न्याय में हो रही देरी से उठते सवाल

अकसर कहा जाता है कि न्याय में देरी न्याय से इनकार के समान है. व्यवस्था के कोण से सोचें तो न्याय में जितनी देर होगी, अपराध उतनी देर तक अदंडित रहेगा, जो एक अर्थ में अराजकता की स्थिति का सूचक है. आरोपित व्यक्ति के कोण से देखें तो न्याय में देरी उसे हासिल अधिकारों का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 30, 2014 5:03 AM

अकसर कहा जाता है कि न्याय में देरी न्याय से इनकार के समान है. व्यवस्था के कोण से सोचें तो न्याय में जितनी देर होगी, अपराध उतनी देर तक अदंडित रहेगा, जो एक अर्थ में अराजकता की स्थिति का सूचक है.

आरोपित व्यक्ति के कोण से देखें तो न्याय में देरी उसे हासिल अधिकारों का एक सीमा तक स्थगन है. देश में लाखों विचाराधीन कैदियों को दोष सिद्ध होने या नहीं होने के इंतजार में ही जीवन के कई अमूल्य वर्ष जेल में काटने पड़ते हैं. न्याय में देरी विधि-व्यवस्था के लिए कितनी जटिल स्थिति पैदा कर सकती है, इसका एक अनुमान लाल किले पर हमले के दोषी लश्कर आतंकी मोहम्मद आरिफ उर्फ अशफाक की फांसी की सजा पर सुप्रीम कोर्ट के स्थगन आदेश से लगाया जा सकता है. करीब 13 साल पहले दिसंबर, 2000 में लाल किले पर आतंकी हमला हुआ था.

इसमें आरिफ का दोष ट्रायल कोर्ट, दिल्ली हाइकोर्ट (2007) और सुप्रीम कोर्ट (2011) में सिद्ध हो चुका है. परंतु, प्रक्रियागत कारणों से आरिफ को फांसी अब तक नहीं दी जा सकी. इसी नुक्ते पर आरिफ के वकील ने फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि संविधान के अनुसार किसी एक अपराध के लिए दोषी को दो दफे सजा नहीं दी जा सकती. आरिफ फांसी की सजा से पहले करीब 13 साल की कैद काट चुका है और यह अवधि स्वयं में आजीवन कैद की अवधि के लगभग बराबर है, इसलिए उसे आजीवन कैद में रखने के बाद फांसी नहीं दी जा सकती.

इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है. आरिफ के मामले में अंतिम फैसला चाहे जो भी हो, परंतु इससे फांसी की सजा के औचित्य, उससे जुड़ी लंबी न्यायिक-प्रक्रिया और अपराध के अन्य मामलों में न्याय में देरी का सवाल प्रमुखता से उठा है. विधि मंत्रलय के एक नोट के आधार पर ‘नेशनल सोशल वॉच’ नामक संस्था ने बीते दिसंबर में कहा था कि भारत की जेलों में तीन लाख विचाराधीन कैदी हैं, जिनमें दो लाख कई सालों से अंतिम फैसले के इंतजार में कैद हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा आदेश के बाद फांसी की सजा से जुड़ी प्रक्रिया और विचाराधीन कैदियों की स्थिति पर नये सिरे से ध्यान दिया जायेगा और कुछ कारगर कदम उठाये जायेंगे.

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