पद्मावती सम्मान या उन्माद
देश में इन दिनों भावनाएं उफान पर हैं, जो कहीं पर भी अराजकता फैला सकती हैं. पद्मावती के सम्मान के लिए राजपूत समाज ने पूरी ताकत झोंक दी है. झोंके भी क्यों नहीं? जिसने आत्मसम्मान और गौरव की रक्षा के लिए लोलुपता से परिपूर्ण अल्लाहुद्दीन खिलजी से बचाने के लिए 1500 औरतों के साथ जौहर […]
देश में इन दिनों भावनाएं उफान पर हैं, जो कहीं पर भी अराजकता फैला सकती हैं. पद्मावती के सम्मान के लिए राजपूत समाज ने पूरी ताकत झोंक दी है. झोंके भी क्यों नहीं?
जिसने आत्मसम्मान और गौरव की रक्षा के लिए लोलुपता से परिपूर्ण अल्लाहुद्दीन खिलजी से बचाने के लिए 1500 औरतों के साथ जौहर कर लिया. वही समाज आज एक जीती जागती औरत की मर्यादा का हनन कर रहा है. बात है पद्मावती की अभिनेत्री दीपिका पादुकोण की. उनके नाक-कान काटने का उद्घोष करणी सेना वाले कर रहे हैं. क्या यह सोच अल्लाहुद्दीन खिलजी की सोच का प्रतिफल नहीं लगता?
एक तरफ एक महिला का सम्मान मांग रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ महिला का मानमर्दन? यह कहां का न्याय है? खिलजी और पद्मिनी में प्रेम दृश्य हैं या नहीं, यह या तो फिल्म को पता है या संजय लीला भंसाली को. बीजेपी के मुख्यमंत्री फिल्म को अपने यहां रिलीज़ नहीं करने का आश्वासन दे रहे. इसमें कांग्रेस के अमरिंदर साहेब भी कूद पढ़े हैं. वोटतंत्र और भीड़ तंत्र में यही समानता है.
अवधेश कुमार राय, धनबाद