इस बार के चुनाव भी आइपीएल की तर्ज पर ही हो रहे हैं. इसे इंडियन पॉलिटिकल लीग कह सकते हैं. भाजपा के आक्र ामक, भावुक, वीर रस से ओत-प्रोत और व्यंग्यात्मक विज्ञापन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में छाए हुए हैं.
नरेंद्र मोदी के प्रचार जाल में मीडिया फंस चुका है. मतदान प्रक्रिया जारी है, लेकिन मैच फिक्सिंग की तरह ऐन मतदान के पहले कभी साक्षात्कार, तो कभी चर्चा-परिचर्चा करवा कर भाजपा यह साबित करने पर तुली है कि बस नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेनी ही बाकी है. गनीमत है कि संवैधानिक परंपरा का इतना ध्यान रखा गया है, वरना इस औपचारिकता की भी क्या आवश्यकता होती! नरेंद्र मोदी सारे चैनलों में एक साथ दिखाये गये साक्षात्कार में कहते सुने गए कि कांग्रेस के लिए यह सबसे खराब चुनाव साबित होगा.
माना कि वे भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं, लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि वे जनता की ओर से फैसला सुनाने लगें. चुनाव किसके लिए खराब और किसके लिए यादगार रहेगा, यह जानने के लिए क्या वह थोड़ा सब्र वे नहीं कर सकते? क्या राजनीतिशास्त्र में ‘पोल फिक्सिंग’ जैसा शब्द पेश करने का समय आ गया है? बहरहाल, आइपीएल के सातवें संस्करण का यूएई में रंगारंग उद्घाटन हुआ. इस बार आधे मैच वहां खेले जाएंगे और बाद में भारत में चुनाव संपन्न होने के बाद शेष मैच यहां होंगे.
कभी दुबई-शारजाह को क्रिकेट में फिल्म जगत और अंडरवर्ल्ड की मैच फिक्सिंग के तड़के के लिए जाना जाता था. मैच फिक्सिंग सामने आने के बाद दुबई में क्रिकेट आयोजन एक तरह से बंद हो गया था. आज आइपीएल उसी शारजाह में जा पहुंचा है. खैर, क्रिकेट और राजनीति का आइपीएल उम्मीद है इस बार विवादों से दूर रहेगा.
अनिल सक्सेना, जमशेदपुर