डीजे में ओहो होहो
आलोक पुराणिक व्यंग्यकार शहरों में शादियां भी हैं और उसमें लेडीज संगीत भी है, पर लेडीज भी बदल गयी हैं और संगीत भी. बरसों पहले जब लेडीज संगीत का एक निमंत्रण देखा था, तो सहज जिज्ञासा हुई थी कि लेडीज म्यूजिक क्यों न कहा गया या महिला संगीत भी कहा जा सकता था. मैंने यह […]
आलोक पुराणिक
व्यंग्यकार
शहरों में शादियां भी हैं और उसमें लेडीज संगीत भी है, पर लेडीज भी बदल गयी हैं और संगीत भी. बरसों पहले जब लेडीज संगीत का एक निमंत्रण देखा था, तो सहज जिज्ञासा हुई थी कि लेडीज म्यूजिक क्यों न कहा गया या महिला संगीत भी कहा जा सकता था.
मैंने यह सवाल वरिष्ठ लेडीज के सामन रखा कि लेडीज संगीत कुछ मिक्स-मिक्स टाइप नहीं लगता क्या, हालांकि उस वक्त मिक्स सरकारों, साझा सरकारों और गठबंधन सरकारों का दौर भी शुरू नहीं हुआ था. या तो फुल इंगलिश कर दो ‘लेडीज म्यूजिक’ या फुल हिंदी होने दो ‘महिला संगीत’. पर मेरी राय नहीं सुनी गयी, लेडीज संगीत लेडीज संगीत ही रहा. पर अब लेडीज संगीत वैसा नहीं रहा.
अब खुशी के हर मौके पर जो मिलता है, वह है डीजे. जो नयी पीढ़ी के संगीत को नहीं जानते, वह दिलजीत दोसांज को भी नहीं जानते होंगे. अपने आसपास के लेडीज संगीत को जरा गौर से देख लीजियेगा, उसमें दिलजीत दोसांज मिल जायेंगे, उनके गीतों पर लेडीज नाच रही होंगी. पटना में चल रहे डांस में पटियाला लुधियाना का जिक्र आ रहा होगा, थैंक्स टू दिलजीत दोसांज, दि सिंगर. पंजाबियों की इसी मस्ती का पूरे देश को कायल होना चाहिए कि कहीं भी बंदा खुश हो रहा होगा, तो उसमें पंजाब की साझेदारी जरूर होगी.
वक्त बदल गया है. स्थानीय लोकगीतों की जगह भी दिलजीतजी आ गये हैं. बहुएं शोर मचाये हुए हैं, वे डीजे डांस में अपनी सासों को धकिया ले रही हैं. हालांकि डीजे डांस मंच से दूर भी वह ऐसा ही करने को प्रतिबद्ध दिखती हैं. नाच मचा हुआ है. डीजे डांस में नाचने के लिए डांस आना कतई जरूरी नहीं है, वरना ठीक-ठाक डांस की शिक्षा तो डीजे डांस में रिद्म खराब कर देता है.
डीजे डांस मूलत: मिली-जुली सरकार टाइप होता है, किसी एक गीत का असर नहीं रहता, इश्क तेरा तड़पाये पर जब तक बंदा तड़पने का पोज बनाता है, तब तक ओहो होहो होहो करने का आह्वान आ जाता है. ओहो होहो कर ही रहा होता है कि साड्डी रेलगाड़ी नामक गीत के तहत रेलगाड़ी बनाने का आह्वान आ जाता है. डीजे डांस मूलत: अस्थिरता मूलक, अस्थिरता प्रेरक डांस है.
डीजे डांस मूलत: एक दार्शनिक उपक्रम है, जो हमको संदेश देता है कि अगली घड़ी का कुछ ना पता, अगले गीत का कुछ ना पता. बस हाथ-पैर फैलाकर इधर उधर होते रहिए, हर गीत पर फिट बैठेगा यह पोज. एक ही गीत पर थिरकने के दिन गये पांच मिनट में डीजेवाला बीस गीत ठोंक सकता है, कतई गठबंधन सरकार की तरह, जिसमें एक सरकार में बीस-पचास दल शामिल होते हैं.
क्या कहा, डीजे डांस समझ न आता, तो क्या गठबंधन सरकार समझ आ जाती है. क्या शिवसेना और भाजपा दोनों पार्टियां एक ही सरकार में समझ आ जाती हैं?
समझ नहीं आती न, तो चलिए ओहो होहो ओहो होहो कीजिए. ओहो होहो ओहो होहो…