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भारत की सशक्त विदेश नीति

आलोक कु. गुप्ता एसोसिएट प्रोफेसर, दक्षिण बिहार केंद्रीय विवि भारतीय विदेश नीति पिछले कई दशक से ‘लुक वेस्ट पॉलिसी’ में सफलता के लिए हर संभव तरीके से प्रयासरत थी. कारण था, पाकिस्तान के साथ हमारे संबंधों की अस्थिरता. लेकिन, पश्चिम की तरफ रास्ते न खुलने के कारण पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के समय ‘लुक […]

आलोक कु. गुप्ता

एसोसिएट प्रोफेसर,

दक्षिण बिहार केंद्रीय विवि

भारतीय विदेश नीति पिछले कई दशक से ‘लुक वेस्ट पॉलिसी’ में सफलता के लिए हर संभव तरीके से प्रयासरत थी. कारण था, पाकिस्तान के साथ हमारे संबंधों की अस्थिरता. लेकिन, पश्चिम की तरफ रास्ते न खुलने के कारण पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के समय ‘लुक इस्ट पॉलिसी’ का आगाज हुआ, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक्ट इस्ट पॉलिसी’ में तब्दील करने की वकालत की और पूरब की तरफ हमें कई प्रकार की सफलताएं हासिल हुईं. पूरब के देशों के साथ हमारे व्यापार और राजनीतिक संबंध पश्चिम की अपेक्षा कई गुना सफल और अग्रसर हैं.

बीते 29 अक्तूबर को पहली बार भारत के कांडला बंदरगाह से अफगानिस्तान के लिए प्रथम शिपमेंट चाबहार बंदरगाह भेजा गया. यह भारतीय विदेश नीति की सफलता है, क्योंकि इसके साथ ही भारत और ईरान के बीच कनेक्टिविटी के लिए चाबहार बंदरगाह ऑपरेशनल हो गया, जिसका इंतजार कई वर्षों से था. भारतीय विदेश नीति एवं राष्ट्रीय हित के लिए इसके कई दूरगामी परिणाम मिलेंगे.

पहला, यह सफलता स्वयं में पाकिस्तान को और उसके साथ चीन को मुहतोड़ जवाब है. क्योंकि, पाकिस्तान को शायद ऐसा लग रहा था कि भारत को पश्चिम की तरफ अपनी पहुंच बनाने हेतु पाकिस्तान की सरजमी से ही गुजरना होगा. ज्ञात हो कि भारतीय नौसेना के अधिकारी कुलभूषण जाधव, जिसे उसने जासूसी आरोप लगाकर अपने यहां जेल में बंद कर रखा है, से उनकी पत्नी को मानवीय आधार पर मिलने की इजाजत दी है. ऐसा कहा जा सकता है कि पश्चिम की ओर भारत की इस सफलता के मद्देनजर पाकिस्तान दबाव में आकर भारत के साथ वार्ता आरंभ करने को इच्छुक हो.

दूसरा, यह मार्ग चीन के लिए भी सामरिक चिंता का विषय बनेगा. क्योंकि चीन द्वारा पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को विकसित किया गया है. ग्वादर के रास्ते चीन सीपीइसी को विकसित कर रहा है, जो उसके अब तक के प्रशांत महासागर के मार्ग से हो रहे व्यापार के रास्ते को कई गुना कम कर देगा. बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत चीन भारत को भी उसमें शामिल करने का प्रयास कर रहा है, जो चीन की एक सामरिक चाल है.

गौरतलब है कि सीपीइसी ‘पाक-अधिकृत कश्मीर’ की विवादित भूमि से गुजर रहा है. अतः भारत के इसमें शामिल होते ही इस भूमि पर पाकिस्तान की वैधता कायम हो जाती.

तीसरा, इससे भारत-ईरान के बीच कनेक्टिविटी बढ़ेगी, जिससे भारत को फायदा मिलेगा. ईरान सरकार द्वारा चाबहार को मुक्त व्यापार और औद्योगिक क्षेत्र के रूप में नामित किया गया है, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार में इसकी मुख्य भूमिका को इंगित करता है.

चाबहार से अफगानिस्तान तक रेल और सड़क मार्ग विकसित करने पर बात चल रही है. इसके तहत भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच चाबहार बंदरगाह का उपयोग करते हुए परिवहन एवं मालवहन गलियारा बनाने की कोशिश है. भारत ‘लुक वेस्ट पॉलिसी’ के तहत बेसब्री से पश्चिम की ओर कनेक्टिविटी बढ़ाने को लालायित है, जो भारत को सामरिक दृष्टि से भी अरब सागर में मजबूत करेगा.

चौथा, इससे मध्य एशिया और यूरोप तक भारत द्वारा शिपमेंट भेजने का खर्च और समय लगभग आधा हो जायेगा. यह एक महत्वपूर्ण व्यापारिक रास्ता है, जो भारत के लिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया का द्वार खोलता है. मध्य एशिया के रास्ते ही भविष्य में यूरोप होते हुए रूस के बाजार में पहुंचने के मार्ग सुगम हो जायेंगे. चाबहार बंदरगाह सामरिक और ऊर्जा के लिहाज से काफी समृद्ध है.

इस बंदरगाह तक भारत के पश्चिम तट से फारस की खाड़ी के रास्ते सीधा पहुंचा जा सकता है. यह मार्ग इस क्षेत्र पर चीन के एकाधिकार को समाप्त कर अच्छी प्रतिस्पर्धा देगा. चाबहार से ग्वादर बंदरगाह मात्र 72 किमी की दूरी पर है. इस कारण चाबहार को विकसित करने हेतु भारत और ईरान के बीच 2003 से ही बात आरंभ हो चुकी थी, परंतु ईरान पर लगे प्रतिबंध के कारण यह कार्य धीमी गति से चल रहा था.

पांचवां, अंतरराष्ट्रीय संबंधों के नजरिये से यह भी महत्वपूर्ण है कि अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने बीते 24-25 अक्तूबर के भारत दौरे पर यह स्पष्ट कर दिया कि ईरान के साथ वैध कारोबार पर अमेरिका को कोई नाराजगी नहीं है. वर्तमान में भारत के लिए अमेरिका का आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक महत्व बहुत ज्यादा है, जिसे वह खोने की स्थिति में नहीं है. अतः अमेरिका का सॉफ्ट रुख भारतीय कुटनीति के परिपक्व होने का परिचायक है.

चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के जवाब में भारत जिस विकल्प की तलाश में था, वह कार्यक्रम तो चल पड़ा, परंतु इस सफलता का भविष्य इस पर निर्भर करेगा कि भारत इसके लिए फंड की व्यवस्था कहां से और कैसे करेगा. क्योंकि, इस प्रोजेक्ट का मुख्य किरदार रूस अभी आर्थिक रूप से इतना सक्षम नहीं दीखता.

इसमें ईरान और मध्य एशिया के देश कितना रुचि लेते हैं, वही भारत के इस अल्टरनेटिव ‘ट्रेड रूट’ का भविष्य तय करेगा. अब भारत की विदेश नीति एवं कूटनीति को सक्रिय एवं गतिशील होने की आवश्यकता है, क्योंकि हमारे दोनों पड़ोसी देश- पाकिस्तान अौर चीन, दोनों इस अल्टरनेटिव को विफल करने का भरपूर प्रयास करेंगे.

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