बैंकों के दिवालिया होने पर समग्रता से निपटने की दरकार

फाइनेंशियल रिजोल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस बिल को संसद की संयुक्त समिति को अपनी सिफारिशों के लिए दे दिया गया है. पिछले एक महीने से यह बिल एकाएक सोशल मीडिया, अखबारों और टीवी पर बहस का प्रमुख केंद्र बनकर उभरा है. व्यक्तिगत, कंपनियों, साझेदारी फर्मों तथा अन्य हस्तियों के मामले में दिवालिया होने की स्थिति से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 10, 2017 8:59 AM

फाइनेंशियल रिजोल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस बिल को संसद की संयुक्त समिति को अपनी सिफारिशों के लिए दे दिया गया है. पिछले एक महीने से यह बिल एकाएक सोशल मीडिया, अखबारों और टीवी पर बहस का प्रमुख केंद्र बनकर उभरा है. व्यक्तिगत, कंपनियों, साझेदारी फर्मों तथा अन्य हस्तियों के मामले में दिवालिया होने की स्थिति से निपटने के लिए अभी पिछले ही साल संसद में ‘दी इन्सॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी एक्ट’ पारित किया गया. बैंकिंग कंपनियों का मामला बिलकुल अलग है. बैंकिंग कंपनी के दिवालिया होने की स्थिति में मामले को संभालने के लिए कोई कानून देश में नहीं है.

भारत में अब तक आरबीआई मोरेटोरियम लगाकर फेल होते बैंक को किसी अन्य बड़े बैंक में विलय का निर्देश देता रहा है. लेकिन पिछले कई दशकों से जटिल होती विकासशील अर्थव्यवस्था में एक स्पष्ट कानून की जरूरत महसूस की जा रही थी, ताकि बैंकों के दिवालिया होने की स्थिति से व्यवस्थित तरीके से निपटा जा सके. इस नये बिल का उद्देश्य यही जान पड़ता है.

बीमित जमा खाताधारकों को पहले िकया जायेगा भुगतान
भारत में बैंक फेल होने की स्थिति में डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन किसी जमाकर्ता का एक नाम और एक हैसियत से एक बैंक में एक लाख तक के जमा राशि का बीमा प्रदान करता है. बैंक फेल होने की स्थिति में किसी भी जमाकर्ता को एक बैंक में उसी नाम और हैसियत में जमा राशि चाहे कितनी भी क्यों न हो एक लाख से ज्यादा नहीं मिल पायेगा.

नयी व्यवस्था में भी जमा राशि के बीमा की व्यवस्था होगी. लेकिन हो सकता है कि यह बैंक वार अलग-अलग हो. बैंक अपने रिस्क परसेप्शन के अनुसार बीमित राशि की सीमा तय कर सकें. बिल के अनुसार बीमित जमा खाताधारकों को सबसे पहले भुगतान किया जायेगा. उसके बाद अन्य देनदारियों को निपटाया जायेगा. नये बिल के अनुसार हो सकता है कि सबको कुछ-न-कुछ मिले.

इस बिल पर जो चिंता जाहिर की जा सकती है कि बैंक संकट में मुख्यत: तब आते हैं, जब उनके ऋण वसूल नहीं हो पाते. अब तक का अनुभव है कि तमाम कानून होते हुए भी बड़े ऋणकर्ताओं से ऋण वसूलने में कठिनाई आती है. बैंक के ऋण वसूल होते रहें तो इस बिल के होते हुए भी इसके क्रियान्वयन की जरूरत कम ही पड़ेगी. बैंक स्वस्थ रूप से चलते रहें, इसके लिए ऋण वसूली कानून और प्रक्रिया सख्त होनी चाहिए. बैंकों के परफॉरमेंस और स्वास्थ्य का कड़ाई से देखभाल और प्रबंध किया जाए.

अब तक जबरदस्ती से लागू विलय द्वारा बैंक के दिवालिया होने या बंद होने की स्थिति आने नहीं दी जाती थी. लेकिन अब नये बिल के लागू होने पर बैंक दिवालिया भी हो सकते हैं. इस कानून से सबसे बड़ी अपेक्षा यह होगी कि बैंकों को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया पारदर्शी हो. कोई घोटाला न हो इसका इंतजाम करना पड़ेगा.
बिभाष श्रीवास्तव
आर्थिक मामलों के जानकार

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