गुजरात चुनाव के असल मुद्दे
आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान कौन-कौन से ऐसे मुद्दे हैं, जो चर्चा में आ रहे हैं? 22 साल से सत्तारूढ़ भाजपा कहती है कि यह चुनाव विकास के लिए है. ऐसा लगता है कि जैसे ‘विकास’ पर भाजपा का स्वामित्व है और यह केवल वही कर सकती है, […]
आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक,
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान कौन-कौन से ऐसे मुद्दे हैं, जो चर्चा में आ रहे हैं? 22 साल से सत्तारूढ़ भाजपा कहती है कि यह चुनाव विकास के लिए है. ऐसा लगता है कि जैसे ‘विकास’ पर भाजपा का स्वामित्व है और यह केवल वही कर सकती है, विशेषकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में.
भाजपा की मानें, तो वह जो करती है, वह विकास है और अन्य दल जो करते हैं, वह भ्रष्टाचार, वंशवाद आदि है. यह बचकानी बातें हैं, यहां उल्लेखनीय है कि विरोधियों द्वारा भाजपा को इससे बच निकलने का मौका दिया गया है. अगर हम मानते हैं कि भाजपा विकास के संदर्भ में अर्थव्यवस्था और सामाजिक विकास को आगे बढ़ानेवाले आंकड़ों और नीतियों पर विचार-विमर्श करना चाहती है, तो ऐसा नहीं है. यह पार्टी भटक गयी है. वह राहुल गांधी का धर्म जानना चाहती है.
प्रधानमंत्री मोदी असत्य बोलते हैं कि कांग्रेस ने हाफिज सईद की रिहाई का जश्न मनाया. इन सबका विकास से क्या लेना-देना!
अगर भाजपा यह दावा करती है कि वह विकास के साथ खड़ी है और कांग्रेस के मुद्दे स्पष्ट नहीं है या जिस विकास का भाजपा दावा करती है, तो कम-से-कम वैसा एक भी मुद्दा कांग्रेस नहीं उठाती है.
राहुल गांधी एक दिन रॉफेल सौदे के भ्रष्टाचार पर बात करते हैं (इसके लिए मीडिया से कोई समर्थन नहीं मिला), तो दूसरे दिन जीएसटी और विमुद्रीकरण के बारे में. किसी एक मुद्दे पर केंद्रित रहने की कमी के कारण भाजपा के खिलाफ उनका संदेश बिखरा हुआ प्रतीत होता है.
मुद्दों के अलावा जो दूसरी बात है, वह संगठन के स्तर पर है. इस मामले में भाजपा के पास एक दुर्जेय शक्ति है. प्रजातांत्रिक दुनिया में वह सर्वाधिक शक्तिशाली राजनीतिक दलों में से एक है. जमीनी स्तर पर बड़ी आबादी तक उसकी पहुंच है, जिसकी व्यवस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ- लाखों सदस्योंवाला विश्व का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन- देखता है. इसके पास प्रतिबद्ध और प्रशिक्षित लोग हैं, जिन्हें नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व की वजह से काफी प्रोत्साहन भी मिला है.
किसी भी कड़ी स्पर्धा की स्थिति में, और अभी गुजरात में कड़ी स्पर्धा है या नहीं, इस बात को लेकर निश्चित तौर पर कोई कुछ भी नहीं कह सकता, भाजपा की यही सांगठनिक शक्ति उसकी जीत सुनिश्चित करेगी.
वहीं दूसरी ओर, चूंकि इस राज्य में केवल दो दलों के बीच ही लड़ाई रहती है, हमें केवल कांग्रेस पर निगाह रखनी होगी, और यह स्वीकार करना ही होगा कि उसके पास सांगठनिक योग्यता की कमी है. सेवा दल या युवा कांग्रेस के पुराने कार्यकर्ताओं का अस्तित्व यहां नहीं है.
यह संगठन यहां बिखरा हुआ है और यह कांग्रेस उम्मीदवार पर निर्भर है कि वह जमीनी स्तर पर जन-बल उपलब्ध कराये. इसके लिए पैसों की जरूरत है और कई कांग्रेस नेता लंबे समय तक बहुत ज्यादा पैसा खर्च करने की स्थिति में नहीं हैं, क्योंकि पार्टी लगातार चुनाव हारती जा रही है. मेरे विचार से मुद्दों और सांगठनिक दोनों ही स्तर पर यहां भाजपा आगे है, चाहे अपनी शक्ति के कारण या कांग्रेेस की कमजोरियों के कारण या दोनों ही वजहों से.
तीसरी बात है चुनावी रणनीति की. यहां भाजपा ने प्रधानमंत्री के रूप में अपना सर्वाधिक शक्तिशाली कार्ड इस्तेमाल किया है, और दर्जनों रैलियों में उन्हें उतारा है. कई वर्षों से उन्होंने गुजरात में भी केवल हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया है, लेकिन इन दिनों उन्होंने गुजराती में बोलना शुरू किया है. मेरी समझ से यह इंगित करता है कि वह अपने गृह-राज्य को संदेश देने की जरूरत महसूस करते हैं और जैसा कि जनमत सर्वेक्षण में दिखाया जा रहा है, उससे उलट यह लड़ाई नजदीकी हो सकती है.
नरेंद्र मोदी नि:संदेह एक उत्कृष्ट सार्वजनिक वक्ता हैं और वह इस तरह के एजेंडे को खास तरीके से व्यवस्थित करने में सक्षम हैं, जो राहुल गांधी नहीं कर सकते. नरेंद्र मोदी जब भी बड़ा भाषण देते हैं, तो आमतौर पर वे पुराने मुद्दे को भी इतनी अच्छी तरह से नया बनाकर पेश करते हैं कि वह मुख्य समाचार में अपनी अवश्य जगह बना ले. उदाहरण के लिए, मैंने चाय बेची, लेकिन देश नहीं बेचा. इतने स्पष्ट, सरल तरीके से किसी चीज को पेश करना एक नेता का शानदार हुनर होता है.
वहीं दूसरी तरफ, कांग्रेस न केवल अपना एजेंडा तय करने में विफल रहती है, बल्कि बिना किसी बात के रक्षात्मक रुख भी अख्तियार किये रहती है, उदाहरण के लिए अहमद पटेल का किसी अस्पताल का ट्रस्टी होना गलत है या नहीं और राहुल गांधी कैथोलिक हैं या नहीं जैसे मुद्दे. हालांकि, कांग्रेस ने एक जगह कामयाबी हासिल की है – पिछले कुछ महीने में तीन बड़े विरोधी समूहों को वह एक साथ ले आयी है. हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी और अल्पेश ठाकोर के नेतृत्व में क्रमश: पाटीदार, दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग क्षत्रिय को.
अपनी विरोधाभासी मांगों की वजह से इन तीनों समूहों काे एक साथ अपने साथ लाना कांगेस के लिए आसान नहीं था. और इन तीनों समूहों का कांग्रेस के साथ आना स्वाभाविक भी नहीं था, क्योंकि ये तीनों समूह अराजनीतिक हैं और अचानक ही बने थे, लेकिन कांग्रेस उन्हें अपनी ओर करने में सफल रही है. मेरा मानना है कि इसके पीछे मुख्य रूप से अहमद पटेल का हाथ है. इस गठबंधन को लेकर भाजपा चिंतित है और उसके कई नेता, खासकर मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के बयानों पर गौर करने से ऐसा लगेगा कि उनका उद्देश्य इस गठबंधन को तोड़ना है.
यहां प्रश्न यह है कि क्या भाजपा को हराने के लिए यह प्रयास पर्याप्त होगा? मेरा मानना है कि इस चुनावी नतीजे के निर्धारण में सबसे ऊपर मतदान प्रतिशत होगा. गुजरात में मतदान का प्रतिशत उच्च रहता है और भाजपा यहां तक कि अगर वह जनमत सर्वेक्षण में आगे रहती है, तब भी उसे यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि उसका मतदाता बाहर निकले और उसके पक्ष में मतदान करेे. एेसा करना आसान नहीं होगा क्योंकि वह एक सुरक्षात्मक लड़ाई लड़ रही है.
वहीं अपने छोटे मतदाता समूह के बावजूद कांग्रेस निश्चिंत हो सकती है कि वे उसके पक्ष में ही मतदान करेंगे, क्योंकि उनमें गुस्सा व्याप्त है.
इन अर्थों में गुजरात चुनाव का प्रमुख मुद्दा, जो कि नौकरी और सार्थक आर्थिक विकास है, सत्तारूढ़ दल भाजपा के खिलाफ है, भले ही वह उन मुद्दों पर चुनाव लड़ने का दिखावा क्यों न कर रही हो.