गुड टच और बैड टच

कविता विकास टिप्पणीकार हर युग के संक्रमण काल में परिवर्तन अपेक्षित है और उसके अनुपात में ज्ञान का संरक्षण भी. समाज में बाल हिंसा, यौन शोषण और बच्चों के प्रति अपराध जिस तेजी से बढ़े हैं, उससे बचपन को सहेजकर रखने की कवायद भी बढ़ी है. एक चौथी कक्षा का बच्चा अपनी टीचर को शिकायत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 23, 2017 7:26 AM
कविता विकास
टिप्पणीकार
हर युग के संक्रमण काल में परिवर्तन अपेक्षित है और उसके अनुपात में ज्ञान का संरक्षण भी. समाज में बाल हिंसा, यौन शोषण और बच्चों के प्रति अपराध जिस तेजी से बढ़े हैं, उससे बचपन को सहेजकर रखने की कवायद भी बढ़ी है.
एक चौथी कक्षा का बच्चा अपनी टीचर को शिकायत करता है कि एक छठी क्लास के भैया उसके गाल को छूकर उसे ‘बैड टच’ दे रहे थे. उसने कहा कि वह खूब मीठी-मीठी बातें कर रहे थे, उन्होंने प्यार से उसके गाल में चिकोटी भी काटी. बात हंसी-मजाक में खत्म हो गयी.
सवाल है कि कहीं हमारी शिक्षा की दिशा गलत तो नहीं है? ‘गुड टच और बैड टच’ के अंतर को टीवी, अखबार और अन्य माध्यमों से बताया जा रहा है. घर पर मम्मी-पापा इतनी नसीहतें देते हैं कि बच्चों के सामने असमंजस की स्थिति पैदा हो जाती है, और उनके लिए हर टच बैड ही हो जाता है.
हमें बच्चों के मासूम मन की परवाह करनी होगी. किसी गंभीर बात को इस अंदाज में बताना होगा कि बात सहज रूप से उन तक पहुंच जाये. बचपन को जीये बगैर वयस्क होते बच्चों में कच्ची जानकारी होती है. बात छिपाने से उत्सुकता बढ़ती है. निश्छल भाव से भी बच्चे-बच्चियों को अगर कोई प्यार करना चाहे, तो वह शक के दायरे में आ जाता है.
क्या ही अच्छा होता, अगर ‘गुड टच, बैड टच’ की घटना केवल थ्योरी में नहीं, बल्कि नुक्कड़ नाटक या ड्रामे के रूप में स्कूलों या क्लबों आदि सार्वजनिक स्थानों पर दिखायी जाती. लघु नाटिका के माध्यम से आंखों की भाव-भंगिमाएं बड़ा रोल अदा करती हैं. बातों की मिठास, फुसलाने आदि का प्रमाण प्रत्यक्षदर्शी होने में ज्यादा है. श्रवण क्रिया के साथ दृष्टिमूलक तत्त्वों का प्रयोग अधिक फलदायी होता है.
अमूमन आजकल नौ-दस साल के बच्चों में भी चीजों को परखने की क्षमता है, पर हर बच्चा एक जैसा नहीं होता. एक ब्लाइंड स्कूल के निदेशक द्वारा उसी स्कूल की एक बालिका के साथ रेप की घटना जब खबर में आयी, तब विकलांगता पर पाठ पढ़ाती शिक्षिका को एक बच्चे ने कहा कि विकलांग बच्चों को प्यार-सम्मान कब मिलेगा? उस बच्चे के दिमाग में रेप जैसे शब्द की भयावहता घर कर गयी है.
सच पूछा जाये, तो बच्चों के कोमल मन में अभी सतरंगी सपने जन्म लेने के दिन हैं. उनकी बंद मुट्ठियों की पहेली सुलझने को कसमसाते हैं. पर तरह-तरह की नकारात्मक खबरों के शोर ने इनके इर्द-गिर्द संदेह के ऐसे जाल बुन दिये हैं कि इनकी पहेलियां अनसुलझी रहने के साथ-साथ एक गांठ में तब्दील हो जाती हैं, जो मानसिक तनाव पैदा कर सकती है.
इन बाल-समस्याओं का निवारण एक फ्रेंडली वातावरण में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर किया जाना चाहिए, जिसमें पैरेंट्स और टीचर की समान साझीदारी हो. इन पर बच्चों के स्तर का विमर्श हो. न तो आक्रोश हो और न वाद-विवाद. बस एक सहज माहौल में ढेर सारे प्यार के बीच बच्चों की जिज्ञासा को सुनने और उनकी समस्याओं को सुलझाने का प्रयास हो.

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