Loading election data...

खान-पान की संस्कृति

खान-पान की विभिन्नता में भारत तो हमेशा से आगे रहा है, परंतु आज खान-पान की बदलती तस्वीर ने हमारी संस्कृति को भी बदल दिया है. हम पूड़ी-छोला नहीं खा कर पिज्जा, मैगी और चाउमिन को प्राथमिकता देने लगे हैं. चाय की जगह कैपेचिनो ने ले ली है. आज भारत के नुक्कड़ों पर आप को जलेबी, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 22, 2017 7:24 AM

खान-पान की विभिन्नता में भारत तो हमेशा से आगे रहा है, परंतु आज खान-पान की बदलती तस्वीर ने हमारी संस्कृति को भी बदल दिया है. हम पूड़ी-छोला नहीं खा कर पिज्जा, मैगी और चाउमिन को प्राथमिकता देने लगे हैं. चाय की जगह कैपेचिनो ने ले ली है.

आज भारत के नुक्कड़ों पर आप को जलेबी, चाट के ठेले कम, चाउमिन और पिज्जा की दुकान ज्यादा मिल जायेंगी. आज छप्पन भोग की जगह दो मिनट की मैगी ने ले ली. पहनावा और सोच के साथ-साथ हमारी थाली बदल चुकी है. आज जरूरत हैं कि हम अपने खान-पान की संस्कृति को बचा के रखें, नहीं तो इसका भी अस्तित्व खत्म हो जायेगा. इस विरासत को अगली पीढ़ी तक ले जाने की जरूरत है, ताकि वह इसे और आगे ले जा सके.

अमृता चतुर्वेदी, इमेल से

Next Article

Exit mobile version