9.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

आस्था के केंद्रों पर वाजिब चिंता

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक प्रभात खबर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) इन दिनों चर्चा में है. लेकिन दिल्ली में प्रदूषण को लेकर दिल्ली सरकार के संदर्भ में उसकी चर्चा ज्यादा हो रही है. लोगों का ध्यान वैष्णो देवी को लेकर उसके फैसले की ओर कम गया है. हाल में एनजीटी ने वैष्णो देवी मंदिर दर्शन करने […]

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक
प्रभात खबर
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) इन दिनों चर्चा में है. लेकिन दिल्ली में प्रदूषण को लेकर दिल्ली सरकार के संदर्भ में उसकी चर्चा ज्यादा हो रही है. लोगों का ध्यान वैष्णो देवी को लेकर उसके फैसले की ओर कम गया है. हाल में एनजीटी ने वैष्णो देवी मंदिर दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 50 हजार तय कर दी है. एनजीटी ने यह फैसला किसी भी अप्रिय स्थिति से लोगों को बचाने के लिए किया है. लोगों की अधिक संख्या के कारण हमेशा दुर्घटना की आशंका बनी रहती है. यह एक महत्वपूर्ण और दूरगामी फैसला है. मेरा मानना है कि इस फैसले के आधार पर राज्य सरकारें भी आस्था के केंद्रों और भीड़-भाड़ वाले स्थलों पर ऐसी ही पहल कर सकती हैं.
अगर गौर करें तो एनजीटी ने कई और महत्वपूर्ण निर्देश दिये हैं कि वैष्णो देवी में पैदल चलने वालों और बैटरी से चलने वाली कारों के लिए एक विशेष रास्ता खोला जाये. कटरा शहर में सड़कों और बस स्टॉप पर थूकने वालों पर दो हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया जाये. वैष्णो देवी मंदिर की व्यवस्था एक ट्रस्ट करता है. यात्रियों की सुविधाओं का ख्याल रखने की जिम्मेदारी भी उसी की होती है. जगमोहन जब जम्मू कश्मीर के राज्यपाल बने थे तो उन्होंने श्राइन बोर्ड गठित कर मंदिर की व्यवस्थाओं को सुचारू किया.
आधिकारिक आंकड़ों पर यदि गौर करें तो नवंबर, दिसंबर, 2016 और जनवरी, फरवरी, 2017 को छोड़कर अब तक के सभी महीनों में मंदिर दर्शन करने वालों की संख्या 50 हजार से ज्यादा रही है. जून, 2017 में श्रद्धालुओं की संख्या एक लाख को पार कर गयी थी, यानी क्षमता से दोगुने दर्शनार्थी वहां पहुंच गये थे. पहली जनवरी और नव संवत्सर खास महत्व के दिन होते हैं और बड़ी संख्या में लोग साल की शुरुआत वैष्णो देवी दर्शन के साथ करने जाते हैं.
इस दौरान श्रद्धालुओं की संख्या 50 हजार से अधिक रहती है. जून और जुलाई में श्रद्धालुओं की हमेशा भारी भीड़ रहती हैं क्योंकि इस दौरान स्कूलों में छुट्टियां होती हैं और लोग परिवार सहित दर्शन के लिए जाते हैं. चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र दोनों में वैष्णो देवी की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिलती है. ऐसा अनुमान है कि इस साल दर्शन करने वालों की संख्या 80 लाख पार कर जाएगी. आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि 50 हजार की क्षमता वाले मंदिर में लाखों की भीड़ के कारण क्या स्थिति रहती होगी. हालांकि वहां व्यवस्थाएं बहुत चौकस रहती हैं इसलिए हम सभी किसी अप्रिय घटना से बचते आये हैं.
आप गौर करें तो पायेंगे कि देश में पूरे वर्ष विभिन्न स्थानों पर धार्मिक आयोजन अथवा मेले लगते रहते हैं.आस्था के इन केंद्रों पर भारी भीड़ जमा हो जाती है और कई बार प्रबंधन फेल हो जाता है जिसका नतीजा होता है, दुखद हादसा. हाल में बेगूसराय जिले के सिमरिया में भारी भीड़ के कारण हादसा हुआ और कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा. बिहार में छठ के दौरान रेल से कट कर कुछ महिलाओं की दुखद मौत भी हुई. ज्यादातर धार्मिक उत्सव नदी किनारे अथवा किसी ऊंचाई वाले पहाड़ी स्थल पर होते हैं. वहां तक पहुंचने के रास्ते संकरे होते हैं और आवागमन की समुचित व्यवस्था संभव नहीं हो पाती है.
कुंभ जैसे व्यापक मेलों को छोड़ दें तो ऐसे आयोजन की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन या किसी थाना स्तर पर ही सौंप दी जाती है. इन्हें भीड़ नियंत्रित करने में कोई दक्षता हासिल नहीं होती.
अध्ययनों में पाया गया है कि भारत में लोग पश्चिम की तुलना में एक दूसरे को स्थान देने की तब तक पूरी कोशिश करते हैं, जब तक कि परिस्थितियां हाथ से न निकल जाएं. स्विटजरलैंड के प्रोफेसर डिर्क हेलबिंग ने भीड़ के व्यवहार का व्यापक अध्ययन किया है. इन अध्ययनों के मुताबिक भारत में प्रति वर्ग मीटर में 10 लोग तक अंट जाते हैं लेकिन इससे ज्यादा में दिक्कत हो जाती है. पश्चिम की तुलना में भारतीय एक दूसरे को ज्यादा स्थान देते हैं जबकि अमेरिका अथवा यूरोप में लोग दूसरों पर इतने मेहरबान नहीं होते. लेकिन जब इतनी भीड़ हो कि सांस लेने में ही दिक्कत होने लगे तो समस्या खड़ी हो जाती है.
विकसित देशों में सुरक्षा व्यवस्था का बहुत ध्यान रखा जाता है. स्थानीय प्रशासन से लाइसेंस लेना होता है. प्रशासन आयोजन स्थल की क्षमता देखते हुए सीमित व्यक्तियों के लिए अनुमति प्रदान करता है. भारत में ऐसा कुछ नहीं होता है, बड़े आयोजनों में प्रशासन स्वत: संज्ञान लेते हुए सारी व्यवस्थाएं करता है. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ डिजास्टर रिस्क मैनेजमेंट के एक अध्ययन के अनुसार भारत में भगदड़ की 79 फीसदी घटनाएं धार्मिक आयोजनों के दौरान होती हैं.
यहां क्षमता से अधिक लोग पहुंच जाते हैं. सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं होते. भीड़-नियंत्रण के तय दिशा-निर्देश भी हैं लेकिन इंतजाम करने वालों की इनकी समुचित जानकारी नहीं होती. उदाहरण के तौर पर अधिक भीड़ होने पर उन्हें सर्पीली घुमावदार लाइन में लगवाना, वैकल्पिक रास्तों की व्यवस्था और अगर किसी नेता अथवा अधिकारी के आने से भीड़ के प्रबंधन में दिक्कत आये तो उसे स्पष्ट मना करना. भारत और पश्चिमी देशों में फर्क इतना है कि वहां भी भगदड़ से हादसे होते हैं, लेकिन अक्सर वे किसी स्टेडियम, संगीत समारोह अथवा किसी नाइट क्लब में होते हैं.
भगदड़ जैसे हादसों की पहली वजह तो प्रशासनिक विफलता होती है. दूसरे भीड़ का व्यवहार भी महत्वपूर्ण होता है. कैसे लोग और किस अवसर पर एकत्रित हुए हैं. आपात स्थिति की क्या व्यवस्थाएं हैं, यह भी महत्वपूर्ण है. दूसरी तरफ आप देखें तो पायेंगे कि स्वर्ण मंदिर जैसे स्थलों में जहां रोजाना हजारों लोग आते हैं, व्यवस्थाएं बेहद सुचारु रूप से काम करती हैं.
दिल्ली की जामा मस्जिद में ईद के दिन नमाज पढ़ने वालों की भारी भीड़ रहती है, लेकिन व्यवस्थाएं दुरुस्त रहती हैं क्योंकि लोगों का व्यवहार संयत रहता है. देखने में आया है कि कई बार किसी अफवाह के कारण भी भगदड़ मच जाती हैं. भीड़ में अचानक कोई शख्स फिसल जाता है और उसके कारण कभी-कभी भगदड़ की घटनाएं सामने आयीं हैं.
कई बार अचानक लाउडस्पीकर से घोषणा और तेज आवाज में गीत भी भीड़ को विचलित कर देता है. मुझे उम्मीद है कि राज्य सरकारें एनजीटी के आदेश को दृष्टिगत रखते हुए भारी भीड़ वाले आस्था के केंद्रों पर कुछ ऐसी ही उपयुक्त व्यवस्था करेंगी ताकि किसी भी संभावित हादसे को टाला जा सके.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें