समय के साथ खाप का समझौता

पिछले दिनों आपके अखबार के ‘आधी आबादी’ पóो पर हरियाणा की सतरोल खाप पंचायत से जुड़ी एक खबर पढ़ी. उत्तर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में युवा प्रेमी जोड़ों में खैफ का पर्याय बन चुके खाप का अंतरजातीय विवाह को कुछ शर्तो के साथ मंजूरी देना एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसके परिणाम देशभर में दूरगामी होंगे. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 24, 2014 4:37 AM

पिछले दिनों आपके अखबार के ‘आधी आबादी’ पóो पर हरियाणा की सतरोल खाप पंचायत से जुड़ी एक खबर पढ़ी. उत्तर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में युवा प्रेमी जोड़ों में खैफ का पर्याय बन चुके खाप का अंतरजातीय विवाह को कुछ शर्तो के साथ मंजूरी देना एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसके परिणाम देशभर में दूरगामी होंगे.

खाप की महापंचायत ने एलान किया है कि अपने गांव, गोत्र और पड़ोस के गांव को छोड़ कर कोई किसी से भी विवाह कर सकता है. यानी अब विवाह में कोई जातीय बंधन नहीं रहेगा और सतरोल खाप के अंतर्गत आनेवाले 42 गांवों में आपस में शादी न करने की बाध्यता भी खत्म हो जाएगी.

खाप के इस फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए. निश्चय ही यह उन प्रगतिशील ताकतों की जीत है जो खाप के खिलाफ साहस के साथ खड़ी थीं. पिछले कुछ सालों में मीडिया के माध्यम से हरियाणा की पहचान खाप पंचायतों के तुगलकी फरमानों और ऑनर किलिंग के लिए होने लगी थी. आमिर खाने के ‘सत्यमेव जयते’ के एक एपिसोड में पूरे देश ने देखा कि खाप प्रतिनिधियों ने किस धृष्टता से अंतरजातीय विवाह का विरोध किया था. वे यह मानने के लिए तैयार नहीं थे कि शादी दो दिलों का मिलन है, जिसमें जाति, धर्म, प्रदेश मायने नहीं रखते. विवाह को लेकर कई तरह की बंदिशें अन्य राज्यों में भी हैं.

कई पंचायतें एक गोत्र, एक गांव, दूसरी जाति में शादी के पक्ष में नहीं रहतीं. भले ही लड़के कुंवारे रह जाएं, लड़की की तलाश में उम्र निकल जाए. लेकिन, सतरोल ने समय का इशारा समझा और अंतरजातीय विवाह को मंजूरी देने और शादी से जुड़े पुराने नियम तोड़ने का निर्णय इसलिए लिया क्योंकि समाज बदल रहा है. बेशक यह एक अच्छी शुरु आत है.

सत्येंद्र कुमार दास, देवघर

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