सबमें प्रवाहित लेकिन अंतर्ध्यान : कुंवर नारायण
कल जब कुंवर जी के जाने की खबर सुनी, दिल्ली में मौजूद होने के कारण मन नहीं माना, कॉलेज छोड़ उनके अंतिम दर्शन के लिए लोधी रोड स्थित दयानंद मुक्तिधाम गया. कुंवर जी एक पीपल के पेड़ के नीचे मानो बुद्ध की तरह लेटे हों, मौन, मनुष्येतर. यह मेरी उनसे पहली व आखिरी मुलाकात थी. […]
कल जब कुंवर जी के जाने की खबर सुनी, दिल्ली में मौजूद होने के कारण मन नहीं माना, कॉलेज छोड़ उनके अंतिम दर्शन के लिए लोधी रोड स्थित दयानंद मुक्तिधाम गया. कुंवर जी एक पीपल के पेड़ के नीचे मानो बुद्ध की तरह लेटे हों, मौन, मनुष्येतर. यह मेरी उनसे पहली व आखिरी मुलाकात थी. उन्हें देखना मेरे जीवन का परम सौभाग्य था. मैं पहली दफा जीवन में किसी अंतिम संस्कार में इस प्रकार शरीक हुआ था. अद्भुत था शाम का वह दृश्य, मानो पूरे शवदाह गृह में कुंवर जी की कविता गूंज रही हो. पूरे वक्त मेरे कान में एक ही पंक्ति गूंजती रही – समय हमें कुछ भी \अपने साथ ले जाने की अनुमति नहीं देता\पर अपने बाद\अमूल्य कुछ छोड़ जाने का\पूरा अवसर देता है.
मैं स्कूल के दिनों में उनकी एक कविता पढ़ी थी – कविता के बहाने, जिसे मैं फिर कभी भूल नहीं पाया और विश्वविद्यालय आकर कॉलेज लाइब्रेरी में बीते दो वर्षों में उन्हें खूब पढ़ा और रमता गया. उनकी कविताओं ने मुझे जीवन- विवेक दिया, कविता में मनुष्य बने रहने का बोध कराया. आज जब दुनिया में इतनी दिक्कतदारियां हैं, इतने वैचारिक द्वेष, कीर्ति पाने की होड़ है , ऐसे समय में उनकी रचनायें शांति,सौम्यता, उदारता और थोड़े से प्रेम में भी मन को डुबो लेने की बात बता जाती है.
कुंवर जी को पढ़ना मानो एक ही किताब में इतिहास, कला, क्लासिकल साहित्य, पुरातत्व, सिनेमा, संगीत, कला, क्लासिकल साहित्य, आधुनिक विचार, समकालीन विश्व साहित्य, संस्कृति विमर्श, उर्दू नगमे को पढना है. आज वह देह से इस दुनिया में मौजूद नहीं हैं, लेकिन वह अपनी कविताओं के साथ सदा हममें बहते रहेंगे-लौटते रहेंगे, और बृहत्तर, और संपूर्णतर होकर लौटते रहेंगे. उनके विचार सर्वदा दुनिया के लिए जीवित और सक्रिय रहेंगे.
विशेष चन्द्र नमन, नयी दिल्ली