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टैक्स देने में कोताही

सवा अरब से ज्यादा की आबादी वाले हमारे देश में आयकर देनेवालों की संख्या हर बार हैरान करती है. नये आंकड़ों के मुताबिक, आकलन वर्ष 2015-16 में आयकर दाताओं की संख्या कुल आबादी का महज 1.7 फीसदी यानी करीब दो करोड़ है. तर्क दिया जा सकता है कि आकलन वर्ष 2015-16 में आय का हिसाब […]

सवा अरब से ज्यादा की आबादी वाले हमारे देश में आयकर देनेवालों की संख्या हर बार हैरान करती है. नये आंकड़ों के मुताबिक, आकलन वर्ष 2015-16 में आयकर दाताओं की संख्या कुल आबादी का महज 1.7 फीसदी यानी करीब दो करोड़ है.

तर्क दिया जा सकता है कि आकलन वर्ष 2015-16 में आय का हिसाब दिखानेवालों की तादाद पिछले साल के 3.65 करोड़ से बढ़कर 4.07 करोड़ हो गयी, पर टैक्स दिया केवल 2.06 करोड़ लोगों ने, शेष ने जानकारी दी कि उनकी आमदनी कर-योग्य श्रेणी में नहीं आती.

यह तथ्य भी ध्यान योग्य है कि आकलन वर्ष 2015-16 में हालांकि पिछले साल के मुकाबले ज्यादा लोगों ने आय विवरण भरा, परंतु चुकायी गयी कर-राशि में कमी आ गयी. वर्ष 2014-15 में 3.65 करोड़ लोगों ने विवरण जमा किया था और 1.91 करोड़ लोगों ने आयकर के रूप में 1.91 लाख करोड़ रुपये की राशि चुकायी थी. इसकी तुलना में 2015-16 में विवरण भरनेवाले 4.07 करोड़ लोगों में से 2.06 करोड़ ने आयकर के तौर पर महज 1.88 लाख करोड़ रुपये की राशि चुकायी है.

सरकार के सामने बरसों से यह चुनौती रही है कि कैसे ज्यादा लोगों को प्रत्यक्ष कर की अदायगी के तंत्र के भीतर लाया जाये. दूसरी चुनौती आयकर की राशि बढ़ाने की है. अर्थशास्त्री ध्यान दिलाते रहे हैं कि भारत के कुल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में करों से प्राप्त राजस्व का हिस्सा आश्चर्यजनक तौर पर कम रहा है. साल 1965 में यह अंशदान लगभग 10 फीसदी था, जो 2013 में 17 फीसदी के आसपास पहुंचा, लेकिन विकसित देशों की जीडीपी में कर राजस्व का अंशदान 2013 में 33 फीसदी था.

जाहिर है, अर्थव्यवस्था में करों से प्राप्त राजस्व को बढ़ाने के लिहाज से ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को कर-ढांचे के भीतर लाना जरूरी है. भारत के साथ विचित्र तथ्य यह है कि मध्यवर्गीय आबादी अच्छी-खासी होने के बावजूद आयकर ढांचे के भीतर आनेवाले लोगों की तादाद बहुत कम (वयस्क आबादी का लगभग चार फीसदी) है. सरकार का ज्यादा जोर अब तक अप्रत्यक्ष करों पर रहा है, जबकि ऐसे करों का भार हर आय वर्ग को उठाना पड़ता है.

आयकर विभाग के हालिया आंकड़ों से उभरती तस्वीर के आधार पर कहा जा सकता है कि ज्यादातर धनी लोग अब भी अपनी आमदनी पर वाजिब कर नहीं चुका रहे हैं. एक करोड़ तक की सालाना आमदनी बतानेवालों की संख्या 20 हजार से ज्यादा नहीं है और 100 करोड़ की सालाना आमदनी बतानेवालों की तादाद तो अंगुली पर गिनी जा सकती है.

लेकिन, यह तथ्य महंगी गाड़ियों, सोना-चांदी या रियल एस्टेट की बिक्री के तथ्यों से मेल नहीं खाता और भारी कर चोरी की ओर संकेत करता है. अधिक कीमती वस्तुओं की बिक्री का बाजार लगातार बढ़ रहा है. इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि निजी आयकर देनेवालों की तादाद देश में काफी कम है और सरकार को इसे दुरुस्त करने के लिए जरूरी पहल करना चाहिए.

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