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आंकड़ों का सरकार उठाये फायदा
संदीप बामजई आर्थिक पत्रकार करीब दो साल पहले भारत सरकार ने टैक्स स्लैब बदले थे. और एक नया स्लैब निकाला था, जिसमें प्रावधान था कि जिसकी एक करोड़ रुपये से ज्यादा की आमदनी होगी, उसे तीस प्रतिशत टैक्स के साथ 15 प्रतिशत सरचार्ज (उसके पहले 12 प्रतिशत था) देना पड़ेगा. इस प्रावधान के अनुसार, अगर […]
संदीप बामजई
आर्थिक पत्रकार
करीब दो साल पहले भारत सरकार ने टैक्स स्लैब बदले थे. और एक नया स्लैब निकाला था, जिसमें प्रावधान था कि जिसकी एक करोड़ रुपये से ज्यादा की आमदनी होगी, उसे तीस प्रतिशत टैक्स के साथ 15 प्रतिशत सरचार्ज (उसके पहले 12 प्रतिशत था) देना पड़ेगा.
इस प्रावधान के अनुसार, अगर किसी की कमाई एक करोड़ चार लाख रुपये सालाना हुई, तो उसे 30 प्रतिशत टैक्स के साथ 15 प्रतिशत सरचार्ज मिलाकर कुल 34 लाख 33 हजार 350 रुपये टैक्स देना तय हुआ था. यह बात पिछले साल के बजट की है. लेकिन, अब सरकार ने कहा है कि वर्ष 2015-2016 में टैक्स देनेवालों की संख्या में करीब 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. और सरकार के अनुसार, पूरे भारत में इंडिविजुअल पर्सनल टैक्स देनेवाले सिर्फ 100 करोड़ के ऊपर पांच ही आदमी हैं. यह पूरी तरह से मजाक लगता है.
भारत के तमाम शहरों के ऐसे बाजारों को देखिए, जहां कारोबारी खूब कमाई करते हैं, लेकिन टैक्स नहीं भरते हैं. मसलन, दिल्ली के चावड़ी बाजार, सदर बाजार, चांदनी चौक, खान मार्केट, गफ्फार मार्केट जैसी जगहों पर बड़े-बड़े दुकानदार और कारोबारी हैं, जिनकी आय एक करोड़ रुपये से ज्यादा होगी, लेकिन वे कभी टैक्स नहीं देते.
और न ही सरकार के पास कोई व्यवस्था ही है कि वह इनसे टैक्स वसूल सके. दरअसल, भारत का टैक्स सिस्टम ऐसा है, जो सिर्फ टैक्स देनेवालों पर ही दबाव डालता रहता है, उन पर टैक्स का बोझ बढ़ाता रहता है. लेकिन, उनके ऊपर कोई कार्रवाई नहीं करता, जो करोड़ों कमाकर भी टैक्स नहीं भरते.
कहा यह जा रहा है कि डिमोनेटाइजेशन की वजह से 91 लाख नये करदाता आये हैं. इस हिसाब से देखें, तो डिमोनेटाइजेशन से मिलनेवाला यह बहुत बड़ा फायदा है. यहां आप गौर करें कि सवा अरब से ज्यादा की आबादी वाले भारत में अगर 91 लाख लोग टैक्स देने भी लगे, तो इससे कितना क्या फायदा होना है. भारत की आबादी के हिसाब से यह कुछ खास नहीं है.
दरअसल, डिमोनेटाइजेशन की वजह से बहुत जबर्दस्त आंकड़ा मिला है सरकार को, कि कौन-कौन लोग टैक्स नहीं भर रहे हैं और कौन-कौन लोग कितना कमा रहे हैं, या कौन लोग बैंक में कितने पैसे रखते हैं. इस आंकड़े से सरकार के पास एक नया हथियार आ गया है, जिसका इस्तेमाल सरकार कर रही है. लेकिन, मसला यह है कि इस हथियार के चलते ही फौरन इंस्पेक्टर राज आकर खड़ा हो जाता है.
भई! जब इनकम टैक्स अधिकारियों को यह पता चल गया कि किसके पास कितनी आय है और बैंक में कितनी रकम है, तो फिर पैसे बनाने के लिए निकल पड़े और लोग टैक्स देने से बचने के लिए इन अधिकारियों को पैसे खिलाने लगे. यह इस देश की एक बड़ी विडंबना है, जिसके चलते नये करदाता नहीं बढ़ रहे हैं. नहीं तो आज देश में महज तीन प्रतिशत के आसपास लोग ही टैक्स नहीं देते. इस समस्या का एक सीधा सा समाधान है कि टैक्स इंस्पेक्टर अपने क्षेत्र में उन लोगों को खोजे, जो कमाते तो खूब हैं, लेकिन टैक्स नहीं देते हैं. टैक्स न देनेवालों को स्क्रूटनी में लाये और उन पर उचित कार्रवाई करे.
भारत में सैलरी पानेवाले मिडिल क्लास के लोग ही टैक्स देने के लिए आगे आते हैं, क्योंकि उनकी आय के स्रोत से ही टैक्स (टीडीएस) काट लिया जाता है. लेकिन, ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनको सैलरी मिलती है और उन पर टैक्स भी होता है, लेकिन फिर भी वे टैक्स नहीं भरते.
जिनका टीडीएस निकलता है और इसका डाटा सरकार के पास जाता है, लेकिन वे आइटीआर फाइल ही नहीं करते. ऐसे में एक तरीका यह है कि इनके ऊपर आइटीआर फाइल न करने के लिए कार्रवाई हो. उनसे पूछा जाये कि आपका इतना टैक्स कटा, लेकिन आपने आइटीआर क्यों नहीं फाइल की. अब शायद सरकार ऐसी कार्रवाई करने के लिए तैयार है.
सरकार ने यह भी बताया है कि देश में सिर्फ पांच आदमी हैं, जिनकी आय सौ करोड़ से ज्यादा है.जब यह पता चला कि टैक्स देनेवालों की संख्या 24 प्रतिशत बढ़ी है, तो इसे मिलाकर यह आंकड़ा आया है कि 59 हजार ऐसे लोग हैं, जिनकी आय एक करोड़ है. गुड़गांव में कई ऐसे लोग हैं, जो सोलह से बत्तीस करोड़ तक की कीमत वाले फ्लैटों में रहते हैं. इस हिसाब से उनकी आमदनी बहुत होगी. लेकिन, सवाल यह है कि क्या वे आइटीआर फाइल करते हैं?
मैंने ऐसे कई लोगों को नहीं देखा है, जो आइटीआर फाइल ही नहीं करते और अधिकारी भी उनके घर नहीं आते. इस तरह के सिस्टम में यह कैसे उम्मीद की जा सकती है कि लोग टैक्स देने के लिए ईमानदार बनेंगे. मूलत: आय, उस पर टीडीएस और फिर आइटीआर, ये तीन चीजें हैं, जिन पर ईमानदारी बरतने की जरूरत है. कहीं-कहीं तो ऐसा है कि आय है, लेकिन टीडीएस का अता-पता नहीं है, फिर आइटीआर फाइल करने की बात तो दूर है. इस सिस्टम में सुधार जरूरी है. सरकार चाहे, तो इसे कर सकती है.
सरकार जब तक सबके पीछे नहीं भागेगी और टैक्स लेने की प्रक्रिया को दुरुस्त नहीं करेगी, तब तक मुश्किल है कि इसमें कुछ सुधार आये. जिस दिन सरकार सबके पीछे ईमानदारी से भागने लगेगी, उस दिन भारत का टैक्स रेवेन्यू बहुत बढ़ जायेगा और वित्तीय घाटा तो इसके पास भी नहीं फटकेगी.
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के पास इतनी क्षमता तो है कि वह टैक्स के दायरे में आनेवाले सभी से टैक्स वसूल ले. लेकिन, तकनीकी मसला यह है कि एक तरफ लोग टैक्स बचाने में माहिर हो गये हैं, तो दूसरी तरफ आयकर विभाग और कस्टम इन दोनों में भ्रष्टाचार बहुत है.
आज भी ये दोनों विभाग पैसे लेकर मामलों को रफा-दफा करने में यकीन रखते हैं. अगर आप मूडीज की रिपोर्ट देखें, स्टैंडर्ड एंड पूअर्स की रिपोर्ट देखें, तो इन दोनों में एक हिस्से में कस्टम कंट्रोल के बारे में ही बताया गया है. वर्ल्ड बैंक या ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की रिपोर्ट भी देखें, तो उसमें भी यही दिखता है कि कस्टम और आयकर विभाग किस तरह रफा-दफा वाले तरीके से काम करते हैं.
अगर कोई यह कहता है कि भ्रष्टाचार अब खत्म हो गया है, तो यह सब बेकार की बात है. भ्रष्टाचार खत्म नहीं हुआ है, अौर न ही निकट भविष्य में खत्म होता दिख रहा है. बहरहाल, सरकार ने जो आंकड़े दिये हैं, उनके हिसाब से उसने अपना काम भी ईमानदारी से किया, तो संभव है कि कुछ और आयकरदाता बढ़ जाएं.
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