चुनावी बहस में कश्मीर का सवाल

।। प्रभात कुमार रॉय।। (पूर्व सदस्य, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद) आम चुनाव की सरगर्मियों के दौरान कश्मीर मसला भी चुनावी बहस का एक मुद्दा बन गया है. कश्मीर में लोकसभा चुनाव को ध्वस्त करने के लिए जेहादियों द्वारा घाटी के दक्षिणी भाग में ग्रामसभा के सरपंचों पर प्राणघातक हमले किये जा रहे हैं. विगत कुछ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 25, 2014 4:02 AM

।। प्रभात कुमार रॉय।।

(पूर्व सदस्य, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद)

आम चुनाव की सरगर्मियों के दौरान कश्मीर मसला भी चुनावी बहस का एक मुद्दा बन गया है. कश्मीर में लोकसभा चुनाव को ध्वस्त करने के लिए जेहादियों द्वारा घाटी के दक्षिणी भाग में ग्रामसभा के सरपंचों पर प्राणघातक हमले किये जा रहे हैं. विगत कुछ दिनों में ही कश्मीर घाटी में छह सरपंच मारे गये हैं. भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी ने जम्मू की रैलियों में संविधान की धारा 370 पर फिर से सोचने की बात सामने रखी. दूसरी तरफ हुर्रियत के उदारवादी नेता मीरवाइज फारूक का कहना है कि चुनाव के मौके को कश्मीर मसले को सुलझाने के लिए इस्तेमाल किया जाये. हुर्रियत के कट्टरपंथी सैयद अलीशाह जिलानी का बयान आया कि मोदी के दो प्रतिनिधियों ने कश्मीर मसले पर बातचीत के लिए उनसे मुलाकात की, किंतु भाजपा ने इससे इनकार किया है. हुर्रियत के प्राय: सभी नेता कश्मीर मसले को अधिक पेचीदा बनाने के लिए कांग्रेस सरकार पर इल्जाम लगाते रहे हैं और साथ ही अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा कश्मीर मसले को सुलझाने के लिए किये गये प्रयासों की सराहना करते रहे हैं. ऐसा लग रहा कि नरेंद्र मोदी की कयादत में केंद्र में एनडीए सरकार बनने के कयास के मद्देनजर हुर्रियत नेता सक्रिय हो उठे हैं.

धारा-370 पर प्रश्न उठते ही इसके प्रतिवाद में आवाजें उठने लगती हैं. इसकी समीक्षा की मांग को सिरे से ही खारिज कर दिया जाता है. केवल कश्मीर के सत्तारूढ़ दलों को ही नहीं, कश्मीर के भारत में विलय को चुनौती देनेवाले पृथकतावादियों को भी लगता है कि उनके अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है. जो गुट अन्य मामलों में एक-दूसरे के दुश्मन होते हैं, इस बात पर एकमत हो जाते हैं कि इस धारा को किसी तरह नहीं छेड़ा जाना चाहिए. इसकी धुरी पर जम्मू-कश्मीर की सरकारें चलती रही हैं और भारत के कुछ राजनीतिक गुटों की राजनीति भी इसी धारा के चारों ओर घूमती है. उससे यह अनुमान लगाना आसान है कि मोदी के बयान पर मुख्यमंत्री और दूसरे नेताओं की प्रतिक्रिया तीव्र होनी ही थी. जहां तक धारा-370 पर पेचीदा बहस का सवाल है, इसको कश्मीरियत की भावना और कश्मीरियत को अलग पहचान देने की प्रबल इच्छा को सम्मान देने के लिए इसे संविधान में समाहित किया गया था.

दरअसल, कश्मीर के मसले को जटिल बनाने का सबसे अधिक काम पाकिस्तान ने अंजाम दिया है. पाकिस्तान ने अक्तूबर, 1947 में कश्मीर को बलपूर्वक हड़पने के लिए कबायली आक्रमण के नकाब में एक बड़ा फौजी हमला कश्मीर घाटी पर बोल दिया था. भारतीय सेना ने उसका मुंहतोड़ जवाब दिया और कश्मीर घाटी पर अपनी विजय पताका फहराने के कगार पर पहुंच गयी थी, किंतु दुर्भाग्यवश तब प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इंग्लैंड और अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय दबाव में कश्मीर मसले को यूनाइटेड नेशंस में ले गये और कश्मीर घाटी में जनमत संग्रह के यूएन प्रस्ताव से मसला और भी जटिल हो गया.

कांग्रेस की केंद्रीय सरकारों ने कश्मीर को सदैव अपनी जागीर समझा और कश्मीर को कांग्रेस पार्टी की गिरफ्त में बनाये रखने के लिए 1987 में विधानसभा चुनाव में जबरदस्त रिगिंग का सहारा लिया गया. नतीजतन कश्मीर के नौजवानों में तीव्र राजनीतिक असंतोष पनपा, जिसका फायदा पाकिस्तानी हुक्मरानों ने उठाया. कश्मीर के बहुत से बेरोजगार नौजवान जेहादी प्रचार के कारण दहशतगर्द मानसिकता की चपेट में आ गये और सरहद पार के पाकिस्तानी प्रयासों ने जम्मू-कश्मीर में जबरदस्त कहर ढाया. 1988 से शुरू हुई प्रॉक्सी वार अनेक रंग-रूपों में कश्मीर में अपना खूनी कहर बरपाती रही. पहले जेकेएलएफ ने कश्मीर की आजादी का नारा बुलंद कर अफगान मुजाहिदों की कयादत में कश्मीर घाटी में गुरिल्ला जंग शुरू की. पाक हुकूमत ने जल्द ही जेकेएलएफ को दरकिनार करके कश्मीर का पाकिस्तान में विलय करने की कसम लेनेवाली तंजीम हिजबुल मुजाहिदीन को गले से लगा लिया. इसके बाद अनेक जेहादी तंजीमें प्रॉक्सी वार में शिरकत करने लगीं.

जेकेएलएफ के आत्मसमर्पण के बाद कश्मीर घाटी में जेहाद एक पाक प्रायोजित प्रॉक्सी वार बन कर रह गया है, जिसको कश्मीर घाटी के जनमानस का सक्रिय समर्थन हासिल नहीं है. यही कारण है कि कश्मीर का मसला हल करने के लिए हुर्रियत का नरमपंथी धड़ा भारतीय संविधान के दायरे में राजनीतिक बातचीत पर जोर देता रहा है. भारत को कश्मीर में दोहरी कार्यनीति और रणनीति का अनुसरण करना होगा. एक तरफ हुकूमत से नाराज कश्मीर के नौजवानों का यकीन जीतना होगा, तो दूसरी तरफ जेहाद को खत्म करना होगा. जम्मू-कश्मीर में धारा-370 के कारण कोई भारतीय उद्योगपति निवेश के लिए तत्पर नहीं रहा है और इसी कारणवश औद्योगीकरण के क्षेत्र में कश्मीर बहुत पिछड़ गया है. इस विकास दृष्टि से भी धारा-370 पर विचार किया जाना चाहिए.

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