स्वदेशी अवलेह की संतान हलवा
जिस हलवा को हम खास अपना सगा समझते हैं, वह कोई 15-16 सौ साल पहले अरबों के साथ संभवतः पहले-पहल मालाबार तट पर पहुंचा था. शक्कर की चाशनी में किसी अनाज, फल या सब्जी के विलय से ही हलवा तैयार होता है. कुछ विद्वानों ने सुझाया है कि हलवे का मूल वही हल है, जिसे […]
जिस हलवा को हम खास अपना सगा समझते हैं, वह कोई 15-16 सौ साल पहले अरबों के साथ संभवतः पहले-पहल मालाबार तट पर पहुंचा था. शक्कर की चाशनी में किसी अनाज, फल या सब्जी के विलय से ही हलवा तैयार होता है. कुछ विद्वानों ने सुझाया है कि हलवे का मूल वही हल है, जिसे गणित में सवाल हल करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. जिस प्रश्न का उत्तर मिल जाने पर सवाल हल हो जाता है, उसी तरह अनाज, फल या सब्जी को यदि मिठाई में अदृश्य बनाना हो, तो इस प्रश्न को हल करने के चक्कर में ही हलवा ईजाद हुआ.
जो लोग हलवे को स्वदेशी ही घोषित करने पर आमादा हैं, उनके लिए यह अवलेह की संतान है. जिसे चवन ऋषि ने बुढ़ापे में एक राजकुमारी से विवाह के लिए अपना यौवन लौटाने के लिए तैयार किया था. हलवा बलवर्धक और पौष्टिक समझा जाता है और शायद इसलिए वनवासी ज्ञानी ऋषि ने इसका प्रयोग जरूरी समझा. एक मिथकीय कहानी के अनुसार राजश्री विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए इंद्र की भेजी अप्सरा मेनका ने उनके होठों पर अद्भुत स्वाद वाले कामोत्तेजक हलवे का ही स्पर्श कराया था.
भारतीय घरों में आमतौर पर सूजी या दाल का हलवा बनाया जाता है. मौसम बदलने के साथ गाजर का हलवा और बादाम के हलवे भी खाये-खिलाये जाते हैं. अपेक्षाकृत दुर्लभ हलवों में अखरोट का हलवा, सेब का हलवा और खसखस का हलवा है. हैदराबाद में हब्सी हलवा बनाया जाता है, जो गहरे कत्थई रंग लिये होता है. पर, इससे यह न समझें कि रंग के कारण इसका नामकरण हुआ. हब्सी शब्द का मूल अबिसीनियाई प्रवासियों के साथ जुड़ा है, जिन्होंने दक्खन के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. दिल्ली में जामा मस्जिद के निकट सीरीन भवन वाले इसी हलवे को लौंग और दालचीनी जैसे गरम मसालों का पुट देकर बनाते हैं, जबकि हैदराबाद में खजूर का चलन है. दिल्ली का गर्म तासीर वाले हब्सी हलवे का निर्यात खाड़ी देशों के शेखों के लिए किया जाता है. अवध के कारीगर अपने हाथ का कमाल दिखलाते हैं अंडे और गोश्त का हलवा बनाकर, तो कश्मीर के वाजा अपने हुनर की नुमाइश करते हैं सेब का हलवा बनाकर. एक और दिलचस्प हलवा है सिंधी हलवा, जो कराची हलवा और बोम्बे हलवा के नाम से भी जाना जाता है. हैरत है, एक हलवे के तीन-तीन नाम!
दरअसल, देश के विभाजन के पहले कराची और बंबई को जुड़वा शहर कहा जाता था. सिंधी बिरादरी में इन दो शहरों के बीच आवाजाही रहती थी. बंटवारे के बाद कराची से नाता टूट गया और गेहूं के निशास्ते से बननेवाला यह हलवा बंबई का ही हो गया. अनेक रंगों में काजू-चिरौंची और मगज से सजा यह हलवा च्युइंगम की तरह दांतों से चिपक जाता है और देर तक रखा जा सकता है. दक्षिण भारत में फिंके रंग में इसी तरह के हलवे को गोधूम हलवा कहते हैं. यही अवध का जोजी सोहन हलवा भी है. दिल्ली का सोहन हलवा, जो दो पीढ़ी पहले तक बहुत मशहूर था, में कुछ अंतर है. बटरस्कॉच टॉफी के स्वाद जैसा एक कड़ी गोलाकार टिकिया के रूप में यह बेचा जाता था. दिल्ली पहचान के साथ यह वैसे ही जुड़ा था, जैसे कुतुबमीनार और लालकिला.
विदेशी हलवों मेें तुर्की का बकलावा मशहूर है, जो शक्ल और सूरत में ही नहीं, स्वाद और रंगत में भी हिंदुस्तान के हलवों से बहुत अलग है. मध्य एशिया के अनेक गणराज्यों में भी हलवा खाया जाता है.
पुष्पेश पंत