशेषज्ञ कह रहे हैं कि एच1एन1 वायरस नये अवतार में आकर चुनौती बना हुआ है. लेकिन, रोग के संक्रामक तरीके से फैलने और गंभीर रूप धारण करने के पीछे यही एक वजह नहीं है. किसी रोग के रोकथाम के लिए विशेष तैयारियां न हों और सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचा पहले से ही लचर हो, तो कोई भी रोग बड़े स्तर पर खतरा बन सकता है. डेंगू के मामले में यह स्पष्ट नजर आता है और स्वाइन फ्लू पर भी समान रूप से लागू होता है.
गंभीरता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 2010 से 2017 के अक्तूबर के बीच देश के विभिन्न राज्यों में 8,543 रोगी इस बीमारी से अपनी जान गंवा चुके हैं और इस रोग की चपेट में आनेवाले लोगों की संख्या आठ सालों में बढ़ कर 20 गुणा ज्यादा हो गयी है.
प्रसार और भयावहता को देखते हुए रोग के रोकथाम और उपचार के लिए सरकार को फौरी तौर पर विशेष कदम उठाने चाहिए, अन्यथा मौतों और बीमारों की संख्या इसी तरह से बढ़ती रहेगी. अब यह समस्या इतना विकराल रूप ले चुकी है कि सिर्फ सरकारी वादों से बात नहीं बनेगी, बल्कि ठोस कदम उठाने होंगे.