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कमजोर मॉनसून का आसन्न संकट

भारतीय मौसम विभाग ने मॉनसून के पूर्वानुमान में आशंका व्यक्त की है कि इस साल सामान्य औसत से कम बारिश होगी. जून से सितंबर के मॉनसून के दौरान पूरे वर्ष की 70 फीसदी बरसात होती है और इस मौसम में गन्ना, धान और कपास जैसी जरूरी फसलें उपजायी जाती हैं. देश की कुल कृषि भूमि […]

भारतीय मौसम विभाग ने मॉनसून के पूर्वानुमान में आशंका व्यक्त की है कि इस साल सामान्य औसत से कम बारिश होगी. जून से सितंबर के मॉनसून के दौरान पूरे वर्ष की 70 फीसदी बरसात होती है और इस मौसम में गन्ना, धान और कपास जैसी जरूरी फसलें उपजायी जाती हैं. देश की कुल कृषि भूमि के 50 फीसदी हिस्से की सिंचाई के लिए किसान बरसात पर ही निर्भर होते हैं.

अगर मौसम विभाग की आशंका सही साबित होती है, तो यह न सिर्फ किसानों, बल्कि देश की पूरी अर्थव्यवस्था के लिए बहुत नुकसानदेह स्थिति होगी. अर्थव्यवस्था की हालत पहले से ही खराब है और खाद्य पदार्थ लगातार महंगे होते जा रहे हैं. खराब मॉनसून से इनकी बेहतरी की तमाम कोशिशें असफल हो सकती हैं. अगले महीने बन रही नयी सरकार के लिए भी यह बड़ी चुनौती होगी.

उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र में पिछले दिनों की ओला-वृष्टि से 40 फीसदी प्याज नष्ट हो चुका है. इस कारण प्याज की कीमतों में भारी बढ़ोतरी की आशंका पहले से ही है. पिछले साल सूखे के चलते हुई उत्पादन में कमी के कारण प्याज की कीमतें आसमान छूने लगी थीं. महाराष्ट्र देश के कुल प्याज उत्पादन में 30 फीसदी योगदान देता है. ओला-वृष्टि से सबसे अधिक नुकसान मराठवाड़ा व विदर्भ में हुआ है. जानकारों के मुताबिक, कीमतों पर इस नुकसान का प्रभाव मई-जून के महीने में दिखायी देने लगेगा. इसके बाद अब कमजोर मॉनसून के पूर्वानुमान से महंगाई की मुसीबत के और गंभीर होने के आसार बढ़ गये हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, अलनीनो के प्रभाव से आगामी महीनों में वैश्विक मौसम के रुझानों में फेर-बदल के संकेत हैं.

अलनीनो तीन से पांच वर्षो में होनेवाली अनियमित प्राकृतिक परिघटना है, जब मौसम अधिक गर्म हो जाता है. हालांकि सरकार व संबंधित संस्थाओं को इस पूर्वानुमान को गंभीरता से लेते हुए समुचित तैयारी शुरू कर देनी चाहिए, लेकिन इससे किसी तरह की अफरातफरी और बेचैनी की स्थिति नहीं बननी चाहिए. कम वर्षा से होनेवाला नुकसान इस बात पर भी निर्भर करेगा कि यह कमी किस समय और किन क्षेत्रों में होगी. साथ ही, सिंचाई के साधनों के व्यापक विस्तार पर भी लगातार ध्यान देने की जरूरत है. देश की आधी आबादी आज भी खेती पर आश्रित है.

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