इरादे नेक नहीं
मंगलवार को कुछ सांसदों को राज्यसभा में बहस करते टीवी पर देख रहा था. सरकार द्वारा 12 विशेष अदालत बनाने की घोषणा का ये लोग बहुत ही चालाकी से विरोध कर रहे थे. एक कह रहे थे कि यह संविधान प्रदत्त समानता के अधिकार का उलंघन है. हमलोगों को विशेष अदालत में भेजकर आमजन का […]
मंगलवार को कुछ सांसदों को राज्यसभा में बहस करते टीवी पर देख रहा था. सरकार द्वारा 12 विशेष अदालत बनाने की घोषणा का ये लोग बहुत ही चालाकी से विरोध कर रहे थे. एक कह रहे थे कि यह संविधान प्रदत्त समानता के अधिकार का उलंघन है. हमलोगों को विशेष अदालत में भेजकर आमजन का अपमान किया जा रहा है.
असल में ये लोग नहीं चाहते कि उनके कर्मों की सजा उन्हें जल्द मिले. वे यही चाह रहे हैं कि उनका भी मुकदमा 20-30 साल तक चलता रहे. इस समय लोकसभा के कुल 34% सदस्यों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं. राज्यसभा में यह प्रतिशत 19 है.
राज्य विधानसभाओं के कुल 4032 में से 31% सदस्यों पर मुकदमे चल रहे है. मुझे लगता है कि इन्हें तो चुनाव लड़ने ही नहीं दिया जाना चाहिए था, क्योंकि विधि निर्माताओं पर ही अपराध में भागीदार हाेने का आरोप हो, तो यह संविधान के मूल सिद्धांत के साथ धोखा है.
– जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी