न छोड़ें बुजुर्गों का साथ

शफक महजबीन टिप्पणीकार घर से स्कूल जाने के रास्ते में एक बुजुर्ग ने मेरे सामने हाथ फैलाया. उनकी हथेली में पैसे रखते हुए मैंने उनसे पूछा कि आप इस उम्र में भीख क्यों मांग रहे हैं. उन्होंने दुखी नजरों से देखते हुए कहा कि मेरे बेटे और बहू ने बहुत पहले मुझे घर से निकाल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 22, 2017 5:59 AM

शफक महजबीन

टिप्पणीकार

घर से स्कूल जाने के रास्ते में एक बुजुर्ग ने मेरे सामने हाथ फैलाया. उनकी हथेली में पैसे रखते हुए मैंने उनसे पूछा कि आप इस उम्र में भीख क्यों मांग रहे हैं. उन्होंने दुखी नजरों से देखते हुए कहा कि मेरे बेटे और बहू ने बहुत पहले मुझे घर से निकाल दिया था. मैं पागल होकर कभी इस शहर तो कभी उस शहर घूमने लगा और आज यहां हूं. कैसे निर्दयी होते होंगे वे लोग, जो अपने बुजुर्ग मां-बाप को दर-दर भटकने के लिए छोड़ देते हैं.

बहुत दुख होता है ऐसी खबरें पढ़कर कि किसी को उसके बुढ़ापे में उसके नाते-रिश्तेदार और यहां तक कि उसके बच्चे भी साथ छोड़ देते हैं. शायद वे यह नहीं जानते कि अंत में उन्हें भी उम्र के इसी पड़ाव पर आना है. कभी-कभी तो ऐसा भी देखा गया है कि बुजुर्गों को लोग उन्हीं के घर से बाहर निकाल देते हैं. अगर बुजुर्गों को अपने अधिकारों के बारे में पता होता, तो शायद वे इस तरह दर-दर भटकने को मजबूर नहीं होते.

हर वर्ष एक अक्तूबर को हम बुजुर्ग दिवस के रूप में मनाते हैं. उस दिन तो हम बुजुर्गों को खूब सम्मान देते हैं, लेकिन सिर्फ एक ही दिन उन्हें सम्मान देने का कोई अर्थ नहीं है. वे सारी जिंदगी सम्मान पाने के हकदार हैं.

इसलिए, हमें कुछ ऐसा करना चाहिए कि हर तारीख उनके लिए एक अक्तूबर बन जाये. उन्हें जागरूक करना जरूरी है. अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी से बुजुर्ग वर्ग ज्यादा परेशान होता है. बुढ़ापा तो एक ऐसी सच्चाई है, जो सभी को बेहद कड़वी लगती है.

लोगों का बस चले, तो वे कभी बूढ़े ही न होना चाहें. हाल ही में एक खबर आयी थी कि देश में 86 प्रतिशत बुजुर्ग अपने अधिकारों के बारे में नहीं जानते हैं. कहीं-न-कहीं यह नाजानकारी भी उनके लिए मुश्किलें खड़ी करती है. आजकल बुजुर्गों के साथ भेदभाव आम है. दरअसल, अधिकार प्राप्त होने के बावजूद वे अपने साथ भेदभाव इसलिए सह लेते हैं, क्योंकि उन्हें इसकी जानकारी नहीं होती. मानव मात्र के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए ही संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1948 से हर साल दस दिसंबर को मानवाधिकार दिवस के रूप में लागू किया. हम सबको अपने अधिकारों की जानकारी रखनी चाहिए.

होना तो यह चाहिए कि अगर बूढ़े माता-पिता किसी भी तरह का काम करने के योग्य नहीं हैं, तो ऐसे बुजुर्गों के बेटे-बेटियां उनकी जिम्मेदारी उठाएं. गरीब परिवारों में ऐसे बुजुर्ग भी हैं, जिन्हें भर पेट खाना सिर्फ इसलिए नहीं दिया जाता, क्योंकि वे किसी काम के लायक नहीं होते हैं.

अन्नपूर्णा योजना हो या सरकारी कर्मचारियों को मिलनेवाला पेंशन, ऐसी योजनाएं जरूरी हैं, ताकि बुजुर्ग किसी पर आश्रित न रहें. साठ पार बुजुर्गों के लिए रेल व हवाई यात्रा में छूट भी है. इतने अधिकारों के बावजूद बुजुर्गों की क्या हालत है, ये हम सभी जानते हैं.

बुजुर्गों को अपने अधिकारों की जानकारी जरूरी तो है, उनके साथ-साथ यह जिम्मेदारी युवा वर्ग की भी है कि वह अपने बुजुर्गों को उनकी जिम्मेदारी से अवगत कराये.

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