अब झारखंड की निगाहें 16 मई पर

दुमका, राजमहल, गोड्डा और धनबाद लोकसभा सीटों पर गुरुवार को मतदान हुआ. इसके साथ ही झारखंड की सभी 14 सीटों के लिए मतदान संपन्न हो गया. इस बार चुनाव आयोग से लेकर सरकार, मीडिया और सामाजिक संस्थाओं ने घरों से निकल कर वोट देने की अपील की थी. झारखंड के मतदाताओं पर इसका गहरा असर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 25, 2014 3:59 AM

दुमका, राजमहल, गोड्डा और धनबाद लोकसभा सीटों पर गुरुवार को मतदान हुआ. इसके साथ ही झारखंड की सभी 14 सीटों के लिए मतदान संपन्न हो गया. इस बार चुनाव आयोग से लेकर सरकार, मीडिया और सामाजिक संस्थाओं ने घरों से निकल कर वोट देने की अपील की थी. झारखंड के मतदाताओं पर इसका गहरा असर पड़ा और रिकार्ड मतदान हुआ. यह शुभ संकेत है.

यह अलग बात है कि मतदान का प्रतिशत बढ़ने से किस दल या किस प्रत्याशी को लाभ होगा, इसका पता अभी नहीं चल सकता. इसके लिए 16 मई का इंतजार करना होगा. भले ही झारखंड में सीटों की संख्या बड़े राज्यों (बिहार, यूपी की तुलना में) बहुत कम (सिर्फ 14) हो, लेकिन केंद्र में सरकार बनाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होगी. झारखंड के लिए इस चुनाव का खास महत्व भी है.

इसके कुछ कारण भी हैं. इस चुनाव में झारखंड के कई पूर्व मुख्यमंत्रियों की प्रतिष्ठा दावं पर लगी है. सबसे रोचक मुकाबला दुमका सीट पर है. यहां बाबूलाल मरांडी और शिबू सोरेन प्रत्याशी हैं. दोनों तो जीत नहीं सकते हैं. किसी एक को तो हार का सामना करना पड़ेगा ही. एक अन्य संभावना भी है. अगर इन दोनों पूर्व मुख्यमंत्री की लड़ाई में कोई तीसरा बाजी मार ले, तो शिबू सोरेन और बाबूलाल मरांडी को निराश होना पड़ेगा. ये दोनों झारखंड के दो प्रमुख क्षेत्रीय दलों झामुमो और जेवीएम के प्रमुख हैं. इन दोनों दलों को विधानसभा चुनाव में टकराना ही होगा. ऐसे में इस जीत-हार का असर विधानसभा चुनाव तक दिखेगा. तीसरे पूर्व मुख्यमंत्री हैं मधु कोड़ा. खुद तो खड़े नहीं हैं, पर पत्नी गीता कोड़ा सिंहभूम से मैदान में हैं.

आजसू प्रमुख सुदेश महतो रांची से प्रत्याशी हैं. यानी सभी दिग्गजों को 16 मई का इंतजार है. उस समय पता चलेगा कि कौन दल कितने पानी में है. इस चुनाव के बाद झारखंड सरकार का भविष्य भी तय होगा. जिन दो विधायकों के बल पर सरकार टिकी है, वे तय करेंगे कि सरकार का समर्थन करेंगे या नहीं. सभी को 16 मई का इंतजार है. जो भी हो, झारखंड के मतदाताओं ने अपनी जिम्मेवारी का परिचय (वोट देने में) तो दे दिया है. हालांकि अंतिम दौर में तमामा इंतजामों के बावजूद दुमका के शिकारीपाड़ा में नक्सली हमला हो ही गया. जो बहुत दुखद है.

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