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महंगाई का असर कमोबेश सब पर पड़ता है, किंतु सबसे गहरी चोट गरीब और निम्न मध्यवर्गीय आबादी के हिस्से ही आती है. हमारी आबादी का दो तिहाई से भी ज्यादा हिस्सा इसी श्रेणी में है. इस तबके के पास आमदनी का ऐसा कोई नियमित जरिया नहीं है, जिसके बूते वह रोजमर्रा के उपभोग की चीजों […]

महंगाई का असर कमोबेश सब पर पड़ता है, किंतु सबसे गहरी चोट गरीब और निम्न मध्यवर्गीय आबादी के हिस्से ही आती है. हमारी आबादी का दो तिहाई से भी ज्यादा हिस्सा इसी श्रेणी में है. इस तबके के पास आमदनी का ऐसा कोई नियमित जरिया नहीं है, जिसके बूते वह रोजमर्रा के उपभोग की चीजों में कटौती किये बगैर अपना काम चला ले. गुजरा अक्तूबर महीना देश की बड़ी आबादी के लिए ऐसी कटौती का सबक देनेवाला साबित हुआ है और यह चलन फिलहाल नवंबर में भी जारी है. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के नये आंकड़ों के मुताबिक, खाने-पीने की चीजों, खासकर सब्जियों की कीमतों में तेज उछाल आयी है, जो बीते सात महीनों में सर्वाधिक है.

सितंबर में सब्जियों के मामले में महंगाई दर 3.92 प्रतिशत थी, लेकिन एक माह के भीतर इसमें दो गुने का इजाफा हुआ है और अक्तूबर में महंगाई दर 7.47 प्रतिशत पर जा पहुंची. फल और दाल की कीमतों में बेशक नरमी का रुख रहा, लेकिन देश की बड़ी आबादी की जेब के लिहाज से फल और दाल की कीमतें अब भी इतनी आसान नहीं कि ये चीजें उसकी रोज की थाली में शामिल हों. गरीब और निम्न मध्यवर्गीय आबादी दाल और फलों की कमी की भरपाई बहुत हद तक सब्जियों से करती है या फिर दूध और अंडे से. दूध और अंडे की कीमतें भी तेजी से बढ़ी हैं.

एक महीने में अंडे की कीमतों में 40 फीसदी का इजाफा हुआ है. ईंधन और बिजली के दाम भी बढ़े हैं. देश में व्याप्त कुपोषण के बारे में ध्यान दिलाते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर के अध्ययनों में अक्सर कहा जाता है कि भारत में पांच साल या इससे कम उम्र के 40 फीसद से ज्यादा बच्चे सामान्य से कम वजन के हैं और 50 फीसदी से ज्यादा विवाहित महिलाएं आयरन की कमी की शिकार हैं.

इस आबादी के लिए सरकार ने पूरक पोषाहार देने के कार्यक्रम बनाये हैं और उन कार्यक्रमों के तहत दी जानेवाली खाद्य-सामग्री पर बढ़ी हुई महंगाई का असर प्रत्यक्ष देखा जा सकता है. आंगनबाड़ी और मिड डे मील के भोजन की गुणवत्ता बढ़ी हुई महंगाई से प्रभावित होती है, क्योंकि इस मद में मिलनेवाली राशि मुद्रास्फीति के हिसाब से समायोजित नहीं होती. आमदनी के नियमित और समुचित जरिये के अभाव में महंगाई बढ़ने पर लोग जरूरी चीजें कम खरीदते हैं. इसका सीधा असर उसे रोजमर्रा के भोजन से हासिल होने वाले पोषाहार जैसे प्रोटीन या फिर आयरन, कैल्शियम जैसे पोषक तत्वों पर पड़ता है. अचरज नहीं कि कुपोषण जनित रोगों का बोझ भी देश पर ज्यादा है.

यह भी जगजाहिर है कि सब्जियों और अंडे जैसी चीजों के मुख्य उत्पादकों को कीमतें बढ़ने का लाभ नहीं मिलता और वह कारोबारियों की जेब में चला जाता है. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार तुरंत हस्तक्षेप करते हुए महंगाई पर लगाम लगाने के लिए कारगर कदम उठायेगी.

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