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एक महत्वाकांक्षी योजना की विफलता

कांग्रेसनीत यूपीए-1 सरकार द्वारा धूमधाम से शुरू की गयी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना भारी विफलता की ओर अग्रसर है. इस योजना ने 2009 के लोकसभा चुनाव में यूपीए की सत्ता में वापसी में बड़ी भूमिका निभायी थी, पर मौजूदा आम चुनाव के लिए जारी कांग्रेस के घोषणापत्र में इसकी चर्चा नाममात्र की है और […]

कांग्रेसनीत यूपीए-1 सरकार द्वारा धूमधाम से शुरू की गयी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना भारी विफलता की ओर अग्रसर है. इस योजना ने 2009 के लोकसभा चुनाव में यूपीए की सत्ता में वापसी में बड़ी भूमिका निभायी थी, पर मौजूदा आम चुनाव के लिए जारी कांग्रेस के घोषणापत्र में इसकी चर्चा नाममात्र की है और इसे मजबूत करने व बेहतर बनाने की किसी पहल या कोशिश का कोई जिक्र नहीं है.

यह भी ध्यान रखा जाना चहिए कि वित्त वर्ष 2012-13 और 2013-14 में इस योजना के लिए निर्धारित धन में भी बड़ी कटौती की गयी, और रोजगार-उपलब्धता के औसत दिन भी 2012-13 के 46 दिनों से घट कर 44 दिन ही रह गये, जबकि इस योजना के तहत सरकार द्वारा कम-से-कम 100 दिन रोजगार या फिर बेरोजगारी भत्ता देने की वैधानिक बाध्यता है. आंकड़ों के मुताबिक 2013-14 में सिर्फ 10 फीसदी पंजीकृत परिवारों को 100 दिनों का रोजगार हासिल हो पाया, जबकि 21 फीसदी परिवारों को 15 दिन से भी कम अवधि के लिए रोजगार उपलब्ध कराया जा सका.

2013-14 में इस योजना के लिए 33 हजार करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे. ऐसा नहीं है कि निराशाजनक आंकड़े सिर्फ पिछले वित्तीय वर्ष में ही सामने आये हैं. सौ दिनों के रोजगार की उपलब्धता वित्त वर्ष 2012-13 में भी 10 फीसदी और 2011-12 में आठ फीसदी ही रही थी. 2013-14 के आंकड़ों को अगर राज्यवार देखें, तो और भी निराशाजनक तसवीर उभरती है. उत्तर-पूर्व के राज्यों- अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड में एक भी परिवार को 100 दिन का रोजगार नहीं मिला. असम, उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात और पश्चिम बंगाल में यह आंकड़ा पांच फीसदी से कम रहा. सबसे बेहतर प्रदर्शन करनेवाले त्रिपुरा में 48 फीसदी पंजीकृत परिवारों को ही इस योजना के तहत 100 दिन का रोजगार हासिल हुआ. इन आंकड़ों को योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के साथ रख कर देखें, तो स्थिति और भी निराशाजनक है.

यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि एक महत्वाकांक्षी योजना एक भारी विफलता की ओर बढ़ रही है. स्पष्ट है कि सरकारें नियम, कानून और योजनाएं तो बना देती हैं, लेकिन उनके कार्यान्यवयन पर अकसर ध्यान नहीं देती हैं.

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