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अपना गढ़ बचाने में कामयाब रहे मोदी

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर हालांकि विधानसभा चुनाव गुजरात और हिमाचल दो राज्यों में हुए थे, लेकिन सबकी निगाहें गुजरात चुनाव पर लगी हुईं थीं. यह चुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव की प्रयोगशाला बना हुआ था. यह मौका था जब गुजरात के बहाने प्रधानमंत्री मोदी और राहुल गांधी अपनी-अपनी रणनीति तौल रहे थे. गुजरात […]

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
हालांकि विधानसभा चुनाव गुजरात और हिमाचल दो राज्यों में हुए थे, लेकिन सबकी निगाहें गुजरात चुनाव पर लगी हुईं थीं. यह चुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव की प्रयोगशाला बना हुआ था. यह मौका था जब गुजरात के बहाने प्रधानमंत्री मोदी और राहुल गांधी अपनी-अपनी रणनीति तौल रहे थे. गुजरात में भाजपा के समक्ष अनेक चुनौतियां थीं.
गुजरात में पिछले 22 साल से भाजपा का शासन था. इतने लंबे समय तक सत्ता में बने रहने के कारण सत्ता विरोधी वोट को अपने पक्ष में बनाये रखना सबसे बड़ी चुनौती थी. दूसरी ओर इस बार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भाजपा की पिच पर जाकर बल्लेबाजी कर रहे थे. उन्होंने मंदिर-मंदिर मत्था टेक कर नरम हिंदुत्व की धारा पकड़ ली थी. कांग्रेस पर अल्पसंख्यकों की तरफदारी करने का आरोप लगता रहा है. लेकिन कांग्रेस ने इस बार उनसे दूरी बनाये रखी. इसके कारण भाजपा को ध्रुवीकरण का मौका नहीं मिला. दिलचस्प है कि इन चुनावों में मुस्लिम वोट कोई मुद्दा नहीं था, चुनाव के दौरान उनकी किसी ने बात तक नहीं की, जबकि 182 सीटों में से 21 पर इस समुदाय का प्रभाव है.
गुजरात में आंदोलन की उपज पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और पिछड़े वर्ग के नेता अल्पेश ठाकोर कांग्रेस के साथ थे.
कहा जा रहा था कि जीएसटी और नोटबंदी को लेकर गुजरात के व्यापारी वर्ग में भी नाराजगी थी. लेकिन जो नतीजे आये हैं, उनसे स्पष्ट है कि यह नाराजगी अंसतोष की हद तक नहीं पहुंची और जनता का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा बरकरार है. यह सही है कि युवा नेताओं ने कांग्रेस की सीटों में इजाफा किया, लेकिन उन्हें सत्ता के सिंहासन तक पहुंचाने में नाकामयाब रहे. इन नतीजों का अन्य राज्यों के लिए भी स्पष्ट संदेश है कि जमीनी आंदोलनों की अनदेखी राज्य सरकारों को भारी पड़ सकती है. हिमाचल प्रदेश के नतीजों की केवल इतनी अहमियत है कि एक और राज्य कांग्रेस मुक्त हो गया.
गुजरात का एक और अहम पहलू है कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का घरेलू मामला है. गुजरात की जीत उनकी आन, बान और शान का सवाल था. भाजपा अपनी आन की लड़ाई लड़ रही थी. वह इस राज्य में पिछले 22 साल से सत्ता में है और नरेंद्र मोदी यहां के मुख्यमंत्री रहे हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री तक का अपना सफर यहां से ही तय किया है.
गुजरात चुनाव की अहमियत के कारण भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने इस चुनाव में अपने अस्त्रागार में से ऐसा कोई अस्त्र बाकी नहीं रखा, जो न चला हो. यह चुनाव कितना अहम था, उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 36 रैलियों को संबोधित किया और लगभग 25 हजार किलोमीटर की यात्रा की, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने लगभग 20 हजार किलोमीटर यात्रा करके चुनाव प्रचार किया.
कांग्रेस भले ही गुजरात का चुनाव हार गयी, लेकिन इन नतीजों में राहुल गांधी के लिए बहुत से सकारात्मक संकेत छुपे हुए हैं. इस बार कांग्रेस बेहतर रणनीति के साथ मैदान में उतरी. उसने चुनाव के दौरान ध्रुवीकरण का कोई मौका नहीं दिया, जिसके कारण प्रधानमंत्री मोदी को प्रचार में पाकिस्तान तक को घसीटना पड़ा. साथ ही राहुल गांधी भी राजनेता के तौर पर परिपक्व नजर आये.

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